Bollywood : (बॉलीवुड के अनकहे किस्से) वैजयंती माला, उनकी नानी, दिलीप कुमार और पंडित नेहरू का दिलचस्प किस्सा

अजय कुमार शर्मा

वैजयंती माला और दिलीप कुमार की जोड़ी अपने समय की लोकप्रिय जोड़ी थी जिसे दर्शक भी काफी पसंद करते थे। दिलीप कुमार ने वैजयंती माला के साथ सात फिल्में कीं- देवदास, नया दौर,मधुमति, पैगाम, गंगा जमुना, लीडर और संघर्ष। सच्चाई यह है थी कि दिलीप कुमार ने उनके साथ अपनी पहली ही फिल्म देवदास (1955) के दिनों में ही उन्हें अपनी भूमिका एवं जज्बाती दृश्यों में जान डालने के लिए कड़ी मेहनत करते हुए देखा था। एक साथी कलाकार के तौर पर वह अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार का पूरा ध्यान रखती थीं और सीनियर कलाकारों और यूनिट के लोगों से इज्जत से बात करती थीं।

यह अलग बात है कि उनकी हर शूटिंग में उनके साथ लगातार रहने वाली उनकी नानी यदुगिरी देवी चाहती थीं कि उनकी बेटी को सेट पर एक स्टार का दर्जा दिया जाए और उनके नाज नखरे उठाएं जाएं । अपनी नानी की बात मानते हुए ही वैजयंती माला शूटिंग के बाद सेट पर शायद ही कभी दिखाई देती थीं। वह अपने मेकअप रूम में ही रहती और घर से आया शाकाहारी खाना ही पसंद करती थीं। नानी के साथ दिलीप कुमार का एक रोचक किस्सा है । एस. एस. वासन की फिल्म पैगाम (1959 ) की शूटिंग मद्रास में उनके मशहूर जैमिनी स्टूडियो में हो रही थी । शूटिंग के दौरान एक दिन लंचब्रेक पर चर्चा हुई कि प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू दो दिन बाद किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए मद्रास आने वाले हैं और वापसी में एयरपोर्ट जाते हुए उनके पैगाम के सेट पर आने की उम्मीद है। पंडित नेहरू का नाम सुनते ही वैजयंती माला की नानी दिल्ली में हुए वैजयंती माला के एक नृत्य कार्यक्रम के बारे में बताने लगीं जिसमें पंडित जी मुख्य अतिथि थे। उस शाम और अगले दिन की शाम तक पूरी यूनिट नानी से पंडित नेहरू और पापा (वैजयंती माला का प्यार का नाम जो तमिल में बच्ची के लिए इस्तेमाल होता है ) की मुलाकात की लंबी और रोमांचक कहानी सुनती रही।

जैमिनी स्टूडियो के संस्थापक एसएस वासन साहब चाहते थे कि पंडित जी का स्वागत करने वाली टीम में सबसे आगे दिलीप कुमार रहें लेकिन दिलीप कुमार ने इसके लिए स्वयं नानी का नाम सुझाया और पंडित नेहरू के साथ उनके उस नृत्य कार्यक्रम का जिक्र करते हुए कहा कि अच्छा होगा कि नानी और वैजयंती माला आगे रहें। इसी योजना के अनुसार जब पंडित जी आए तो वैजयंती माला सबसे आगे खड़ी हुईं थीं जबकि दिलीप कुमार सबसे पीछे लाइन में खड़े हुए। दक्षिण की परंपरा के अनुसार पहले नेहरू जी का स्वागत फूल मालाओं से किया गया और फिर चांदी की सुराही से उन पर खुशबूदार जल का छिड़काव किया गया। नेहरू जी ने बड़ी सादगी से अभिवादन का जवाब दिया। वासन साहब उनके साथ ही खड़े थे और इस बात का इंतजार कर रहे थे कि शायद अब नेहरू जी वैजयंती माला को पहचान कर उनसे कुछ कहेंगे जो उनके सामने ही खड़ी थीं। तभी नेहरू जी ने अपनी खोजी निगाहों से इधर-उधर देखा और लाइन में किनारे पर खड़े दिलीप कुमार के पास पहुंचे और बोले…”युसूफ मैंने सुना था कि तुम यहां हो तो सोचा कि चला जाए।” पंडित जी ने बड़े प्यार से दिलीप कुमार के कंधे पर हाथ रख दिया। दिलीप कुमार इस के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। उन्हें यकीन करने में थोड़ा वक्त लगा कि देश के सबसे चहेते और महान नेता उनके साथ चल रहे हैं। पंडित जी स्टूडियो में करीब 15 मिनट रहे और दिलीप कुमार के साथ यही बात करते रहे कि सिनेमा में समाज को बदलने की कितनी बड़ी ताकत है। यह सब होने के बाद तो वैजयंती माला और उनकी नानी का बुरा हाल हो गया । शूटिंग के अगले कई दिनों तक दोनों दिलीप साहब से चेहरा छुपाती रहीं और फिर कभी भी पंडित जी और पापा की उस कहानी का जिक्र नहीं किया…।

चलते-चलते

गंगा जमुना की शूटिंग के दौरान वैजयंती माला की नानी बार-बार लीटर के हिसाब से दूध मंगाती थीं । सब यह सोचते कि आखिर इस दूध का होता क्या है ? कहीं वे वैजयंती माला को किल्योपेट्रा के तरह दूध से नहलाती तो नहीं? एक दिन दिलीप कुमार के छोटे भाई नासिर जिन्हे हंसी मजाक करना बहुत पसंद था कहीं से एक दुधारू भैंस ले आए और तय किया कि इसे वैजयंती माला के मेकअप रूम के तंबू के बाहर बांध दिया जाए । यह तो अच्छा हुआ कि दिलीप कुमार को समय रहते पता चल गया और उन्होंने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया वरना नानी पता नहीं क्या हंगामा कर देती।

(लेखक- राष्ट्रीय साहित्य संस्थान के सहायक संपादक हैं। नब्बे के दशक में खोजपूर्ण पत्रकारिता के लिए ख्यातिलब्ध रही प्रतिष्ठित पहली हिंदी वीडियो पत्रिका कालचक्र से संबद्ध रहे हैं। साहित्य, संस्कृति और सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं।)

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