ढाका/कोलकाता, 24 मई (हि.स.)। भारत के पड़ोसी बांग्लादेश में लगातार अपनी सक्रियता बढ़ाने में जुटा चीन इस देश की आर्थिक व्यवस्था को नुकसान पहुंचाने के नए नए तरीके आजमा रहा है। इसी कड़ी में अब चीन का एक उत्पाद बांग्लादेश और उसकी सीमा से लगे भारत के पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों में मत्स्य उद्योग को नुकसान पहुंचा रहा है। यह एक प्रकार का मछली पकड़ने वाला जाल है, जो बांग्लादेश में चाइना दुआरी के नाम से मशहूर हो चला है।
अत्यंत हल्के और एवं सूक्ष्म बुनाई के चलते इसमें हर आकार की मछलियां बेहद आसानी से फंस जाती हैं। जाल में फंदे आकार में बेहद छोटे होने की वजह से छोटी मछलियां इसमें से निकल नहीं पाती और मर जाती हैं। इसके चलते बांग्लादेश के साथ-साथ पश्चिम बंगाल में भी मत्स्य उद्योग को खासा नुकसान पहुंच रहा है। चाइना दुआरी जाल सर्वप्रथम चीन से बांग्लादेश पहुंचाया गया और उसके बाद बांग्लादेश सीमा से लगे पश्चिम बंगाल के तटीय इलाकों में भी इसका प्रचलन बढ़ रहा है। चाईना दुआरी जाल की विशेष बुनाई के चलते कम मेहनत में अधिक मछली पकड़ने की सुगमता ने इसे रातों-रात लोकप्रिय बना दिया और मत्स्यजीवी इससे नुकसान को समझे बगैर बढ़-चढ़कर इसका इस्तेमाल करने लगे। हालांकि धीरे-धीरे कुछ बुद्धिजीवियों की समझ में बात आई और उन्होंने चीन के इस उत्पाद के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की है। इस संबंध में हिन्दुस्थान समाचार ने बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल के मत्स्य उद्योग से जुड़े कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की है।
वेस्ट बंगाल यूनाइटेड फिशरमैन एसोसिएशन के सह सचिव सतीनाथ पात्र ने बताया, ”चीनी जाल के बारे में मैंने सुना है। बंगाल के तटीय इलाकों में इस जाल का प्रवेश हो चुका है। यह जाल बांग्लादेश से तस्करी के जरिए भारतीय क्षेत्रों में लाया जा रहा है। इसे रोकने के लिए भारत सरकार को बांग्लादेश के साथ मिल कर सख्त कदम उठाने चाहिए अन्यथा देश में प्राकृतिक उपाय से उत्पादित मत्स्य संपदा को भारी नुकसान पहुंचेगा।”
उधर, बांग्लादेश मत्स्य जीवी फेडरेशन के अध्यक्ष रविंद्र नाथ बर्मन ने बताया कि बांग्लादेश में ही नहीं भारतीय मल्लाहों में भी चाइना दुआरी जाल खासा लोकप्रिय हो रहा है। इस जाल की खासियत यह है कि पानी के बहाव के साथ जो मछलियां जाल में एक बार फंस जाती हैं उनके लिए फिर बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता है। यही वजह है कि इस जाल की वजह से करोड़ों की तादाद में छोटी मछलियां मारी जा रही हैं। सिर्फ मछलियां ही नहीं, अन्य तरह के जलीय जीव भी इस जाल के चलते नष्ट हो रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप भविष्य में मछलियों के वंश विस्तार में रुकावट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। उन्होंने बताया कि बांग्लादेश में इसे ”मैजिक जाल” भी कहा जाता है। उन्होंने बताया कि पहले यह जाल सीधे चीन से आता था लेकिन अब सिर्फ धागे चीन से आते हैं और इसकी बुनाई बांग्लादेश में ही की जाती है। इस जाल के दोनों सिरे खुले होते हैं इसलिए इसे दुआरी कहा जाता है। उन्होंने कहा कि छोटी एवं मझोले आकार की मछलियों को बचाने के लिए यह जरूरी है कि भारत और बांग्लादेश मिलकर इस जाल का उत्पादन एवं क्रय विक्रय पर रोक लगाने की पहल करें।
बांग्लादेश जातीय पार्टी के चेयरमैन के सलाहकार एवं एक गैर सरकारी विश्वविद्यालय में प्राध्यापक डॉक्टर मेहे जेबुन्निसा रहमान टुंपा ने चीन को मानवता का शत्रु करार देते हुए कहा कि चीन के लिए मानवीय मूल्यों से अधिक अर्थार्जन अहमियत रखता है। स्वाधीनता के बाद से ही बांग्लादेश के खिलाफ चीन लगातार साजिशें करता रहा है। बांग्लादेश को दिवालिया करने की चीन की यह गहरी साजिश है। उन्होंने कहा कि चाईना दुआरी के अधिक इस्तेमाल से देश में मत्स्य संपदा के वंश विस्तार बाधित होने के साथ-साथ आर्थिक एवं पर्यावरण से संबंधित दुष्परिणाम भी हो सकते हैं।
बांग्लादेश नौसेना के पूर्व कैप्टन एवं चट्टाग्राम बंदरगाह के पूर्व चेयरमैन मोहम्मद नाजिम हुसैन ने कहा कि चीन झूठ का सहारा लेकर बांग्लादेश में कई नुकसानदेह उत्पाद की आपूर्ति करता रहा है। इसलिए चीन से आने वाले प्रत्येक उत्पाद को बाजार में छोड़ने से पहले अच्छी तरह जांच पड़ताल की जानी चाहिए। चाईना दुआरी जाल के दुष्परिणामों के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि छोटी प्रजाति की मछलियां एवं चारे जलाशय में कम गहराई वाली जगह पर ही रहते हैं। ऐसे स्थानों पर चाइना दुआरी जैसे खतरनाक जाल लगाना समूचे मत्स्य संपदा को नुकसान पहुंचाने जैसा है।
भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाके श्यामनगर के वरिष्ठ पत्रकार एवं शोधकर्ता अकबर कबीर कहते हैं कि चाईना दुआऱी जाल बांग्लादेश के रास्ते गुपचुप तरीके से भारतीय सीमा में प्रवेश कराये जा रहे हैं। ऐसे में छोटी एवं मझोले आकार की मछलियों के लिए यहां भी संकट गहराने लगा है। भारत और बांग्लादेश की सरकारों को इसके खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए।