नई दिल्ली, 16 अक्टूबर (हि.स.)। इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (आईआरईएफ) ने केंद्र सरकार से गैर बासमती चावल के निर्यात से न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) की बाध्यता को हटाने की मांग की है। फिलहाल गैर बासमती चावल के लिए मिनिमम एक्सपोर्ट प्राइस 490 डॉलर प्रति टन है। चावल के निर्यातकों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल की कीमत भारत सरकार की तय न्यूनतम कीमत से भी कम हो गई हैं, जिसके कारण भारतीय कारोबारियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
आईआरईएफ का कहना है कि फिलहाल देश में ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के तहत 235 लाख टन चावल का स्टॉक मौजूद है। इस सीजन में 275 लाख टन अतिरिक्त चावल बाजार में आ जाएगा। इस तरह देश में चावल का विशाल भंडार इकट्ठा हो जाएगा। ऐसे में अगर अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल का निर्यात नहीं किया गया तो इससे किसानों और कारोबारियों को नुकसान होने के साथ ही देश की आवश्यकता से अधिक बचे हुए चावल के भंडारण और रखरखाव पर भी सरकार को अतिरिक्त खर्च करना पड़ेगा।
इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चावल के दाम में लगातार गिरावट आई है। ऐसी स्थिति में भारतीय कारोबारी तभी निर्यात के मोर्चे पर सफलता हासिल कर सकते हैं, जब वे प्रतिस्पर्धात्मक मूल्य पर चावल को निर्यात के लिए पेश करें। ऐसा तभी हो सकता है, जब सरकार न्यूनतम निर्यात मूल्य की बाध्यता को समाप्त कर दे, क्योंकि इस बाध्यता की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में अब भारतीय चावल की मांग कम होती जा रही है। चावल की खरीद करने वाले ज्यादातर देश भारत का गैर बासमती चावल खरीदने की जगह कम कीमत में मिल रहे दूसरे देशों के चावल खरीद रहे हैं। अगर ये स्थिति जारी रही तो भारतीय कारोबारियों का स्टॉक फंस सकता है, जिससे चावल निर्यात से जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स को नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।