भारत की संस्थाओं को बदनाम करने वालों को कोई सम्मान नहीं मिलना चाहिए : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली, 19 सितंबर (हि.स.)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को कहा कि भारत की संस्थाओं को बदनाम करने वालों को कोई सम्मान नहीं मिलना चाहिए।

संसद भवन में गुरुवार को संसद टीवी@3 कॉन्क्लेव के उद्घाटन सत्र में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए, धनखड़ ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि कैसे देश के अंदर और बाहर कुछ लोग भारत की संस्थाओं और राष्ट्रीय प्रगति को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं। धनखड़ ने कहा, “क्या हम ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा कर सकते हैं जो देश के भीतर और बाहर देश को बदनाम कर रहा है? हमारी पवित्र संस्थाओं को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिससे हमारी उन्नति प्रभावित हो रही है। क्या हम इसे नजरअंदाज कर सकते हैं? मेरा वादा है कि मैं, युवा लड़के और लड़कियों के साथ कभी अन्याय नहीं होने दूंगा।”

धनखड़ ने राष्ट्रीय विमर्श को आकार देने में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने पत्रकारिता में व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण से दूर जाने और संस्थानों के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि हमें उन मुद्दों को संबोधित करना होगा, जो सिर्फ चुनिंदा व्यक्तियों पर आधारित नहीं हैं। हम व्यक्ति-केंद्रित दृष्टिकोण कैसे अपना सकते हैं? हमारी पवित्र संस्थाओं को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए।

वैश्विक मंच पर राष्ट्र की छवि को सुरक्षित रखने के महत्व पर जोर देते हुए धनखड़ ने कहा कि हम विशेष रूप से देश के बाहर भारत की गलत तस्वीर को चित्रित नहीं कर सकते। हर भारतीय, जो इस देश से बाहर जाता है, वह इस राष्ट्र का राजदूत है। उसके दिल में राष्ट्र और राष्ट्रवाद के लिए शत प्रतिशत प्रतिबद्धता के अलावा कुछ भी नहीं होना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने भारत के खिलाफ खतरनाक मंसूबे रखने वालों से सावधानी बरतने के लिए कहा है। उन्होंने देशविरोधी ताकतों द्वारा राष्ट्र के खिलाफ उत्पन्न किये जाने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हम उन लोगों के साथ संबंध नहीं रख सकते, जिनका अस्तित्व ही भारत के विरोध से स्थापित है। वे भारत के अस्तित्व को चुनौती देने के लिए घातक रूप से आकांक्षी हैं।”

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को स्पष्ट करते हुए धनखड़ ने अनुचित आलोचना की बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि हम केवल आलोचक रह गए हैं जबकि हमारा ध्यान विकास पर केंद्रित होना चाहिए। हमारे एजेंडा में विकास की बात जितनी की जानी चाहिए उससे काफी कम है। हमें हमारे एजेंडा को एक नया स्वरूप देना होगा जो विकास और राष्ट्रीय प्रगति पर आधारित होगा।

प्रत्येक लोकतांत्रिक संस्था को अपनी परिभाषित संवैधानिक सीमाओं के भीतर काम करने के महत्व पर प्रकाश डालते हुए धनखड़ ने रेखांकित किया कि संविधान ने प्रत्येक संस्था की भूमिका को परिभाषित किया है और प्रत्येक को अपने संबंधित क्षेत्र में सर्वोच्च प्रदर्शन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर कोई संस्था किसी विशेष मंच से किसी दूसरी संस्था के बारे में कोई टिप्पणी करती है, तो वह विधिशास्त्रीय दृष्टि से अनुचित है। इससे पूरी व्यवस्था के संतुलन को खतरा है। विधिशास्त्रीय दृष्टि से संस्थागत अधिकार क्षेत्र सिर्फ और सिर्फ संविधान द्वारा परिभाषित किया जाता है और किसी के द्वारा नहीं।

राष्ट्रीय विकास के लिए सामूहिक और निष्पक्ष प्रयासों का आह्वान करते हुए धनखड़ ने आग्रह किया कि राष्ट्र की प्रगति को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। उन्होंने देश की उपलब्धियों को राष्ट्र के समग्र विकास की तरह मानने और उसे राजनीतिक संस्थाओं से न जोड़ने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

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