असम : बीकेएस ने उठाई असम के किसानों की समस्या

सरकार से किसानों को राहत देने का किया आह्वान

गुवाहाटी, 22 मई (हि.स.)। कोरोना की दूसरी लहर ने असम के दैनिक दिनचर्या को बुरी तरह से प्रभावित किया है। खासकर कृषक समाज पर भी काफी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। हम उन सभी लोगों के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ सेवा प्रदान करते हैं जो कोरोना से प्रभावित हैं। उन सभी लोगों को, जो सेवा कर रहे हैं, जिसमें डॉक्टर, समाज के अच्छे व्यक्ति और कानून और व्यवस्था में शामिल पुलिस कर्मी शामिल हैं। हम कोरोना के इस कठिन दौर में किसानों की वर्तमान और भविष्य की सुरक्षा को देखते हुए सभी संबंधित पक्षों का ध्य़ान कुछ मुद्दों पर आकृष्ट करना चाहते हैं।

ये बातें शनिवार को राजधानी के आलोक भवन में भारतीय किसान संघ (बीकेएस), असम इकाई की ओर से आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए बीकेएस, असम के सांगठनिक सचिव कृष्ण कांत बोरा ने कही।

उन्होंने कहा कि किसानों द्वारा उत्पादित साक-सब्जी, विशेष रूप से तरबूज, कुम्हड़ा आदि को बाजार मूल्य मिलना तो दूर की बात किसान इनको बेच भी नहीं पा रहे हैं। साथ ही 2020-21 में केसीसी कृषि ऋण लेने वाले वास्तविक किसानों को कृषि ऋण में छूट दी जाए। मोरीगांव, उदालगुड़ी, दरंग, लखीमपुर आदि कई जिलों में किसान बड़े पैमाने पर कद्दू और तरबूज उगाते हैं। ये उत्पाद बाजार के आभाव में खेत में ही खराब हो रहे हैं। हम सरकार से मांग करते हैं कि किसानों के उत्पाद को बेचने और संरक्षण की व्यवस्था के लिए समय रहते कदम उठाया जाए।

आधिकारिक तौर पर एफसीआई द्वारा धान खरीदने की समय सीमा 30 मई से बढ़ाकर जुलाई या अगस्त की जाए। सीमित चावल खरीद केंद्रों और दिन में उत्पादन के हिसाब से कम गुणवत्ता वाले चावल खरीदने की व्यवस्था के कारण अधिक से अधिक किसान अभी भी इस सुविधा से वंचित हैं। इसलिए इस प्रणाली को और अधिक दक्ष बनाया जाना चाहिए और खरीद केंद्रों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। चावल के बीज का उत्पादन करने वाले किसान अभी तक असम बीज प्रमाण पत्र टैग स्थापित नहीं कर पाए हैं इसलिए बाजार में नहीं बेच पाते हैं। इसलिए इस टैग की व्यवस्था जल्द की जानी चाहिए और इस टैग की व्यवस्था जिला स्तर पर की जानी चाहिए। सरकार को जिला स्तर पर किसानों से धान का बीज खरीदकर लाभार्थियों उसे वितरण की व्यवस्था करनी चाहिए। सरकार को बीज खरीद के लिहाज से असम में उत्पादित बीजों को शत प्रतिशत प्राथमिकता देनी चाहिए। 40 किग्रा की बोरी यूरिया उर्वरक की एमआरपी कीमत 266.50 रुपये है, हालांकि हर जिले में इसकी अत्यधिक कीमत देखने को मिल रही है।

कृष्ण कांत बोरा ने कहा कि दुर्भाग्यवश, यूरिया के संबंध में नियंत्रण की कमी के कारण जुलाई या अगस्त में कीमतों में 450 से 500 रुपये की असामान्य वृद्धि हुई। सरकार से बेईमान व्यापारियों को नियंत्रित करने और प्रत्येक जिले में किफायती मूल्य पर किसानों को उर्वरक की आपूर्ति करने का हम आह्वान करते हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि पाने वाले और असली किसानों का नाम पहले ही सरकारी सूची से काट दिया गया है। इस संबंध में सरकार को अतिशीघ्र व्यवस्था करने की हम मांग करते हैं। साथ ही सरकार को इस संबंध में समीक्षा करनी चाहिए। सरकार द्वारा पहले से ही लागू स्वायल हेल्थ कार्ड का प्रावधान काम के क्षेत्र में विफल हो गया है इसलिए हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह निजी एजेंसियों के माध्यम से या स्थानीय उद्यमी युवाओं या किसानों की मदद से इस प्रणाली को व्यवस्थित रूप से लागू करने की व्यवस्था करे। इससे रोजगार और स्वरोजगार की संभावना भी बढ़ेगी।

पिछले वर्ष अफ्रीकन स्वाइन फ्लू की वजह से राज्य के लगभग सभी सुअर पालकों के सुअर मारे गये हैं। पहले से प्रभावित किसानों की जानकारी सरकार के हाथ में है। हम सरकार से मांग करते हैं कि सभी बड़े और छोटे सुअर पशुपालकों को और राहत देने की योजना को लागू किया जाए। हमें लगता है कि दुग्ध उत्पादक दुग्ध बाजार में नहीं बेच पा रहे हैं। इस स्थिति में हमें लगता है कि सरकार को उनकी अधिक सुरक्षा के मद्देनजर संसाधनों के संरक्षण (प्रसंस्करण) आदि के बारे में सोचना चाहिए। इस मौके पर बीकेएस, असम इकाई के अन्य पदाधिकारी भी मौजूद थे।

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