नई दिल्ली, 19 जनवरी (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित 12 भाजपा विधायकों की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने सभी पक्षों से एक हफ्ते में अपनी दलीलों पर लिखित नोट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
11 जनवरी को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र विधानसभा की ओर से एक साल के लिए निलंबित 12 भाजपा विधायकों को निलंबित किए जाने को निष्कासन से भी बदतर करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि एक साल के दौरान निर्वाचन क्षेत्र का कोई प्रतिनिधित्व नहीं हुआ। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि नियमों के मुताबिक विधानसभा के पास किसी सदस्य को 60 दिनों से अधिक निलंबित करने का कोई अधिकार नहीं है। कोर्ट ने संविधान की धारा 190(4) का हवाला देते हुए कहा था कि अगर कोई सदस्य सदन की अनुमति के बिना 60 दिनों की अवधि तक अनुपस्थित रहता है तो वह सीट खाली मानी जाएगी। ऐसे में यह फैसला निष्कासन से भी बदतर है। कोई भी इन निर्वाचन क्षेत्रों का सदन में प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है जब वे वहां नहीं हैं। यह सदस्य को दंडित नहीं कर रहा है बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित कर रहा है।
14 दिसंबर, 2021 को कोर्ट ने निलंबित 12 भाजपा विधायकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए महाराष्ट्र विधानसभा के सचिव और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया था। इन विधायकों ने अपनी याचिका में स्पीकर की ओर से दुर्व्यवहार के मामले में की गई कार्रवाई को जरूरत से ज्यादा कठोर बताया है। याचिका में कहा गया है कि लोकतंत्र में पक्ष-विपक्ष में बहस होती रहती है। महाराष्ट्र में विपक्ष की आवाज को दबाया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि स्पीकर को 12 विधायकों को अपना स्पष्टीकरण देने का अवसर देना चाहिए था। सत्तारूढ़ दल के कुछ विधायक भी स्पीकर के कक्ष में मौजूद थे।
याचिका में कहा गया है कि एक साल के लिए सदन से निलंबित करने का फैसला जरूरत से ज्यादा कठोर है। ऐसा करना केवल विपक्ष की ताकत को कम करने के लिए की गई है। उल्लेखनीय है कि पिछले 6 जुलाई को महाराष्ट्र विधानसभा के अंदर और बाहर स्पीकर के साथ दुर्व्यवहार करने के आरोप में भाजपा के 12 विधायकों को विधानसभा से एक साल के लिए निलंबित किया गया था।