नई दिल्ली, 1 अप्रैल (हि.स.)। भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने लगभग 136 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर कम चमक वाली आकाश गंगा की खोज की है। यह आकाश गंगा एक बहुत अधिक चमकीली आकाश गंगा के सामने स्थित है। यूवी और ऑप्टिकल टेलीस्कोप से ली गई छवियों में इसका पता चला है।
आकाश गंगा की खोज करने वाली वैज्ञानिकों की टीम में बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स की ज्योति यादव, मौसमी दास और सुधांशु बारवे के साथ कॉलेज डी फ्रांस के फ्रैंकोइस कॉम्ब्स शामिल हैं। निम्न सतह चमक वाली आकाश गंगा या अल्ट्रा-डिफ्यूज़ आकाश गंगा कहा जाता है और इनकी सतह की चमक आसपास के रात्रि आकाश की तुलना में कम से कम दस गुना कम होती है। ऐसी धुंधली आकाशगंगाएँ ब्रह्मांड के द्रव्यमान का 15 प्रतिशत तक का हिस्सा हो सकती हैं। हालांकि, उनकी अंतर्निहित कम चमक के कारण उनका पता लगाना मुश्किल है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक फीके आकाशगंगा का नाम यूवीआईटी जे2022 रखा है। इसके पीछे कारण यह है कि एस्ट्रोसैट पर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप के डेटा की मदद से इस आकाश गंगा की खोज की गई है। इस अध्ययन में चिली में वेरी लार्ज टेलीस्कोप पर मल्टी-यूनिट स्पेक्ट्रोस्कोपिक एक्सप्लोरर उपकरण और दक्षिण अफ्रीका में आईआरएसएफ और डार्क एनर्जी कैमरा लिगेसी सर्वे की छवियों का भी उपयोग किया। यह शोध ‘एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
क्या होते हैं आकाश गंगा
आकाश गंगा असंख्य तारों का एक विशाल पुंज होता हैं, जिसमें एक केन्द्रीय बल्ज एवं तीन घूर्णनशील भुजाएँ होती हैं। ये तीनों घूर्णनशील भुजाएँ अनेक तारों से निर्मित होती हैं। बल्ज, आकाशगंगा के केंद्र को कहा जाता है। प्रत्येक आकाशगंगा में करीब100 अरब तारें होते हैं। पृथ्वी की आकाश गंगा को मंदाकिनी कहा जाता है। इसकी आकृति स्पाइरल है। मिल्की वे रात के समय दिखाई पड़ने वाले तारों का समूह है,जो हमारी आकाशगंगा का ही भाग है।