स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी प्रेस की स्वतंत्रता

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (3 मई) पर विशेष योगेश कुमार गोयलप्रतिवर्ष 3 मई को ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस’ मनाया जाता है। प्रेस को सदैव लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की संज्ञा दी जाती रही है क्योंकि लोकतंत्र की मजबूती में इसकी बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यही कारण है कि स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की स्वतंत्रता को बहुत अहम माना गया है लेकिन विडम्बना है कि विगत कुछ वर्षों से प्रेस स्वतंत्रता के मामले में लगातार कमी देखी जा रही है। अब अंग्रेजी शब्द PRESS के शाब्दिक अर्थ को भी समझें। अंग्रेजी वर्णमाला के इन पांच अक्षरों का काफी गहरा अर्थ है। पी-पब्लिक, आर-रिलेटेड, ई-इमरजेंसी, एस-सोशल, एस-सर्विस अर्थात् जनता से संबंधित आपातकालीन सामाजिक सेवा। भारत में प्रेस की भूमिका और उसकी ताकत को रेखांकित करते हुए एक बार अकबर इलाहाबादी ने कहा था, ‘‘न खींचो कमान, न तलवार निकालो, जब तोप हो मुकाबिल, तब अखबार निकालो।’’ उनके इस कथन का आशय यही था कि कलम तोप व तलवार तथा अन्य किसी भी हथियार से ज्यादा ताकतवर है। दरअसल कलम को तलवार से भी ज्यादा ताकतवर और तलवार की धार से भी ज्यादा प्रभावी इसलिए माना गया है क्योंकि इसी की सजगता के कारण न केवल भारत बल्कि अनेक देशों में पिछले कुछ दशकों के भीतर बड़े-बड़े घोटालों का पर्दाफाश हो सका। जिसके चलते बड़े-बड़े उद्योगपतियों, नेताओं तथा विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों को एक ही झटके में अर्श से फर्श पर आना पड़ा।
1970 के दशक में अमेरिका के मशहूर ‘वाटरगेट’ कांड का भंडाफोड़ हुआ था, जिसके चलते अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को पद छोड़ना पड़ा था। भारत में भी मुख्यमंत्री और मंत्री पदों पर रहे कुछ आला दर्जे के नेता प्रेस की सजगता के ही कारण भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों में आज भी जेल की हवा खा रहे हैं। संभवतः यही कारण है कि समय-समय पर कलम रूपी इस हथियार को भोथरा बनाने या तोड़ने के कुचक्र होते रहे हैं और विभिन्न अवसरों पर न केवल भारत में बल्कि दुनियाभर में सच की कीमत कुछ पत्रकारों को अपनी जान देकर भी चुकानी पड़ती है। 3 दिसम्बर 1950 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपने सम्बोधन में कहा था, ‘‘मैं प्रेस पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, उसकी स्वतंत्रता के बेजा इस्तेमाल के तमाम खतरों के बावजूद पूरी तरह स्वतंत्र प्रेस रखना चाहूंगा क्योंकि प्रेस की स्वतंत्रता एक नारा भर नहीं है बल्कि लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है।’’ पिछले दशकों में प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में स्थितियां काफी बदल गई हैं। आज दुनियाभर में पत्रकारों पर राजनीतिक, अपराधिक और आतंकी समूहों का सर्वाधिक खतरा है और भारत भी इस मामले में अछूता नहीं है।
पेरिस स्थित ‘रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स’ (आरएसएफ) अथवा ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ नामक संस्था द्वारा हर साल अपनी वार्षिक रिपोर्ट में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर जो तथ्य प्रस्तुत किए जाते रहे हैं, वे सदैव चौंकाने वाले होते हैं। ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ एक ऐसा गैर-लाभकारी संगठन है, जो विश्वभर के पत्रकारों पर हमलों का दस्तावेजीकरण करने और मुकाबला करने के लिए कार्यरत है और प्रतिवर्ष ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ अर्थात् ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक’ नामक रिपोर्ट पेश करता है। ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ में उसने भारत सहित विभिन्न देशों में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति की विवेचना करते हुए स्पष्ट किया था कि किस प्रकार विश्वभर में पत्रकारों के खिलाफ घृणा हिंसा में बदल गई है, जिससे दुनियाभर में पत्रकारों में डर बढ़ा है।
20 अप्रैल 2021 को जारी रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ की वार्षिक रिपोर्ट ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2021’ में 180 देशों में से पिछले साल की भांति 46.56 स्कोर के साथ भारत 142वें स्थान पर है जबकि 2019 में भारत 140वें स्थान पर था। नॉर्वे ने पांचवें वर्ष भी अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा है जबकि दूसरे स्थान पर फिनलैंड, तीसरे पर स्वीडन और चौथे पर डेनमार्क हैं। इरीट्रिया सूचकांक के सबसे निचले 180वें पायदान पर जबकि उत्तरी कोरिया 179वें, तुर्कमेनिस्तान 178वें और चीन 177वें स्थान पर हैं। जर्मनी 13वें जबकि अमेरिका एक पायदान नीचे खिसककर 44वें स्थान पर है। ब्राजील भारत के साथ 142वें जबकि मेक्सिको 143वें और रूस 150वें स्थान पर है। भारत के पड़ोसी देशों की बात करें तो नेपाल 106वें, श्रीलंका 127वें, पाकिस्तान 145वें और बांग्लादेश 152वें स्थान पर हैं। यह सूचकांक 180 देशों और क्षेत्रों में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति का मूल्यांकन करने के लिए ‘रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स’ द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित किया जाता है। सूचकांक में प्रेस आजादी के लिहाज से देशों को ‘बुरा’, ‘बहुत बुरा’ और ‘समस्याग्रस्त’ की श्रेणी में रखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 73 देशों में प्रेस की स्थिति बहुत बुरी है जबकि 59 देशों में बुरी स्थिति में है और बाकी देश कुछ बेहतर हैं लेकिन इनकी स्थिति भी समस्याग्रस्त ही है। रिपोर्ट के अनुसार कोरोनाकाल में कई देशों की सरकारों ने पत्रकारिता पर कई प्रतिबंध लगाए, खासकर एशिया, मध्य पूर्व यूरोप में स्थिति ज्यादा खराब है।
भारत के लोकतंत्र को एक ओर जहां दुनिया का सबसे सफल और बड़ा लोकतंत्र कहा जाता है, वहीं अगर नार्वे जैसा छोटा सा देश प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में शीर्ष स्थान पर विराजमान है तो यह स्थिति भारत जैसे विशाल लोकतांत्रिक देश के लिए सही नहीं है। प्रेस की आजादी के मामले में अगर नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देश हमसे आगे हैं तो गंभीरता से मंथन करने की जरूरत है कि हम इस मामले में वर्ष दर वर्ष क्यों फिसल रहे हैं? संस्था की वर्ष 2009 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत प्रेस की आजादी के मामले में 109वें पायदान पर था लेकिन 2021 तक 33 पायदान लुढ़ककर 142वें स्थान पर पहुंच गया है। प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में यह गिरावट स्वस्थ लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। प्रेस की स्वतंत्रता में कमी आने का सीधा और स्पष्ट संकेत यही है कि लोकतंत्र की मूल भावना में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का जो अधिकार निहित है, उसमें धीरे-धीरे कमी आ रही है।
अगर प्रेस की स्वतंत्रता पर इसी प्रकार प्रश्नचिन्ह लगते रहे तो पत्रकारों से सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे उठाने की कल्पना कैसे की जा सकेगी? हालांकि विभिन्न अवसरों पर कुछ पत्रकारों पर दलाली खाने और भ्रष्ट राजनीतिक या प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा बनने के आरोप भी लगते रहे हैं, इसलिए यह भी बेहद जरूरी है कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ ‘प्रेस’ को भी अपनी सीमाओं और मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए अपनी स्वतंत्रता का सही इस्तेमाल करना चाहिए। देश में प्रेस की स्वतंत्रता बरकरार रहे, इसके लिए किसी मीडिया संस्थान से जुड़े पत्रकार हों या स्वतंत्र पत्रकार, उनकी सुरक्षा को लेकर कड़े कानून बनाए जाने की सख्त दरकार है ताकि बगैर किसी दबाव या भय के पत्रकार अपना कर्त्तव्य बखूबी निभाते रहें।

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