ढाका, 30 अप्रैल: बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने पूर्व इस्कॉन नेता और हिंदू भिक्षु चिन्मय कृष्ण दास को छह महीने जेल में रहने के बाद जमानत दे दी है। पिछले वर्ष उनकी गिरफ्तारी से भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव पैदा हो गया था। आज सुनवाई के बाद दो न्यायाधीशों की पीठ ने उनकी जमानत मंजूर कर ली। उनके वकील प्रहलाद देबनाथ ने कहा कि यदि सर्वोच्च न्यायालय का अपीलीय प्रभाग उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाता है, तो चिन्मय कृष्ण दास को बहुत जल्द जेल से रिहा कर दिया जाएगा।
चिन्मय कृष्ण दास को ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस की डिटेक्टिव ब्रांच (डीबी) ने 25 नवंबर, 2024 को ढाका के शाहजलाल हवाई अड्डे से गिरफ्तार किया था। उन पर देशद्रोह और बांग्लादेश के राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करने का आरोप लगाया गया था, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “न्यायिक उत्पीड़न” के रूप में निंदा की गई है।
उनके वकील अपूर्व कुमार भट्टाचार्य ने कहा कि चिन्मय दास गंभीर रूप से बीमार थे और उन्हें मुकदमा शुरू हुए बिना ही लंबे समय तक जेल में रखा गया था। उनकी जमानत याचिका कई बार खारिज हो चुकी है। 11 दिसंबर को उनकी जमानत फिर खारिज कर दी गई। इसी दौरान खबर आई कि जेल में उन्हें जरूरी चिकित्सा सुविधा नहीं दी गई।
चिन्मय दास ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के उत्पीड़न के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया है। उनकी गिरफ्तारी से बांग्लादेश और भारत के हिंदू समुदायों में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। इस्कॉन सहित विभिन्न हिंदू संगठनों ने उनकी तत्काल रिहाई की मांग की। भारत ने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके शांतिपूर्ण एकत्र होने के अधिकार को सुनिश्चित करने का आह्वान किया है।
चिन्मय दास की गिरफ्तारी को अगस्त 2024 में शेख हसीना सरकार के जाने के बाद से बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर चरमपंथी हमलों की निरंतरता के रूप में देखा जा रहा है। भारत इस स्थिति को दोनों देशों के बीच संबंधों में तनाव के रूप में देखता है। कई लोग उच्च न्यायालय के इस जमानत आदेश को न्याय के मार्ग पर एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं।
