वाराणसी, 24 मई (हि.स.)। ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जिला न्यायालय में सुनवाई चल रही है। मुकदमे को लेकर काशी ही नहीं पूरी दुनिया की नजर इस पर बनी हुई है। ऐसे माहौल में मत्स्यपुराण में वर्णित पांच हजार साल पुराने शहर काशी का मंगलवार को आधिकारिक जन्मदिन मनाया जा रहा है। बाबा की नगरी के जन्मदिन को लेकर सोशल मीडिया पर ही लोग उत्साहित हैं। शहर के प्राचीनतम होने का स्कंद पुराण, काशी खंड में लिखे तथ्यों को भी लोग लगातार शेयर कर रहे हैं।
दुनिया की सबसे प्राचीन नगरी में शुमार जीवंत अड़भंगी शहर को 24 मई 1956 को आधिकारिक तौर पर मान्यता तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ संपूर्णानंद ने प्रदान किया था। गजट के अनुसार काशी का 66वां जन्मदिन है। वाराणसी गजेटियर, 1965 में प्रकाशित किया गया था, उसके दसवें पृष्ठ पर जिले का प्रशासनिक नाम वाराणसी किये जाने की तिथि अंकित है। स्वतंत्रता के बाद प्रशासनिक तौर पर ‘वाराणसी’ नाम की स्वीकार्यता राज्य सरकार की संस्तुति से इसी दिन की गई थी। सरकारी गजट में वाराणसी की उम्र भले ही 66 वर्ष है लेकिन शहर का इतिहास हजारों साल पुराना है। बाबा की नगरी का जिक्र पद्यपुराण और मत्स्यपुराण में है। इसमें शहर के दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी का जिक्र है। स्कंद पुराण के काशी खंड में भी उल्लेख है।
शिवाराधना समिति के डॉ मृदुल मिश्र बताते हैं कि काशी नगरी पांच हजार साल से अधिक पुराना है। पुराणों में इसे मोक्ष की नगरी कहा गया है। अनादि काल से सनातनी बाबा विश्वनाथ के शहर में मोक्ष पाने आते हैं। काशी विश्वनाथ, विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा बताते हुए कहा गया है कि जहां यह विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग अवस्थित है, यह पावन नगरी ही जीव को मुक्ति प्रदान करने वाली है। महादेव स्वयं यहां मृत्यु प्राप्त करने वाले जीव के अंत काल में तारक मंत्र का उपदेश करते हैं, जिससे जीव को मुक्ति प्राप्त होती है।
काशी सुमेरू पीठ के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती ने बताया कि सृष्टि की आदि स्थली भी इसी नगरी को माना गया है। ये पावन नगरी प्रलय काल में भी नष्ट नहीं होती है। प्रलय काल में भगवान शंकर इसे स्वयं अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं। शिवपुराण के अनुसार प्रलयकाल में जब समस्त संसार का नाश हो जाता है, उस समय भी काशी अपने स्थान पर रहती है।
उन्होंने बताया कि मत्स्यपुराण में काशी की महिमा का बखान करते हुए कहा गया है कि जप, ध्यान, ज्ञान रहित और दुखी मनुष्य के लिए एकमात्र काशी में परमगति सुलभ है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि काशी कितनी पुरानी है। काशी महर्षि अगस्त्य, भगवान धन्वंतरि, गौतम बुद्ध, संत कबीर, अघोराचार्य बाबा कीनाराम, रानी लक्ष्मीबाई, पाणिनी, पार्श्वनाथ, पतंजलि, संत रैदास, स्वामी रामानन्दाचार्य, वल्लभाचार्य, शंकराचार्य, गोस्वामी तुलसीदास, महर्षि वेदव्यास की जन्म और कर्मस्थली रही है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस यहीं लिखा था। गौतम बुद्ध ने अपना प्रथम प्रवचन बनारस के ऐतिहासिक स्थली सारनाथ में दिया था।
स्वामी नरेन्द्रानंद ने बताया कि वाराणसी या बनारस नाम दो नदियों वरुणा नदी एवं असि नदी के नाम से मिलकर बनी है। काशी को अविमुक्त क्षेत्र, आनंद-कानन, महाश्मशान, सुरंधन, ब्रह्मावर्त, सुदर्शन, रम्य एवं काशी नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है। ऋग्वेद में शहर को काशी या कासी नाम से बुलाया गया है। उन्होंने बताया कि काशी शब्द सबसे पहले अथर्ववेद की पैप्पलाद शाखा से आया है और इसके बाद शतपथ में भी उल्लेख है। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में नगर की महिमा 15000 श्लोकों में कही गई है। उन्होंने बताया कि अग्निपुराण में असि नदी को व्युत्पन्न कर नासी भी कहा गया है। उन्होंने पौराणिक कथाओं का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि काशी नगर की स्थापना भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व की थी। ये शहर सनातनियों की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है।
बताते चलें कि अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन ने भी लिखा है कि बनारस इतिहास से भी पुरातन है। अति प्राचीन उपनिषद जाबालोपनिषद में काशी को अविमुक्त नगर कहा गया है। पद्यपुराण में भी दक्षिण-उत्तर में वरुणा और अस्सी नदी का जिक्र है, मत्स्यपुराण में वाराणसी का वर्णन करते हुए कहा गया है कि- वाराणस्यां नदी पु सिद्धगन्धर्वसेविता। प्रविष्टा त्रिपथा गंगा तस्मिन् क्षेत्रे मम प्रिये। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में काशी का उल्लेख मिलता है – ‘काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता:’। पुराणों के अनुसार यह आद्य वैष्णव स्थान है। पहले यह भगवान विष्णु (माधव) की पुरी थी। हरिवंशपुराण के अनुसार, काशी को बसाने वाले भरतवंशी राजा ‘काश’ थे। कुछ विद्वानों के मत में काशी वैदिक काल से भी पूर्व की नगरी है।