Supreme Court : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में बताया- राजद्रोह मामले में धारा 124ए लगाने पर दोबारा करेंगे विचार

नई दिल्ली, 09 मई (हि.स.)। केंद्र सरकार ने कहा है कि उसने राजद्रोह के मामले में लगने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की फिर से जांच करने और इस पर दोबारा विचार करने का फैसला किया है। केंद्र सरकार ने एक हलफनामा के जरिये सुप्रीम कोर्ट को ये सूचित किया। कोर्ट इस मामले पर 10 मई को सुनवाई करेगा।

केंद्र सरकार ने हलफनामा के जरिये कहा है कि इस प्रावधान के बारे में विभिन्न न्यायविदों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और सामान्य रुप से नागरिकों की ओर से सार्वजनिक रुप से अलग-अलग विचार व्यक्त किए गए हैं। केंद्र सरकार ने कहा है कि वो प्रधानमंत्री की इस धारणा के अनुरुप है कि हमारे देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं, वह अपने औपनिवेशिक बोध को दूर करने की दिशा में काम करना चाहते हैं। इसी भावना के तहत केंद्र सरकार ने 2014-15 में 1500 से अधिक पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है। केंद्र सरकार ने 25 हजार से अधिक अनुपालन बोध को भी समाप्त कर दिया है जो हमारे देश के लोगों के लिए गैरजरुरी बाधा उत्पन्न कर रहे थे। विभिन्न किस्म के अपराद जो लोगों को बिना सोचे समझे बाधा पहुंचा रहे थे, उन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।

कोर्ट ने 5 मई को कहा था कि सबसे पहले वो इस बात पर विचार करेगा कि मामला संविधान बेंच को सौंपा जाए या नहीं। 15 जुलाई 2021 को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह जैसे क़ानून की ज़रूरत है। चीफ जस्टिस ने कहा था कि कभी महात्मा गांधी, तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज़ को दबाने के लिए ब्रिटिश सत्ता इस क़ानून का इस्तेमाल करती थी। क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है।

सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि राजद्रोह में दोषी साबित होने वालों की संख्या बहुत कम है। लेकिन अगर पुलिस या सरकार चाहे तो इसके जरिये किसी को भी फंसा सकती है। इन सब पर विचार करने की जरूरत है। याचिका सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एस जी बोम्बतकरे ने दायर की है।

सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि राजद्रोह कानून वापस नहीं लिया जाना चाहिए। बल्कि कोर्ट चाहे तो नए सख्त दिशानिर्देश जारी कर सकता है ताकि राष्ट्रीय हित में ही इस कानून का इस्तेमाल हो।

राजद्रोह के कानून के खिलाफ 12 जुलाई 2021 को मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ल की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता की ओर से वकील तनिमा किशोर ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए संविधान की धारा 19 का उल्लंघन करती है। यह धारा सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कानून की वैधता को बरकरार रखा था लेकिन अब इसके साठ साल बीतने के बाद ये कानून आज संवैधानिक कसौटी पर पास नहीं होता है।

याचिका में कहा गया है कि भारत पूरे लोकतांत्रिक दुनिया में अपने को लोकतंत्र कहता है। ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, घाना, नाइजीरिया और युगांडा ने राजद्रोह को अलोकतांत्रिक करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि दोनों याचिकाकर्ता एक मुखर और जिम्मेदार पत्रकार हैं। वे संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हैं। दोनों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कार्टून शेयर करने के लिए धारा 124ए के तहत राजद्रोह की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गईं हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *