Dr. Mohan Bhagwat : भारत के गौरवपूर्ण काल को साक्ष्य समेत रखने की जरूरत: डॉ. मोहन भागवत

नई दिल्ली, 01 मार्च (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि भारत के गौरवपूर्ण काल के प्रति श्रद्धा भाव जगाने के लिये हर संभव प्रयास पूरे साक्ष्य के साथ किये जाने चाहिये। भारत को विश्व में गौरवशाली बनाना है तो उसकी प्राचीनता और सनातनता को प्रमाण सहित स्थापित करना होगा। वे रविवार को इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के परिसर में ‘द्विरूपा सरस्वती’ पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में बोल रहे थे।

डॉ. मोहन भागवत ने कहा, “समाज में बड़ा वर्ग ऐसा है, जिनके मन में सरस्वती नदी के प्रति गहरी श्रद्धा है। लेकिन, शिक्षा के लिये साक्ष्य की जरूरत होती है। आज नई पीढ़ी को साक्ष्य चाहिये, इसलिये हमें अन्वेषण के कार्य को निरंतर आगे बढ़ाते रहना होगा।”

उन्होंने कहा कि ‘द्विरूपा सरस्वती’ पुस्तक प्रारंभ है, लक्ष्य तो अभी आगे हैं। डॉ. भागवत ने आगे कहा कि सरस्वती नदी से अपना वैदिक इतिहास जुड़ा है। अपनी सनातन परंपरा जुड़ी है। लेकिन, इन नदी को कल्पना मात्र बताकर हमारी संस्कृति को खंडित करने की कोशिश होती रही है। यदि भारतवर्ष को विश्व में मजबूती के साथ खड़ा करना है और विश्वगुरु बनाना है तो अपनी प्राचीनतम और सनातन परंपरा को स्थापित करना होगा। इस कार्य के लिये प्रमाण सहित वर्णन की आवश्यकता है।

सरस्वती नदी से जड़े विवाद का उल्लेख करते हुये डॉ. भागवत ने कहा कि सरस्वती नदी थी और है। इस बात को स्थापित करना है। हमें साक्ष्यों के साथ अपनी बात को उस ऊंचाई तक पहुंचानी चाहिये, जहां कोई सरस्वती नदी को यदि कल्पना बताये, तो वह स्वयं अप्रामाणिक सिद्ध हो जाए।

एक महत्वपूर्ण बात की तरफ संकते करते हुये डॉ. भागवत ने कहा कि भारत के गौरवपूर्ण अतीत को जागृत करने वाले जितने आयाम हैं, उन सभी पर शोधपरक कार्य होने चाहिये। सरस्वती नदी से जुड़ा कार्य उनमें एक है। ऐसे कार्यों के लिये उन्होंने बुद्धिजीवियों से आगे बढ़कर काम करने का आह्वान किया।

कार्यकर्म में बतौर विशेष अतिथि शिरकत कर रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने आर्य और सरस्वती से जुड़ी बहस का संदर्भ देते हुये कहा कि नई बहस के आगे बढ़ने से सारी यूरोपीय और अरब देशों की संस्कृति को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इसलिये जरूरत इस बात की है कि हम अपनी संस्कृति और सभ्यतागत सवालों का ठीक से अन्वेषण करें।

डॉ. जोशी ने कहा कि आज दुनिया में कई तरह की बहस चल रही है। उनके बीच हमें अपनी बातें वैज्ञानिक ढंग से रखनी चाहिये और बहस को आगे बढ़ना चाहिये। तभी हम इस बात को स्थापित करने में सफल हो पाएंगे कि वैदिक संस्कृति का प्रभाव दुनिया के अन्य भू-भागों में भी फैला हुआ है। ‘द्विरूपा सरस्वती’ का जिक्र करते हुये उन्होंने कहा कि पुस्तक यह अवसर देती है कि आगे हमें कहां जाना है।

इस अवसर पर आईजीएनसीए के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने कहा कि ‘द्विरूपा सरस्वती’ पुस्तक इतिहास की धारा को बदलने में सामर्थ्य है। आगे उन्होंने इस बात के संकेत दिये कि इस पुस्तक के प्रकाशन मात्र से विवाद थमने वाला नहीं है, इसलिये गहन शोध और अध्ययन का सिलसिला चलाते रहना होगा।

आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने कार्यक्रम के प्रारंभ में कहा कि यह पुस्तक विमर्श के लिये आधारभूमि तैयार करेगी। आगे उन्होंने कहा कि यह पुस्तक ‘जनपद संपदा’ विभाग के अंतर्गत चलने वाली ‘नदी संस्कृति परियोजना’ के तहत सामने आई है। इस दौरान पुस्तक के संपादक डॉ. महेश शर्मा ने भी अपनी बात रखी।

कार्यक्रम के दौरान प्रसिद्ध पुरातत्वविद बीबी लाल को भी सम्मानित किया गया। सम्मान उनके बेटे विंग कमांडर राजेश लाल ने ग्रहण किया। कार्यकर्म में राज्यसभा सदस्य सोनल मानसिंह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल समेत कई बुद्धिजीवी एवं शोधार्थी शामिल थे।

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