व्यथा: अपने बिछड़े अपनों से, हंसते खेलते बिखरे परिवार

रजनीश पाण्डेय

रायबरेली, 13 मई(हि.स.)। मिट्टी का शरीर तो मिट्टी में मिल जाता है, लेकिन रिश्ते मिट्टी के नहीं होते, यह अपनों को खोने के बाद हमेशा याद आते हैं। कोरोना के इस दौर में ऐसे कई परिवार हैं जिन्होंने कुछ ही दिनों में अपनों को खोया है, हंसते खेलते परिवार देखते ही देखते बिखर गए। ये परिवार अब इन्हीं रिश्तों की यादों के भरोसे जी रहे हैं। कहीं एक ही परिवार के चार सदस्य अपनों को छोड़ गए, वहीं तीन भाइयों की जान एक महीने के अंदर चली गई। बेटे की मौत सुनकर एक घंटे में पिता ने दम तोड़ दिया तो बहु की मौत ससुर सहन नहीं कर पाए और कुछ ही घंटों में उनकी भी मौत हो गई। ऐसे कई कहानियां मन को विचलित करती हैं।
 रायबरेली के महराजगंज के एक परिवार ने 40 दिन में तीन भाइयों सहित चार लोगों को खो दिया। परिवार में पहली मौत श्याम मिश्रा की पत्नी रामश्री मिश्रा की हुई, उन्हें बुख़ार और खांसी की शिकायत थी। कुछ ही दिन बाद श्याम के बड़े भाई श्री कृष्ण मिश्र को भी बुख़ार आया और सीएससी में उनकी मौत हो गई। उनकी चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि भाई श्याम मिश्र की मौत हो गई। कुछ ही दिनों बाद एक और भाई रामजी मिश्र की भी मौत हो गई। ऊंचाहार के आरखा में एक महीने में तीन सगे भाइयों की मौत हो गई। पहले कमलेश वर्मा का निधन हुआ,उनकी तेरहवीं के बाद दूसरे भाई मूलचंद की मौत हो गई। भाई की मौत की जानकारी मिलने पर बड़े भाई फूलचंद की हालत बिगड़ी और लख़नऊ में उन्होंने भी जान गवां दी। 
 छतोह के एक शिक्षक मतगणना की ड्यूटी कर घर आये उनका ऑक्सीजन लेवल कम हुआ और अस्पताल में उनकी मौत हो गई जैसे ही पिता को इसकी जानकारी मिली कुछ ही घंटों में उन्होंने भी दम तोड़ दिया। पिता पुत्र की यह मौत लोगों को भाव विह्वल करती है। रायबरेली में गदागंज के थुलराई में भी कोरोना संक्रमित बहु की मौत को सेवानिवृत्त बीएसए सह नहीं पाए और एक घंटे में उनकी भी मौत हो गई। इन मौतों से परिवार के परिवार बिखर गए और अब रिश्तों की यादों के सहारे सब जीने को मजबूर हैं। कोरोना के इस दौर में लोगों ने अपनो को खोया है एक ही झटके में परिवार बिखर गए। हालांकि प्रशासन अब इन मौतों पर अलग-अलग व्याख्या कर रहा है लेकिन मौत तो मौत होती है, जिसने अपनों को अपनों से छीन लिया। भरे पूरे परिवार बिखर गए, जिनकी अब इनके लिए यादें ही बाकी हैं।

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