सुल्तानपुर, 19 मई (हि.स.)। कोरोना महामारी के इस दौर में मुंह पर चढ़ा मॉस्क जब बार-बार नाक से नीचे आने की जद्दोजहद में हो और पुलिसिया डर से राह चलते लोगों की नाक पर मजबूरी में चढ़ जाता हो, ऐसे हालात में घंटों मॉस्क और पीपीई किट पहने दिन रात प्रसूताओं की देखभाल में लगीं नर्सें वास्तव में धरती के भगवान से कम नहीं हैं। अस्पताल में कार्यरत प्रिया चौधरी कहती हैं कर्तव्य और जिम्मेदारी के आगे कोरोना संक्रमण कुछ भी नहीं है।
-निडर होकर देती हैं स्वास्थ्य सेवाएं
अस्पतालों में कोरोना संक्रमण महामारी की इस मुश्किल घड़ी में प्रसव कक्ष में गूंजती किलकारियों के पीछे नर्सों की मेहनत की कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती। वह भी महामारी के ऐसे हालात में जब कोरोना संक्रमित के अपने भी नजदीक आने से डरते हों और दाह संस्कार की रस्म निभाने के लिए पड़ोसियों के कंधों पर निर्भर हों। ऐसे में चिकित्सा विभाग के लोग ही हर किसी के लिए भगवान बनकर आ खड़े हुए हैं।
मां-बच्चे जोखिम में हों तो जिम्मेदारी बनती है कि उसे पहले सुरक्षित करें
जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अखण्डनगर के प्रसव कक्ष में कार्यरत नर्स मेंटर प्रिया चौधरी ने हिन्दुस्थान समाचार से अपनी बात को साझा किया। कहती हैं कभी-कभी इतना भी समय नहीं होता कि गर्भवती महिला की कोरोना जांच करवाकर फिर उसे छुएं, हमें तुरंत उनका इलाज करना पड़ता है। प्रसव और मातृत्व सेवाओं की ड्यूटी ही ऐसी है कि इसमें विलम्ब नहीं किया जा सकता। इतना ही नहीं हम डर के कारण इसे मना भी नहीं कर सकते। इससे मां और बच्चे की जान जोखिम में हो सकती है।
पिता के अंतिम दर्शन भी नहीं कर सकीं
प्रसव कक्ष में मौजूद उन तमाम नर्सों की अपनी भी कई मजबूरियां हैं। कोई महीनों से अपने परिवार से दूर है,तो कोई अपने पिता के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाईं। स्वास्थ्य केंद्र अखण्डनगर के प्रसव कक्ष में कार्यरत स्टाफ नर्स सुषमा के पिता हाल ही में कोरोना की जंग हार गए। लेकिन मजबूरी ऐसी कि सुषमा अपने पिता के अंतिम दर्शन भी नहीं कर पायीं।
बारह घंटे निभाती अपनी ड्यूटी
प्रिया बताती हैं कि स्वास्थ्य केंद्र अखण्डनगर के प्रसव कक्ष में हम दो लोग ही कार्यरत हैं। और बारी-बारी से प्रतिदिन 12 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है, वहीं यदि मेडिकल इमरजेंसी की वजह से कोई नहीं आता तो 24 घंटे भी काम करना पड़ता है।