-आठ साल में महज चहेते फर्जी लोगो का हुआ प्रमोशन
पूर्वी चंपारण,27 सितम्बर (हि.स.)। उत्तर बिहार के मोतिहारी में स्थित महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापनाकाल से सुर्खियों में है। कुलपतियों की मनमानी एवं चंद प्रोफेसरों की चाटुकारिता ने इस विवि की छवि पर फिर से प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। बीते 3 अक्टूबर 2016 को विवि की स्थापना हुई थी। लिहाजा सर्वप्रथम स्थायी रूप से सेवा देने वाले लगभग 30 असिस्टेंट प्रोफेसर नियुक्त किए गए थे, जिनका चयन लिखित परीक्षा एवं साक्षात्कार के आधार पर हुआ था।
यह विवि देश के उन चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक है, जहां साक्षात्कार के लिए चयन लिखित परीक्षा के आधार पर किया गया था। यूजीसी के नियमानुसार, लेवल 10 से लेवल 11 में प्रमोशन के लिए 4 वर्षों का अनुभव, एक ओरिएंटेशन, एक रिफ्रेशर कोर्स, और यूजीसी लिस्टेड जर्नल में एक शोधपत्र प्रकाशित होना चाहिए। जाहिर है कि विश्वविद्यालय के अधिकतर असिस्टेंट प्रोफेसर यूजीसी की इन निर्धारित योग्यताओं को पूरा करते हैं, लेकिन अबतक उनका प्रमोशन नहीं हुआ है।
इसके ठीक उलट, बिहार के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इनसे बाद में नियुक्त असिस्टेंट प्रोफेसर लेवल 10 से लेवल 11 में प्रमोट हो चुके हैं। ऐसे में यहां प्रमोशन को रोके रखना विवि प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। आश्चर्यजनक है,कि मोतिहारी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कई विवादित एसोसिएट प्रोफेसर, जिनकी योग्यता और अनुभव प्रमाण पत्र यूजीसी के मानदंडों के अनुरूप नहीं हैं, बावजूद उनका प्रमोशन प्रभाव व कथित रिश्वतखोरी कर 2019 में तत्कालीन कुलपति संजीव शर्मा द्वारा प्रोफेसर पद पर कर दिया गया।
उल्लेखनीय है कि यह वही संजीव शर्मा थे, जिनकी कुलपति पद पर नियुक्ति विजिलेंस जांच की तथ्य को छिपाकर की गई थी। उन पर आईपीसी की धारा 420, महिला उत्पीड़न और अन्य अकादमिक घोटालों के मामले दर्ज थे। शर्मा ने मोतिहारी केंद्रीय विश्वविद्यालय में बिना एक्जीक्यूटिव काउंसिल की मंजूरी के 50 से अधिक अवैध नियुक्तियां की। इसके अलावा, अवैध एकेडमिक काउंसिल और 15 से अधिक अवैध केंद्र भी खोले थे, जिसके बारे में शिक्षा मंत्रालय ने उनसे पूछताछ की थी। विश्वविद्यालय के चांसलर पद्मश्री महेश शर्मा और तत्कालीन एक्जीक्यूटिव काउंसिल की सदस्य प्रोफेसर किरण घई ने भी राष्ट्रपति, शिक्षा मंत्री केंद्र सरकार तथा शिक्षा मंत्रालय को प्रोफेसर संजीव शर्मा द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के बारे में लिखित शिकायत देकर अवगत कराया था।
हास्यास्पद है कि पूर्व कुलपति अरविंद अग्रवाल द्वारा कराए गए लिखित परीक्षा में जो उम्मीदवार चयनित उम्मीदवारों से आधे मार्क्स लाये थे, वे दो साल बाद प्रोफेसर संजीव शर्मा द्वारा एसोसिएट प्रोफेसर पद पर चयनित कर लिए गए। इससे इतर 2017 में नॉन-टीचिंग स्टाफ की बहाली हुई, जिसमें दिनेश हुड्डा और शैलेंद्र सिंह चौहान की विवादित नियुक्ति यूजीसी के नियमों की अवहेलना करते हुए की गई। लेकिन पिछले महीने वर्तमान कुलपति प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव ने आनन-फानन में नॉन-टीचिंग स्टाॅफ को प्रमोशन दे दिया, जबकि असिस्टेंट प्रोफेसर की बैक एक्सपीरियंस और प्रमोशन की प्रक्रिया अधर में लटकी हुई है।
कई असिस्टेंट प्रोफेसरो में डॉ. पंकज कुमार सिंह, जो पहले छत्तीसगढ़ के सरकारी कॉलेज में पदस्थापित थे, आज भी न्याय की प्रतीक्षा के लिए टकटकी लगाये बैठे है। दिलचस्प तो यह है कि चंद वैसे लोग जिन्हें मात्र 100 रुपये प्रति क्लास के हिसाब से पढ़ाने का अनुभव है, वे प्रोफेसर बन बैठे हैं। गौर करने योग्य होगा कि हाल ही में दिल्ली लोकपाल का एक निर्णय आया है, जिसमें उल्लेख किया गया है कि महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय ने खुद मंत्रालय को यह रिपोर्ट भेजी है कि दो प्रोफेसरों की नियुक्ति गलत तरीके से हुई है। सूत्रों के माने तो, ये फर्जीवाड़ा पकड़ में आने के बाद एक प्रोफेसर दूसरे विश्वश्विद्यालय में चलता बने। साथ हीं वर्तमान कुलपति भी संजीव शर्मा की तरह पुनः यूजीसी और विश्विद्यालय के ऑर्डिनेंस का उल्लंघन कर विश्विद्यालय का एकेडमिक और एग्जीक्यूटिव कॉउन्सिल का पिछले साल गठन किये हैं।ऐसे में सिविल सोसाइटी के लोग इस आशंका में डुबे है,कि बिहार का भविष्य मोतिहारी केन्द्रीय विश्वविधालय ऐसे ही अंधेरे में डुबा रहेगा? या नई अकादिम किरण से प्रकाशित होगा?