हरिद्वार, 11 जून (हि.स.)। विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) केन्द्रीय मार्गदर्शक मंडल का दो दिवसीय उपवेशन भूपतवाला के निष्काम सेवा भवन में प्रारम्भ हुआ। जगदगुरु मधवाचार्य स्वामी विश्वप्रसन्न तीर्थ महाराज की अध्यक्षता एवं शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के सानिध्य में आयोजित हुआ। अधिवेशन के पहले दिन परिवार तथा कुटुम्ब प्रबोधन पर चर्चा हुई। इससे पूर्व विहिप के महामंत्री मिलिंद परांडे ने विगत एक वर्ष में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा किए गए कार्यों को संतों के समक्ष रखा।
परांडे ने कहा कि गत वर्ष विहिप व सहयोगी संगठनों के प्रयत्नों से 19286 ईसाई और इस्लाम मतावलम्बियों ने स्वधर्म ग्रहण किया। इसी प्रकार 2114 हिन्दू कन्याओं को मुसलमानों के चंगुल से छुड़ाकर उनका पुनर्वास कराया। कार्यकर्ताओं ने 70 हजार से ज्यादा गौवंश का बचाव कर तस्करों से छुड़ाया। उन्होंने कहा कि विहिप ने प्रयत्न पूर्वक विधि प्रकोष्ठ के माध्यम से छह से ज्यादा राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून पारित कराने में सफलता प्राप्त की।
उन्होंने कहा कि 29 देशों में विहिप का कार्य संगठनात्मक समितियों के माध्यम से सफलतापूर्वक चल रहा है। अमेरिका में विगत साढ़े तीन वर्ष में 3 लाख से अधिक ईसाइयों ने हिन्दू धर्म अपनाया है। अफ्रीका के घाना में भी अनेक लोग हिन्दू बने हैं। विहिप के प्रयत्न से साढ़े 12 हजार ईसाई व मुस्लिम संस्थाओं की विदेशी फंडिंग बंद हुई है। यह पैसा हिन्दुओं के धर्मान्तरण के लिए आता था। उन्होंने कहा कि विहिप ने कार्य के विस्तार तथा घर वापसी के अभियान की दृष्टि से धर्म रक्षकों की नियुक्ति का निर्णय लिया था। इसके तहत 1 हजार से ज्यादा धर्म रक्षक नियुक्त किए जाएंगे। पिछले छह महीने में 286 धर्मरक्षकों की नियुक्ति हो चुकी है।
कुटुम्ब और परिवार प्रबोधन पर चर्चा करते हुए संतों ने कहा कि पश्चिमी देशों में परिवार समाप्त हो गया है। वहां केवल व्यक्ति इकाई के रूप में रह गया है। इसी प्रभाव के कारण भारत में भी परिवार टूट रहे हैं। वे कैसे बचें इसकी चिंता संतों को करनी होगी। पश्चिमी संस्कृति का भारतीय संस्कृति, संस्कार और संवेदना पर भारी आक्रमण हो रहा है। इससे परिवारों को बचना होगा। संतों ने कहा कि शिक्षा के साथ संस्कारों को जोड़ना पड़ेगा। जब शिक्षा संस्कारों से युक्त होगी, तो युवा निराशा, हताशा और अवसाद से निकलकर संस्कृति और संस्कारों से जुड़ेगा। चर्चा में संतों ने कहा कि नई शिक्षा नीति के तहत रामायण, गीता व अन्य धर्म ग्रंथों के पाठ पाठ्यक्रम में जुड़ने चाहिए। चर्चा के बीच संतों ने धर्मान्तरण रोकने के लिए सख्त केन्द्रीय कानून बनाने, हिन्दू मठ-मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त करने तथा इन धर्म स्थानों से आने वाली राशि हिन्दू धर्म से जुड़े कार्यों पर खर्च करने की मांग की।
जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष व श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत रवीन्द्रपुरी, स्वामी चिदानंद मुनि, डा. रामेश्वर प्रसाद, स्वामी विवेकानंद, स्वामी हरिचेतनानंद, केरल से स्वामी शक्ति शांतानंद सहित धर्माचार्यो, निर्मल पीठाधीश्वर श्रीमहंत ज्ञानदेव सिंह, निरंजन पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि, युगपुरुष स्वामी परमानंद, स्वामी प्रेमानंद, महामंडलेश्वर स्वामी जनार्दन हरी महाराज महाराष्ट्र स्वामी ललिता नंद, महंत रामकृष्ण दास स्वामी जितेंद्र दास कानपुर, स्वामी निजानंद गुजरात, स्वामी दिव्यानंद झारखंड, स्वामी रामदास हिमाचल, स्वामी आत्मानंद पुरी गुजरात, स्वामी चिदंबरा नंद, साध्वी प्राची, स्वामी रुपेन्द्र प्रकाश, स्वामी परमानंद सरस्वती ओड़ीशा सहित देशभर से विभिन्न मत-सम्प्रदायों के सैंकड़ों धर्माचार्यों ने प्रतिभाग किया।
उपवेशन में विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक दिनेश चंद्र, उपाध्यक्ष ओमप्रकाश सिंगल, उपाध्यक्ष एवं श्री रामजन्म भूमि मंदिर निर्माण समिति के महामंत्री चंपत राय, महामंत्री विनायक राव देशपांडे, महामंत्री मिलिंद परांडे, संगठन महामंत्री धर्म नारायण, केन्द्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह पंकज, संगठन मंत्री एवं प्रवक्ता अशोक तिवारी, राज बिहारी केंद्रीय सदस्य आदि ने सहयोग प्रदान किया।