चेतावनी : प्रस्ताव न माने तो अखाड़ा परिषद में रहने पर विचार करेगा आवाह्न अखाड़ा

हरिद्वार, 15 सितंबर (हि.स.)। श्रीपंच दशनाम आवाह्न अखाड़े के श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने अखाड़े की आगामी बैठक में आवाह्न अखाड़े के प्रस्तावों पर गौर न करने पर अखाड़ा परिषद के साथ बने रहने पर विचार करने की चेतावनी दी है।

श्रीमंहत गोपाल गिरि ने कहा कि अखाड़ा परिषद में आवाह्न, आनन्द आदि अखाड़ों की उपेक्षा होती रही है। इसके बावजूद आवाह्न अखाड़ा जूना और उसकी समर्थित अखाड़ा परिषद के साथ रहा है। उन्होंने कहा कि अब ऐसा नहीं होगा। यदि आगामी बैठक में अखाड़ा परिषद यदि उनके अखाड़ों के प्रस्ताव पर विचार नहीं करता है तो आवाह्न अखाड़े को परिषद के विषय में विचार करने को बाध्य होना पड़ेगा।

श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहा कि आवाह्न अखाड़े की मांग है कि प्रयागराज कुम्भ में शिविर की भूमि जो तीन अखाड़े को एक जगह मिलती है, वह बराबर-बराबर तीनों अखाड़े के नाम से कराकर नाप कर दी जाए। किन्नर अखाड़ा 13 अखाड़े के बाद स्नान करे। जूना अखाड़े ने जो आवाह्न अखाड़े के स्थानों पर अपने साधु बैठाए हुए हैं उन्हें तत्काल हटाया जाए। आवाह्न अखाड़ा सर्वप्रथम अखाड़ा है और कुम्भ मेला स्नान आवाह्न, अटल और महानिर्वाणी अखाड़े का है। आवाह्न अखाड़ा सन् 547 ई. से अटल 647 ई. से और महानिर्वाणी अखाड़ा 749 ई. से अखाड़े के रूप में कुम्भ स्नान करता चला आ रहा है। आनन्द अखाड़ा सन् 856 ई. से, निरंजनी सन् 904 ई. से अग्नि अखाड़ा 1136 ई. से और जूना अखाड़ा सन् 1156 ई. से अखाड़े के रूप में स्नान करने लगा है। आवाह्न अखाड़े को सन् 2024 में 1478 वर्ष हो गए हैं और अटल अखाड़े को 1378 वर्ष, महानिर्वाणी अखाड़े को 1276 वर्ष, आनन्द अखाड़े को 1169 वर्ष, निरंजनी अखाड़े को 1121 वर्ष, अग्नि अखाड़े को 889 वर्ष और जूना अखाड़े 879 वर्ष हुए हैं।

श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहा कि कुंभ आदि पर्वों पर स्नान पहले 100 वर्ष तक सन् 547 ई. 646 ई. तक आवाह्न अखाड़ा अकेला करता रहा है। सन् 647 ई. से अटल अखाड़े का आवाह्न के साथ स्नान करना चालू हुआ। इस प्रकार सन् 749 ई. तक दोनों अखाड़े आवाह्न व अटल अखाड़ा स्नान करते रहे हैं। सन् 749 ई. से महानिर्वाणी अखाड़ा स्नान करने लगा। यह अटल व महानिर्वाणी अखाड़ा आवाह्न का ही भाग है। जूना आनन्द अखाड़ा आवाह्न का भाग है ।

श्रीमहंत गोपाल गिरि महाराज ने कहा कि शाही स्नान के तीनों अखाड़ों में शंकराचार्यजी ने सन् 800 से 801 के बीच यह तय किया था कि प्रथम शाही में आवाह्न अखाड़ा आगे चलेगा। उसके पीछे अटल अखाड़ा और उसके पीछे महानिर्वाणी अखाड़ा स्नान करेगा। दूसरी शाही में अटल अखाड़ा आगे होगा। उसके पीछे महानिर्वाणी अखाड़ा और उस के पीछे आवाह्न अखाड़ा स्नान करेगा। तीसरे स्नान में महानिर्वाणी आगे उसके पीछे आवाह्न और उसके पीछे अटल अखाड़ा स्नान करेगा। यह नियम शंकराचार्यजी बनाए थे। उन्होंने कहा कि शेष अखाड़े शंकराचार्यजी की कैलाशवास होने के बाद बने, जो किसी ना किसी के साथ स्नान करने लगे और आज लोगों में यह भ्रम फैलाया रहा है कि कुंभ हमारा है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रस्तावों पर गौर नहीं किया गया तो आवाह्न अखाड़ा परिषद को लेकर विचार करने को बाध्य होगा।

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