राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सभी नागरिकों से 2047 तक विकसित भारत बनाने के राष्ट्रीय लक्ष्य हासिल करने की दिशा में अपने बुनियादी कर्तव्यों और कार्यों को निभाने के लिए अपने आचरण में संवैधानिक आदर्शों को आत्मसात करने का आग्रह किया। संविधान दिवस के अवसर पर आज नई दिल्ली के सेन्ट्रल हॉल ऑफ संविधान सदन में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने भारतीय संविधान को एक जीवित और प्रगतिशील दस्तावेज के रूप में व्याख्यायित किया। इसके जरिये देश ने सामाजिक न्याय और समावेशी विकास के लक्ष्यों को हासिल किया है।
उन्होंने कहा कि संविधान के अनुसार आम लोगों के जीवन को सुगम बनाने के लिए कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की एक साथ मिलकर काम करने की ड्यूटी है। राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि सरकार ने समाज के सभी वर्गों विशेषकर कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए हाल के वर्षों में कई उपाय किये हैं। उन्होंने कहा कि गरीबों को अपने मकान मिल रहे हैं और देश में विश्व स्तरीय अवसंरचना विकसित की जा रही है।
राष्ट्रपति ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण से संबंधित नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किये जाने की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम ने महिला शक्तिकरण के नए युग को सृजित किया है।
राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखित न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों की बात कही। ये आदर्श सभी नागरिकों को फलने-फूलने और समाज में एक दूसरे की देखरेख करने के अवसर देते हैं। राष्ट्रपति ने वस्तु एवं सेवा कर प्रणाली के कार्यान्वयन और अन्य पिछडा वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा देने तथा तीन नए आपराधिक कानूनों की भी बात कही।
उन्होंने इन ऐतिहासिक फैसलों के लिए सांसदों की सराहना की। राष्ट्रपति ने कहा कि अपने नए विचारों के साथ भारत एक नई वैश्विक पहचान प्राप्त कर रहा है।
उन्होंने कहा कि विश्व में अग्रणी अर्थव्यवस्था बनकर भारत विश्वबन्धु की भूमिका भी निभा रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर ने भारतीय संविधान पर प्रगतिशील और समावेशी छाप छोड़ी है। अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने संविधान निर्मित करने में संविधान सभा की 15 महिला सदस्यों के योगदान को याद किया।
उन्होंने कहा कि संविधान सभा में देश के सभी क्षेत्रों के प्रतिनिधि थे। उन्होंने कहा कि अगले वर्ष राष्ट्र 26 जनवरी को एक गणतंत्र होने की अपनी 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। इस प्रकार के अवसर देशवासियों को भविष्य की बेहतर योजनाएं बनाने के अवसर प्रदान करते हैं।
इस अवसर पर उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि यह महत्वपूर्ण दिन देश के संविधान को अंगीकार करने के 75 वर्षों को मनाने के रूप में एक ऐतिहासिक पड़ाव को चिन्हित करता है। यह विश्व के सबसे बड़े और अत्यधिक गतिशील लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
उन्होंने कहा कि भारत उल्लेखनीय आर्थिक विकास, मजबूत बुनियादी ढांचे और व्यापक स्तर पर डिजिटल फैलाव के साथ आगे बढ़ रहा है। इन सभी उपलब्धियों को अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति मिल रही है। श्री धनखड़ ने कहा कि ये उपलब्धियां भारतीय लोकतंत्र को प्रभावशाली रूप से प्रोत्साहित करने वाले संविधान का प्रमाण हैं।
उन्होंने कहा कि यह संविधान में निहित मूल्यों और इसके मार्गदर्शक सिद्धांतों के प्रति वचनबद्धता की पुनः पुष्टि करने का अवसर है।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय संविधान देश के लोगों की वर्षों की तपस्या, बलिदान, प्रतिभा और शक्ति का परिणाम है। उन्होंने कहा कि देश की भौगोलिक और सामाजिक विविधताओं को एक सूत्र में बांधने के लगभग तीन वर्षों के कठिन कार्य के बाद संविधान तैयार किया गया था।
श्री बिरला ने कहा कि संविधान देश में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का एक प्रेरक बल रहा है। उन्होंने सभी सांसदों को अपने क्षेत्रों में लोगों के बीच संविधान के अंगीकार किए जाने के 75वें वर्ष को मनाने का आग्रह किया।
श्री बिडला ने सांसदों से रचनात्मक परंपरा का पालन करने और संविधान सभा द्वारा निर्धारित मर्यादित चर्चा करने का आग्रह किया।
इस कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रपति ने भारत के संविधान के अंगीकार की 75वीं वर्षगांठ को समर्पित एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया। इस अवसर पर मेकिंग ऑफ द काँस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया: ए ग्ल्म्पिस” और ”मेकिंग ऑफ द काँस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया एण्ड इट्स ग्लोरियस जर्नी शीर्षक की पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
संस्कृत और मैथिली भाषाओं में संविधान जारी किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान आर्ट ऑफ कंस्टीट्यूशन ऑफ इंडिया को समर्पित एक बुकलेट का भी अनावरण किया गया।
इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, कई केंद्रीय मंत्री, लोक सभा और राज्य सभा में विपक्ष के नेता, सांसद और अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भागीदारी की।