शिमला, 26 जनवरी (हि.स.)। गणतंत्र दिवस पर हर साल विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्तित्वों को पद्मश्री पुरस्कारों से नवाजे जाने की घोषणा की जा चुकी है। इस बार हिमाचल प्रदेश से दो हस्तियों का पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयन हुआ है। सिरमौर जिला से ताल्लुक रखने वाले जाने-माने लोक कलाकार विद्यानंद सरैक और चम्बा निवासी हस्तशिल्पी ललिता वकील को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा जाएगा। दोनों हस्तियों का पद्मश्री पुरस्कारों के चयन से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई है।
साहित्यकार, कलाकार और लोकगायक विद्यानंद सरैक ने जहां लोक संस्कृति के संरक्षण में अद्वितीय योगदान दिया है, वहीं ललिता ने चंबा रूमाल की हस्तकला को जीवित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 81 वर्षीय विद्यानंद सरैक का हिमाचली लोक संस्कृति के संरक्षण में अद्वितीय योगदान पद्मश्री के लिये अपना नाम चुने जाने की खबर सुनकर 81 वर्षीय विद्यानंद सरैक को यकीन नहीं हुआ।
विद्यानंद सरैक का जन्म 26 जून 1941 को सिरमौर जिला के राजगढ़ क्षेत्र के देवठी मझगांव में गरीब परिवार में हुआ। बचपन में पिता का निधन होने पर विद्यानंद सरैक ने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद स्नातक तक शिक्षा हासिल की। पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते चार वर्ष की आयु से ही वह करियाला (नाटक) मंच से जुड़ गए और लोक संस्कृति के प्रति उनका लगाव बढ़ता गया। उन्होंने हिमाचली संस्कृति व लोक विद्याओं पर किताबें लिखी हैं और सांस्कृतिक ध्रुव धरोहरों पर गहन अध्ययन भी किया है। यहीं नहीं उन्होंने ट्रेडिशनल फोक जैसे ठोडा सिंटू, बड़ाहलटू हिमाचल की देव पूजा पद्धति और पान चढे़ सहित नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के गीतांजलि संस्करण से 51 कविताओं का सिरमौरी भाषा में भी अनुवाद किया। इसके अलावा उन्होंने बच्चों का फोटो ड्रामा ‘भू रे एक रोटी’ के अलावा समाधान नाटक, जोकि सुकताल पर आधारित है, का भी मंचन किया है। विद्यानंद अपनी सांस्कृतिक मंडली स्वर्ग लोक नृत्य मंडल के साथ मिलकर व देश-विदेश में कई मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं।
विद्यानंद सरैक को इससे पहले भी कई प्रदेशों व संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है, जिनमें पंजाब कला शास्त्री अकादमी द्वारा लोकनृत्य ज्ञान लोक साहित्य पुरस्कार भी शामिल है। विद्यानंद को वर्ष 2016 का गीत एवं नाटक अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार जोगी देश के राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया गया था।
हिमाचल के प्राचीन चंबा रुमाल कला को नई पहचान देने वाली ललिता वकील को कला के क्षेत्र से पद्मश्री पुरस्कार की घोषणा से चम्बा जिला के लोग गदगद हैं। ललिता ने लुप्त होने की कगार पर आ चुके चम्बा रुमाल को न केवल पुनर्जीवित किया बल्कि इसको पूरे देश में विख्यात भी कराया। पिछले 50 सालों में ललिता ने चंबा रूमाल की हस्तकला को जीवित रखने और अन्य लोगों तक इसको पहुंचाने में विशेष योगदान दिया।
14 अप्रैल 1953 को चम्बा शहर के सपड़ी में जन्मी ललिता को चंबा रूमाल में महारत हासिल है। 16 साल की आयु में उन्होंने चम्बा रूमाल की कढ़ाई का काम शुरू कर दिया था। क्रोएशिए और धागे के मेल से बनने वाले चंबा रूमाल पर की गई कढ़ाई ऐसी होती है कि दोनों तरफ एक जैसी कढ़ाई के बेल बूटे बनकर उभरते हैं। यही इस रूमाल की खासियत भी है।
चंबा रूमाल अपनी अद्भुत कला और शानदार कशीदाकारी के कारण देश के अलावा विदेशी में भी लोकप्रिय है। चंबा रूमाल की कारीगरी मलमल, सिल्क और कॉटन के कपड़ों पर की जाती है। इस कला को सीखने के लिए ललिता को किसी कोचिंग संस्थान में नहीं जाना पड़ा। बल्कि अपने परिवार वालों से ही ललिता ने इस कला को सीखा। धीरे -धीरे वह इस कला को आगे बढ़ाती हुई चली गई। वह रूमाल पर कृष्णलीला, महाभारत के कई प्रसंग उकेरने लगी।
ललिता के काम की बदौलत उन्हें कलाश्री और कलानिधी अवार्ड से भी नवाजा गया है। इसके अलावा साल 1995 में बेस्ट क्राफ्ट वूमैन अवार्ड से लखनऊ में नवाजा गया। साल 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से भी उन्हें अवार्ड देकर नवाजा गया। ललिता वकील चंबा की एक अकेली ऐसी महिला है जिनको तीन बार पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
साल 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उनको राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा। इसके अलावा साल 2012 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने ललिता को शिल्प गुरु सम्मान प्रदान किया। यह सम्मान हासिल करने वाली ललिता हिमाचल प्रदेश की अकेली हस्तशिल्पी है।