’छोटे चौधरी’ ने ताउम्र लड़ी ’बड़े चौधरी’ के राजनीतिक वारिस की जंग

मेरठ, 06 मई (हि.स.)। किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत को लेकर छोटे चौधरी अजित सिंह और समाजवादी दिग्गज मुलायम सिंह यादव के बीच ताउम्र जंग छिड़ी रही। दोनों नेता खुद को बड़े चौधरी का सच्चा राजनीतिक वारिस बताते रहे। इस जंग में 1989 में मुलायम सिंह ने अजित सिंह को करारी मात देकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।

जनता पार्टी टूटने के बाद चौधरी चरण सिंह ने लोकदल नाम से नए दल का गठन किया। 1987 में बड़े चौधरी के निधन के बाद लोकदल पर कब्जे को लेकर उनके बेटे अजित सिंह और दूसरे नेताओं में जंग छिड़ गई। इस जंग में मात खाने के बाद अजित सिंह ने लोकदल अजित का गठन किया तो दूसरा गुट लोकदल बहुगुणा कहलाया। जहां अजित बड़े चौधरी का पुत्र होने के कारण खुद को उनकी राजनीतिक विरासत का स्वाभाविक वारिस मानते थे तो दिग्गज समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव खुद को उनका सच्चा राजनीतिक वारिस बताने लगे। 
चार दलों ने मिलकर बनाया जनता दल1989 में जनता पार्टी, जनमोर्चा, लोकदल (अजित), लोकदल (बहुगुणा) चार दलों ने मिलकर ’जनता दल’ का गठन किया। इसके बाद लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ा। केंद्र में विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बन गई। 
अजित सिंह घोषित हो गए थे मुख्यमंत्रीउत्तर प्रदेश में 425 विधानसभा सीटों में से जनता दल को 208 सीटों पर जीत हासिल हुई। बहुमत के लिए 14 विधायकों की जरूरत थी। प्रधानमंत्री वीपी सिंह उत्तर प्रदेश में अजित सिंह को मुख्यमंत्री और मुलायम सिंह यादव को उप मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे। अजित सिंह को मुख्यमंत्री घोषित कर दिया गया, लेकिन मुलायम सिंह के सियासी दांव के कारण अजित सपने संजोते रह गए और मुलायम मुख्यमंत्री बन गए।
गुप्त मतदान में मुख्यमंत्री चुने गए मुलायममुख्यमंत्री के लिए मुलायम सिंह की दावेदारी होने पर वीपी सिंह ने मुख्यमंत्री पद का फैसला गुप्त मतदान के लिए करने का निर्णय लिया। बंद दरवाजों के बीच कूटनीति के धुरंधर मुलायम सिंह ने अजित खेमे के 11 विधायकों को अपने पक्ष में कर लिया और अजित सिंह पांच वोटों से मुख्यमंत्री का पद हार गए। उस समय डीपी यादव, बेनी प्रसाद वर्मा ने खुलकर मुलायम सिंह की मदद की। पहली बार मुलायम सिंह यादव ने मुख्यमंत्री बन गए।
लगातार सक्रिय रहे मुलायम सिंहबड़े चैधरी की राजनीतिक विरासत हासिल करने के लिए मुलायम सिंह यादव लगातार सक्रिय रहे। जबकि चौधरी चरण सिंह का पुत्र होने के कारण अजित सिंह खुद को उनकी विरासत का उत्तराधिकारी मानते थे। मुख्यमंत्री पद के लिए चुने जाने से पहले मुलायम सिंह लगातार सक्रिय रहे। जानकार बताते हैं कि उस समय मुलायम सिंह ने अजित खेमे के विधायकों को व्यक्तिगत रूप से फोन किए थे और उन्हें अपने पाले में करने में कामयाब रहे। इसके बाद तो अजित सिंह और मुलायम सिंह के बीच छत्तीस का आंकड़ा हो गया। हालांकि बाद में 2003 में मुलायम सिंह और अजित सिंह उत्तर प्रदेश की सत्ता में भी साझीदार रहे, लेकिन दोनों के मन कभी नहीं मिल सकें। मुलायम सिंह प्रत्येक सार्वजनिक मंच से खुद को चौधरी चरण सिंह का सच्चा राजनीतिक उत्तराधिकारी बताते रहें।

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