बांदा, 08 मई (हि.स.)। बुन्देलखण्ड में अधिक तापमान कृषि के लिये वरदान भी है। अधिक तापमान से खेत के खरपतवार एवं हानिकारक जीवों का नाश होता है। इसके लिये किसानों को अपने खेत की गहरी जुताई करनी पड़ेगी। कृषक मई-जून के महीने में मिट्टी पलटने वाले हल (एमबी प्लाऊ) से खेतों की ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करे तो किसानों को इसके अनेक लाभ प्राप्त होगेे।
यह जानकारी देते हुए बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डा. यू. एस. गौतम ने बताया कि इस प्रकार की जुताई से मृदा का सूर्य की किरणों से सीधा उपचार होता है। इस जुताई से हानिकारक कीट व पौध रोगकारक नष्ट हो जाते है। मिट्टी की जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है जिससे जड़ों की अच्छी वृद्धि होती है। इस कार्य से पीणकनाशियों के अवशेषों का तीव्र विघटन होता है, इसके साथ-साथ मृदा भी संरक्षित होती है। ग्रीष्मकालीन जुताई के पश्चात खेती की लागत में कमी आती है साथ ही उपज में लाभ औसतन 10 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इस पद्धति को अपनाने से बुन्देलखण्ड ही नहीं बल्कि सभी कृषकों की आय में वृद्धि होगी। कृषि विश्वविद्यालय, बांदा में सह प्राध्यापक के पद पर तैनात कीट वैज्ञानिक डा. बी. के. सिंह का कहना है कि ग्रीष्मकालीन जुताई से किसानो को बहुत सारे लाभ मिलेंगे। बस ध्यान देने की आवश्यकता है कि इसे कब और कैसे किया जाए। वैज्ञानिक डा. सिंह ने बताया कि ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई के लिये वैज्ञानिकों द्वारा प्रसार किया जा रहा है जिससे किसानों में अधिक से अधिक जागरूकता लाई जा सके। ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई रबी मौसम की फसल कटने के बाद शुरू हो जाती है, जो बरसात प्रारम्भ होने तक चलती रहती है। बुन्देलखण्ड परिक्षेत्र में मई व जून में तापमान 45 से 49 डिग्री तक होता है। इस समय ग्रीष्मकालीन जुताई के लिये सबसे उपयुक्त रहता है।
कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि गहरी जोताई का मृदा के भौतिक गुणों पर प्रभाव पड़ता है, इससे हानिकारक कीटों से बचाव तथा खरपतवार नियंत्रित होता है, साथ ही मृदा में वायु संचार में बढ़ोत्तरी होती है। जल धारण में वृद्धि के अलावा पौधों के जड़ विकास में तथा मृदा संरक्षण में सहायक होता है। बुन्देलखण्ड में खरीफ ऋतु में आच्छादन कम होता है जिसके वैज्ञानिक रूप से बहुत से नुकसान हैं। किसान भाई ऐसे में तिल फसल का चुनाव करके वैज्ञानिक ढंग से खेती करते हैं तो उन्हें अधिक मुनाफा प्राप्त होगा। तिल की वैज्ञानिक खेती के लिये कृषि विश्वविद्यालय बांदा के वैज्ञानिकों से सम्पर्क कर सकते हैं।
2021-05-08