नई दिल्ली, 03 मई (हि.स.)। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर देशवासियों से सतर्क रहने और सरकार के सभी दिशानिर्देशों का पालन करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि कोविड अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है।
राष्ट्रपति कोविन्द मंगलवार को रोहिणी में भगवान महावीर सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के नवीनीकरण का शिलान्यास करने के बाद कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जैन परंपरा में सेवा को प्राथमिकता दी गई है। 1986 में पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस अस्पताल की नींव रखी थी। 50 बिस्तरों वाले इस अस्पताल में अब 250 बिस्तरों की व्यवस्था के साथ अति आधुनिक अस्पताल बनाने की योजना है। यह 2023 तक बनकर तैयार हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि इस सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। यह सुविधाएं समाज के सभी वर्गों को सस्ती दरों पर और गरीबों को मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएंगी। राष्ट्रपति ने कोविड के दौरान भगवान महावीर अस्पताल के कोविड केयर अस्पताल के रूप में कार्य करने की प्रशंसा की।
राष्ट्रपति ने कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर देशवासियों को आगाह करते हुए कहा कि कोविड अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। उन्होंने सभी नागरिकों से सतर्क रहने और सरकार के सभी दिशानिर्देशों का पालन करने की अपील की।
फेस मास्क के महत्व के बारे में बोलते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हम जानते हैं कि आधुनिक इतिहास में सर्जिकल मास्क लगाने की शुरुआत वर्ष 1897 में हुई जब शल्य चिकित्सकों ने ऑपरेशन के दौरान स्वयं को बैक्टीरिया से बचाने के लिए मास्क का उपयोग करना शुरू किया। लेकिन जैन संतों ने सदियों पहले ही मास्क की उपयोगिता को समझ लिया था। मुंह और नाक को ढकने से वे जीवाणु-हिंसा से बचाव के साथ-साथ शरीर में जीवाणुओं के प्रवेश को भी रोक पाते थे जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहती थी।
उन्होंने कहा कि कोविड-19 की महामारी के कारण लगभग ढाई वर्षों से मास्क का उपयोग जीवाणुओं से बचाव के प्रभावी माध्यम के रूप में किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जैन संतों ने भी शारीरिक परिश्रम के महत्व को रेखांकित करते हुए पैदल भ्रमण पर बहुत जोर दिया है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह अस्पताल संतों द्वारा दिखाई गई वैज्ञानिक परंपराओं के आधार पर मानवता को स्वस्थ बनाने के मार्ग पर चलेगा।
राष्ट्रपति ने कहा कि जैन परंपरा हमें संतुलित और पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अपनाना सिखाती है। वर्तमान समय में सामान्य लोगों की जीवन-शैली और खान-पान का तरीका प्रकृति के अनुकूल नहीं है। हम जानते हैं कि जैन संत और उनके अनुशासित अनुयायी अपना भोजन सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच ही करते हैं। सूर्य की दैनिक गति के अनुसार जीवन शैली को अपनाना स्वस्थ रहने का एक आसान तरीका है। जैन संतों की आदर्श जीवन शैली से हमें यही शिक्षा मिलती है। उन्होंने कहा कि अस्पतालों में आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ ऐसी वैज्ञानिक परंपराओं का समन्वय स्वस्थ जीवन के लिए और भी सहायक होगा।
जैन संतों के साथ अपने जुड़ाव को याद करते हुए कहा कि राष्ट्रपति भवन में भी जैन संतों का सान्निध्य मिलता रहा है। इसी कड़ी में उन्होंने पिछले दिनों जैन साध्वी चंदना को पद्मश्री से सम्मानित करने का भी उल्लेख किया। चंदना आचार्य की उपाधि पाने वाली पहली महिला साध्वी हैं।
इस अवसर पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया, सांसद हंसराज हंस और अस्पताल के अध्यक्ष सुभाष ओसवाल जैन सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।