इंडिया गेट पर 50 साल से जल रही थी ‘अमर जवान ज्योति’
– राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में दर्ज हैं आजादी के बाद शहीद हुए जांबाजों के नाम
नई दिल्ली, 21 जनवरी (हि.स.)। दिल्ली के ‘इंडिया गेट’ पर 50 साल से जल रही ‘अमर जवान ज्योति’ शुक्रवार की शाम राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ‘शाश्वत लौ’ के साथ विलीन हो गई। इंडिया गेट पर यह ज्योति उन सैनिकों की याद में जलाई गई थी जिन्होंने 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत के लिए अपनी जान कुर्बान की थी। इंडिया गेट के पास ही नए बनाए गए राष्ट्रीय युद्ध स्मारक में आजादी के बाद से देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले जांबाज शहीदों के नाम दर्ज किये गए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस साल 26 जनवरी को इसी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर जवानों को श्रद्धांजलि देंगे।
शुक्रवार की शाम 3.30 बजे तीनों सेनाओं के जवानों की एक टुकड़ी इंडिया गेट स्थित ‘अमर जवान ज्योति’ पर पहुंची और पूरे सम्मान के साथ मशाल की ज्वाला थामी। इस के बाद सेना बैंड की धुन के साथ सैनिकों की टुकड़ी अमर जवान ज्योति की मशाल लेकर राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ओर चली। लगभग 10 मिनट में मशाल को लेकर सेना की टुकड़ी राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पहुंची, जहां सैन्य सम्मान के साथ सबसे पहले एयर मार्शल बाल भद्र राधा कृष्णनन ने शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित करके श्रद्धांजलि दी। इसके बाद सैन्य धुन के बीच इंडिया गेट से लाई गई अमर जवान ज्योति को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की लौ के साथ मिलाने की रस्म अदा की गई। इस तरह इंडिया गेट’ पर 50 साल से जल रही ‘अमर जवान ज्योति’ अब राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की ‘शाश्वत लौ’ के साथ वीर सैनिकों की याद में जलेगी।
इंडिया गेट का इतिहास
ब्रिटिश सरकार ने 1914 से 1921 के बीच जान गंवाने वाले ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों की याद में राजपथ पर 42 मीटर ऊंचा इंडिया गेट बनबाया था। दरअसल, 1914 से 1918 तक प्रथम विश्व युद्ध में और 1919 में तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में 80 हजार से ज्यादा भारतीय सैनिक शहीद हुए थे। इंडिया गेट की सतह पर उन 80 हजार शहीदों के नाम खुदे हैं जिन्होंने प्रथम विश्व युद्ध और एंग्लो अफगान युद्ध में अंग्रेजों के लिए लड़ाई लड़ी थी। इंडिया गेट भारत के औपनिवेशिक अतीत का प्रतीक है। इसे सर एडविन लुटियंस ने डिजाइन किया था। इसकी आधारशिला 10 फरवरी, 1921 को रखी गई थी और यह 10 साल में बनकर तैयार हुआ था। 12 फरवरी, 1931 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इर्विन ने इंडिया गेट का उद्घाटन किया था।
क्या थी अमर जवान ज्योति
पाकिस्तान के साथ 1971 में हुए ऐतिहासिक युद्ध में भारतीय सेना अपना पराक्रम दिखाते हुए दुश्मन देश को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया और फलस्वरूप बांग्लादेश नामक नए देश का जन्म हुआ। उस युद्ध में भारतीय सेना के 3,843 जवान शहीद हुए थे। कुर्बानी देने वाले भारतीय सैनिकों की याद में तत्कालीन सरकार ने इंडिया गेट के नीचे ‘अमर जवान ज्योति’ स्थापित करने का फैसला किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी, 1972 को इसका उद्घाटन किया था। इंडिया गेट के नीचे एक काले रंग का स्मारक बनाया गया, जिस पर अमर जवान लिखा है। इस पर एल1ए1 सेल्फ लोडिंग उल्टी राइफल भी रखी गई, जिस पर एक सैनिक का हेलमेट टांगा गया। उन शहीदों की याद में जली वह मशाल पिछले 50 साल से निरंतर जलती रही है। इहर साल राष्ट्रीय उत्सवों पर यहीं शहीदों को नमन किये जाने की परंपरा रही है। इस ज्योति को जलाने के लिए 2006 तक एलपीजी का इस्तेमाल होता था लेकिन बाद में इसमें सीएनजी का इस्तेमाल होने लगा।
राष्ट्रीय समर स्मारक का निर्माण
इंडिया गेट परिसर में ही ‘अमर जवान ज्योति’ से 400 मीटर की दूरी पर 40 एकड़ जमीन पर 2019 में 176 करोड़ की लागत से राष्ट्रीय समर स्मारक का निर्माण कराया गया है। यहां भारतीय थल सेना, वायु सेना और नौसेना के उन शहीद सैनिकों और गुमनाम नायकों के नाम दर्ज किये गए हैं जिन्होंने आजादी के बाद से देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर किये हैं। 25 फरवरी, 2019 को प्रधानमंत्री ने इस समर स्मारक का उद्घाटन किया था। चीन के साथ 15/16 जून, 2020 में गलवान घाटी में शहीद हुए 20 सैनिकों के भी नाम इस युद्ध स्मारक की दीवारों पर दर्ज हैं। यह युद्ध स्मारक बनने के बाद से सभी विशेष अवसरों पर शहीदों को पुष्पांजलि समारोह अब यहीं पर किए जाते हैं। विदेशी मेहमान और सैन्य परंपरा के अनुसार तीनों सेनाओं के अधिकारी शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ ’71 के युद्ध में हासिल हुई जीत के 50 साल पूरे होने पर ‘स्वर्णिम विजय वर्ष’ का जश्न मनाने की शुरुआत 16 दिसम्बर, 2020 को राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की अनन्त लौ से ‘स्वर्णिम विजय मशाल’ को प्रज्ज्वलित करके की। इसके अलावा चार अन्य विजय मशालें प्रज्ज्वलित करके 1971 के युद्ध के परमवीर चक्र और महावीर चक्र विजेताओं के गांवों सहित देश के विभिन्न हिस्सों में भेजा गया। पूरे साल भर राष्ट्रव्यापी यात्रा पूरी करके चारों विजय मशालें 16 दिसम्बर, 2021 को दिल्ली लौटीं और राष्ट्रीय युद्ध स्मारक की शाश्वत लौ से मिल गईं।
क्यों मिलाई गईं लौ
अमर जवान ज्योति की मशाल को राष्ट्रीय समर स्मारक की मशाल के साथ मिलाने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि दो जगहों पर लौ (मशाल) का रखरखाव करना काफी मुश्किल हो रहा है। अब जब देश के शहीदों के लिये राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बन गया है, तो फिर अमर जवान ज्योति पर क्यों अलग से ज्योति जलाई जाती रहे। राष्ट्रीय समर स्मारक में शहीदों के नाम के साथ ही 21 सैनिकों की आवक्ष प्रतिमाओं के लिए भी एक समर्पित क्षेत्र है, जिन्हें ‘परम वीर चक्र’ से सम्मानित किया जा चुका है।
गणतंत्र दिवस परेड की 49 साल से कमेंट्री करने वाले ब्रिगेडियर चितरंजन सावंत (सेवानिवृत्त) का कहना है कि शहीद भारतीय सैनिकों की याद में इंडिया गेट अंग्रेजों ने बनवाया था जबकि 1947 से आज तक देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले सैनिकों की याद में राष्ट्रीय समर स्मारक बनाया गया है। इसी राष्ट्रीय समर स्मारक की शाश्वत लौ के साथ अमर जवान ज्योति की जलती का विलय किया गया है। लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) पीजेएस पन्नू ने कहा कि सरकार का यह फैसला बहुत अच्छा है, स्थानांतरण का सवाल नहीं है, सम्मान वहीं है जहां सैनिकों के नाम लिखे जाते हैं। राष्ट्रीय समर स्मारक ही एकमात्र स्थान है जहां सैनिकों को सम्मानित किया जाना चाहिए।