हिन्द महासागर क्षेत्र में समुद्री शक्ति का वैश्विक और क्षेत्रीय संतुलन तेजी से बदला : घोरमडे

आईओआर की चुनौतियों का सामना करने के लिए नौसेना की क्षमता बढ़ाने के प्रयास

  • ‘विशाखापत्तनम’ और ‘वेला’ स्वदेशी क्षमता प्रदर्शित करने वाले प्रमुख मील के पत्थर

नई दिल्ली, 17 नवम्बर (हि.स.)। भारतीय नौसेना के उप प्रमुख वाइस एडमिरल एसएन घोरमडे ने कहा है कि हिन्द महासागर क्षेत्र (आईओआर) में समुद्री शक्ति का वैश्विक और क्षेत्रीय संतुलन तेजी से बदल रहा है। उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय नौसेना की क्षमता बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं ताकि हमारे बल का स्तर उत्तरोत्तर बढ़ता रहे। सामरिक स्वतंत्रता पर नौसेना का पूर्ण और केंद्रित जोर भारत सरकार की ”आत्मनिर्भर भारत” पहल के राष्ट्रीय उद्देश्य के अनुरूप है। भारतीय नौसेना के लिए स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता हमेशा से ”मंत्र” रहा है।

उप नौसेना प्रमुख मंगलवार को नई दिल्ली में प्रोजेक्ट 15बी के पहले जहाज ”विशाखापत्तनम” और कलवरी क्लास की चौथी पनडुब्बी ”वेला” की कमीशनिंग से पहले एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। ”विशाखापत्तनम” जहाज 21 नवंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पनडुब्बी ”वेला” को 25 नवम्बर को नेवी चीफ करमबीर सिंह नौसेना के बेड़े में शामिल करेंगे। दोनों प्लेटफॉर्म मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड, मुंबई में बनाए गए हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय नौसेना का इन-हाउस डिज़ाइन संगठन, नौसेना डिज़ाइन निदेशालय छोटे जहाज से लेकर विमान वाहक तक 57 वर्षों से अधिक समय से स्वदेशी डिज़ाइन विकसित कर रहा है। इन संगठनों की डिजाइन पर अब तक 90 से अधिक जहाजों का निर्माण किया गया है।

वाइस एडमिरल घोरमडे ने कहा कि ‘विशाखापत्तनम’ और ‘वेला’ की कमीशनिंग जटिल लड़ाकू प्लेटफॉर्म बनाने की स्वदेशी क्षमता को प्रदर्शित करने वाले प्रमुख मील के पत्थर हैं। यह जहाज पानी के ऊपर और भीतर दोनों क्षेत्रों में खतरों को दूर करने के लिए हमारी क्षमता और लड़ाकू शक्ति को बढ़ाएंगे। इन दोनों प्लेटफार्मों को तैयार करके मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड ने युद्धपोत, पनडुब्बी डिजाइन और निर्माण के क्षेत्र में भारत की ‘आत्मनिर्भरता’ को और मजबूत किया है।

उन्होंने बताया कि इस समय विभिन्न भारतीय शिपयार्डों में 39 नौसेना पोत और पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है। प्रोजेक्ट 15बी के चार जहाजों के नाम देश के प्रमुख शहरों के नाम पर विशाखापत्तनम, मोरमुगाओ, इंफाल और सूरत रखे गए हैं। इस क्लास का दूसरा वॉरशिप अगले साल, तीसरा 2024 में और चौथा जहाज 2025 में मिलेगा। पहले गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर विशाखापट्टनम की लम्बाई 163 मीटर, चौड़ाई 17 मीटर और वजन 7,400 टन है। इसकी अधिकतम स्पीड 30 नॉटिकल माइल्स तक जा सकती है। यह दुश्मन के राडार से बचकर हर तरह के हमले कर सकता है।

उन्होंने बताया कि विशाखापत्तनम विध्वंसक जहाज को कई प्रमुख स्वदेशी हथियारों स्वदेशी मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली, सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइल ब्रह्मोस, एलएंडटी के टॉरपीडो ट्यूब और लॉन्चर, सुपर गन माउंट के साथ लैस किया गया है। इस परियोजना में 75% स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल किया गया है। विशाखापत्तनम और वेला के नौसेना में शामिल होने से न केवल हमारी रक्षा तैयारियों में वृद्धि होगी, बल्कि 1971 के युद्ध के दौरान शहीद हुए जवानों के प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजलि भी है। भारत ने पिछले पच्चीस वर्षों से अपनी सबमरीन बनाने की अपनी क्षमता साबित की है।

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