नई दिल्ली, 17 सितंबर (हि.स.)। अमेरिकी फेडरल रिजर्व कल ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला ले सकता है। मार्च 2020 के बाद पहली बार ब्याज दरों में होने वाली कटौती पर दुनिया भर के निवेशकों और अर्थशास्त्रियों की नजर टिकी हुई है। साथ ही दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में भी अब ब्याज दरों में कटौती का इंतजार होने लगा है। खासकर भारत में अब ब्याज दरों में कटौती करने की बात पर चर्चा शुरू हो गई है। माना जा रहा है कि महंगाई दर में कमी आने के साथ ही निवेश में हुई बढ़ोतरी और अन्य अर्थशास्त्रीय मानदंडों पर स्थितियां अनुकूल नजर आने लगी हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय रिजर्व बैंक आने वाले दिनों में ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला ले सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में ब्याज दरों में कटौती करने की लिए अनुकूल स्थिति नजर आ रही है। महंगाई दर में भी कमी आई है। इस तिमाही में महंगाई दर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा तय किए गए लक्ष्य 4 प्रतिशत के काफी करीब रही है।
पिछले दिनों जारी आंकड़ों के मुताबिक अगस्त के महीने में महंगाई दर 3.65 प्रतिशत के स्तर पर थी। सबसे बड़ी बात ये है कि मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के पहले दो महीनों में महंगाई दर का मासिक औसत 3.65 प्रतिशत रहा है। हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक ने दूसरी तिमाही के दौरान ओवरऑल 4.4 प्रतिशत महंगाई दर रहने का अनुमान जताया है।
मार्केट एक्सपर्ट विमल सिरोही का कहना है कि महंगाई दर में पिछले 2 महीने के दौरान गिरावट जरूर आई है, लेकिन फूड इन्फ्लेशन पर अब भी काबू नहीं पाया जा सका है। पिछले 2 महीने के दौरान फूड इन्फ्लेशन 5.4 प्रतिशत से बढ़ कर 5.7 प्रतिशत हो गया है। खास तौर पर फल-सब्जियां, दलहन और अंडे का इन्फ्लेशन 6 प्रतिशत से ऊपर रहा है। दलहन के मामले में तो इन्फ्लेशन 13.6 प्रतिशत के स्तर तक पहुंच गया है। दलहन की नई फसल आने तक इसमें गिरावट आने की उम्मीद नहीं है। ऐसे में अगर इस तिमाही के तीसरे महीने यानी सितंबर में फूड इन्फ्लेशन की वजह से महंगाई दर में मासिक आधार पर बढ़ोतरी हुई, तब भी दूसरी तिमाही का ओवरऑल एवरेज रिजर्व बैंक द्वारा लगाए गए अनुमान 4.4 प्रतिशत के करीब ही रहेगा।
विमल सिरोही का कहना है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ब्याज दरों में कमी करने का फैसला तभी लेगी, जब महंगाई दर आरबीआई के मीडियम टर्म में 4 प्रतिशत के टारगेट के अंदर आ जाएगी। अगर सितंबर से नवंबर की अवधि में भी महंगाई दर मासिक आधार पर 4 प्रतिशत से कम बनी रहती है, तो मौद्रिक नीति समिति दिसंबर में ब्याज दरों में कमी करने का फैसला ले सकती है। हालांकि विमल सिरोही का ये भी कहना है कि कोर इन्फ्लेशन को लेकर चिंता बनी हुई है। खास कर इनपुट कॉस्ट बढ़ने का असर चीजों की कीमतों पर पड़ेगा, जिससे खुदरा महंगाई दर में तेजी आ सकती है।
हालांकि जानकारों को कहना है कि विकास करने वाली अर्थव्यवस्था में कभी भी शत प्रतिशत महंगाई पर काबू पाने के टारगेट तक नहीं पहुंचा जा सकता है, क्योंकि ओवरऑल इन्फ्लेशन में कई सेक्टर को शामिल किया जाता है। हर सेक्टर की महंगाई दर अगर एक साथ घट जाती है, तो ये स्थिति अर्थव्यवस्था में सुस्ती को भी दर्शाती है। यानी ऐसा होने पर मंदी का खतरा बन सकता है। यही कारण है कि रिजर्व बैंक की चिंता ओवरऑल इन्फ्लेशन पर काबू पाने की है। उसका इरादा हर सेक्टर पर एक साथ लगाम लगाने का नहीं है। इसलिए अगर फूड इन्फ्लेशन में बढ़ोतरी भी होती है और उसके बाद भी ओवरऑल इन्फ्लेशन 4 प्रतिशत के दायरे में रहता है, तो रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ब्याज दरों में कटौती करने का फैसला ले सकती है।