बेगूसराय, 04 सितम्बर (हि.स.)। कला को समर्पित संस्कार भारती के उत्तर बिहार प्रांत की साधारण सभा की पूर्व रात्रि बेगूसराय इकाई द्वारा प्रेमचंद्र की रचना ”मृत्यु के पीछे” का नाट्य मंचन किया गया। फैक्ट स्पेस में आयोजित कार्यक्रम का शुभारंभ संस्कार भारती के प्रांत संगठन मंत्री वेदप्रकाश एवं महामंत्री सुरभित दत्त ने दीप प्रज्वलित कर किया।
मृत्यु की पीछे की कथा में ईश्वरचंद्र नाम का एक व्यक्ति वकालत छोड़कर देश और जाति सेवा के लिए पत्र निकालता है। लेकिन उसकी पत्नी को अपने पति के संपादक बनने के इस निर्णय के कारण जो सुखों का त्याग करना पड़ा, उसके लिये हमेशा कोसती रहती थी, लेकिन जब उस व्यक्ति की मृत्यु के बाद क्या हुआ उसकी कहानी थी।
नाटक ने दिखाया कि ईश्वरचंद्र दत्त वकालत के माध्यम से देश सेवा करने के लिए पढ़ाई कर रहे थे। लेकिन इसी बीच उन्हें राष्ट्रप्रेम और समाज को उत्कृष्ट स्थान दिलाने के लिए गौरव नामक पत्र का संपादक बनने का ऑफर मिला तो काफी खुश हुए। ईश्वरचंद्र की पत्नी ऊंचे और धनाढ्य खानदान की लड़की थी और वह मर्यादाप्रियता तथा मिथ्या गौरवप्रेम से सम्पन्न थी। यह समाचार पाकर डरी की पति कहीं इस झंझट में फंसकर कानून से मुंह ना मोड़ लें।
संपादक का दायित्व निभाते-निभाते ईश्वरचंद्र को बहुत जल्द पता चल गया कि पत्र सम्पादन और पत्रकारिता चित्त की समग्र वृत्तियों का अपहरण कर लेता है। ईश्वरचंद्र ने इसे मनोरंजन का एक साधन और ख्यातिलाभ का एक यंत्र समझा था। लेकिन उन्हें अनुभव हुआ कि यात्रा उतनी सुखद नहीं है, जितनी समझी थी। लेखों के संशोधन परिवर्धन और परिवर्तन लेखकों से पत्र व्यवहार और चित्ताकर्षक विषयों की खोज तथा सहयोगियों से आगे बढ़ जाने की चिंता ने उन्हें कानून का अध्ययन करने से विमुख कर दिया।
पत्रों के नोक-झोंक पत्रिकाओं के तर्क-वितर्क आलोचना-प्रत्यालोचना कवियों के काव्यचमत्कार, लेखकों का रचनाकौशल आदि उन पर जादू का काम करतीं। इस पर छपाई की कठिनाई ग्राहक संख्या बढ़ाने की चिंता और पत्रिका को सर्वांग सुंदर बनाने की आकांक्षा और भी प्राणों को संकट में डाले रहती थी। कभी-कभी उन्हें दुख भी होता कि व्यर्थ ही इस झमेले में पड़ा। रात में काफी देर तक जगे रहकर संपादन करते शरीर को भी भूल कर पत्रिका में रहने लगे रहने के कारण उन्हें पत्नी मानकी के बातों का कोप भाजन भी झेलना पड़ता था। लेकिन सब कुछ झेलते हुए आर्थिक रूप से कमजोर होकर भी वह अपने काम में लगे रहे।
इन्हीं बातों से गुजरते हुए एक दिन जब ईश्वरचंद्र की मौत हो गई तो परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया। लेकिन एक उत्कृष्ट पत्रकार और संपादक के निधन की खबर सुनकर पूरा शहर रो उठा। जब शव यात्रा निकली तो क्या अमीर क्या गरीब, सब आंसू बहाते पीछे चल पड़े, तब उनकी पत्नी को अपने पति पर गर्व हुआ। ईश्वरचंद्र के नाम पर बच्चों की पढ़ाई में सहायता के लिए छात्रवृत्ति शुरू हुई।
श्रमजीवियों ने उनकी विशाल प्रतिमा बनवाई और अंत में पत्नी मानकी अपने जिस पुत्र कृष्णा को वकील बनाया था, उसे वकालत से विमुख कर पत्र पत्रिकाओं के संपादक का दायित्व दिलवाया। सब दिन तिरस्कार करने वाली मोनिका ने कहा बेटा तुम भी वही करो, उनके प्रेम और परिश्रम को आगे ले जाओ, संघर्ष और संग्राम में उदासीनता नहीं होनी चाहिए। कुल मिलाकर कहें तो देश और समाज सेवा के लिए अपना सर्वस्व समर्पण करने वाले संपादकों, कर्तव्यनिष्ठ पत्रकारों के जिंदगी की सही सच्चाई को प्रेमचंद्र की कहानी मृत्यु के पीछे का नाट्य रूपांतरण दिखा गया। नाटक ने दिखाया कि घरवालों का स्नेह बाहर वालों के सम्मान से अधिक महत्वपूर्ण होता है।
अभिनेताओं में कृष्णा सोनिका नाटक कि केन्द्र थी, वह अपनी भूमिका से काफी प्रभावित किया। आलम नूर, भूपेंद्र तिमसिना, अंकित राज एवं सुशील कुमार का भी अभिनय सराहनीय रहा। प्रकाश परिकल्पना चिन्टू कुमार का साउंड परिकल्पना मो. रहमान का था। संस्कार भारती बेगूसराय के कार्यकारी अध्यक्ष प्रवीण कुमार गुंजन के मार्गदर्शन में दो युवा कृष्णा सोनिका एवं भूपेंद्र तिमसीना के निर्देशन में कलाकारों ने अपने भाव और सुंदर अभिनय से दर्शकों को कथा के प्रवाह से बांधे रखा।
नाट्य मंचन से पूर्व संस्कार भारती की टोली ने तीन गीतों की भी प्रस्तुति दी। जिसकी शुरुआत सूर्यकांत त्रिपाठी त्रिपाठी निराला की वर दे वीणावादिनी वर दे से हुई। अतिथियों का स्वागत संस्कार भारती के कार्यकारी जिलाध्यक्ष प्रवीण कुमार गुंजन एवं कार्यक्रम का संचालन अभिजीत मुन्ना ने किया।