सहरसा,09 मई (हि.स.)। मेवाड़ के राजपूत राजवंश के महान हिंदू शासक वीर सपूत महाराजा शिरोमणि महाराणा प्रताप की 481वीं जयंती शनिवार को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते अपने आवास पर मनाया गया।
अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पूर्व अध्यक्ष ज्योति प्रसाद सिंह की अगुवाई में परिवार एवं दोस्तों के बीच सादगीपूर्ण रूप से मनाया।मौजूद लोगों ने महापराक्रमी, देशभक्त महाराणा प्रताप के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उनको नमन किया।पुष्पांजलि के बाद वक्ताओं ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महाराणा प्रताप का नाम इतिहास में वीरता,देशभक्ति और दृढ प्रण के लिए अमर है। वे अपने कुल देवता एकलिंग महादेव का बहुत बड़े भक्त थे। जिसकी स्थापना मेवाड़ के संस्थापक बाप्पा रावल ने आठवीं शताब्दी में किये थे।
सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे जो मुगल सम्राट अकबर को लगातार टक्कर देते रहे। अकबर बिना युद्ध के महाराणा प्रताप को अपने अधीन लाने अपने राजदूत मो. जलाल खाँ, मान सिंह, भगवान दास और राजा टोडरमल को भेजा पर सभी को निराश लौटना पड़ा। उन्होंने मुगलों की अधीनता यह कहते अस्वीकार किया कि राजपूत योद्धा यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। परिणाम स्वरूप हल्दी घाटी का युद्ध मेवाड़ के 20 हजार सैनिक और मुगलों के 85 हजार सैनिको के बीच हुआ।
मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप स्वयं कर रहे थे ।साथ में राजा भील एकमात्र मुस्लिम सरदार हकीम खाँ सुरी थे। वही मुगल सेना का नेतृत्व मान सिंह तथा आसफ खाँ ने किया। अप्रत्यक्ष रूप से आसफ खाँ ने इसे जेहाद की संज्ञा दिया था। इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ पर देखा जाय तो महाराणा प्रताप विजय हुये,क्योंकि अकबर की विशाल सेना के सामने मुठ्ठीभर मेवाड़ की सेना कितनी देर टिक पाते, पर ऐसा नहीं हुआ अकबर के योद्धाओं को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। मुगलों की सेना मैदान छोड़ भागना पडा।युद्ध के बाद भी अकबर महाराणा प्रताप को न तो बंदी बना सका न ही झुका सका। महान वो होता है जो अपने देश, जाति, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार का समझौता न करें और सतत संधर्ष करता रहे। ऐसे ही व्यक्ति लोगों के दिलों में हमेशा जिंदा रहते हैं।इस अवसर पर परिवार के अलावे पिंकू सिंह, कुमार आशुतोष, संजय राणा, संजीव सिंह, कुमार सौरभ, विश्वजीत कश्यप, रौशन सिंह, अवनीश सिंह,विपुल सिंह, गुंजेश सिंह आदि लोग मौजूद थे।