नई दिल्ली, 26 अप्रैल (हि.स.)। एक बार फिर से देश में समान नागरिक आचार संहिता का जिन्न बोतल से बाहर निकल आया है। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की राज्य सरकारों के समान नागरिक आचार संहिता लागू करने की पहल का विरोध शुरू हो गया है। मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस तरह की किसी भी कोशिश को गैर संवैधानिक करार देते हुए इसे संविधान में खुला हस्तक्षेप करार दिया है। बोर्ड का कहना है कि यह अल्पसंख्यक विरोधी है और मुसलमानों को किसी भी सूरत में कबूल नहीं है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा है कि भारतीय संविधान ने देश में बसने वाले हर नागरिक को अपने धर्म के अनुसार जीवन गुजारने की अनुमति दी है और इसको बुनियादी अधिकार में शामिल किया गया है। इस हक के तहत अल्पसंख्यकों, जनजातीय वर्गों के लिए उनकी मर्जी और इनके संस्कारों के अनुसार उनके पर्सनल लॉ अलग-अलग रखे गए हैं। इससे देश को कोई नुकसान नहीं होता है बल्कि आपसी मेलजोल, एकता और बहुसंख्यकों व अल्पसंख्यकों के बीच आपसी मेलजोल को कायम रखने में इससे मदद मिलती है। भविष्य में कई ट्राइबल बगावतों को खत्म करने के लिए इनकी इस तरह मांगों को कबूल किया गया है ताकि यह अपने जीवन में प्रचलित परम्पराओं को निभाने का काम कर सकें।
मौलाना खालिद का कहना है कि अब उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकार, केंद्र सरकार तरफ से समान नागरिक आचार संहिता का राग एक बार फिर से अलापना शुरू कर दिया गया है। यह बेवक्त की रागिनी है और हर व्यक्ति जानता है कि इसका मकसद देश की गिरती आर्थिक व्यवस्था, बेरोजगारी जैसे समस्याओं से आम लोगों का ध्यान हटाना है और नफरत के अपने एजेंडे को परवान चढ़ाना है। यह अल्पसंख्यक विरोधी और संविधान विरोधी कदम है। यह मुसलमानों के लिए हरगिज़ काबिले-कबूल नहीं है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस तरह के किसी भी क़दम की कठोर निंदा करता है और सरकार से अपील करता है कि वह इस तरह के प्रयासों से बचने की कोशिश करे।