सहजता व सरलता के प्रति मूर्ति थे स्वामी नित्यानंद बाबा -शांतानंद

नवादा , 15 सितंबर (हि.स.)। प्रकृति की सुरम्य वादियों के बीच बसे महर्षि संतसेवी ध्यानयोग आश्रम धनावां के संस्थापक पूज्यपाद स्वामी नित्यानंद जी महाराज का 15 वां परिनिर्वाण दिवस रविवार को धनावां आश्रम में स्वामी शांतानंद जी महाराज के सानिध्य में धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम की शुरुआत ब्रह्ममूहूर्त 3 बजे से सामुहिक ध्यान साधना के साथ किया गया। प्रातःकाल सत्संग 7बजे से ईश्वर स्तुति गुरु विनती वेद उपनिषद पाठ स्वामी दिव्यानंद बाबा के द्वारा किया गया। 9 बजे सबसे पहले स्वामी शांतानंद जी महाराज ने संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज एवं स्वामी नित्यानंद जी महाराज के आदम कद तस्वीर पर पुष्पांजलि अर्पित किया।

दोपहर 2 बजे से अपराह्न कालीन सत्संग संत स्तुति गुरु विनती चंद्र किशोर बाबा ने शुरू की। आश्रम संचालक स्वामी शांतानंद जी महाराज ने स्वामी नित्यानंद जी महाराज के जीवन चरित्र व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि 20 वीं सदी के महान संत सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के प्रिय व महर्षि संतसेवी ध्यानयोग आश्रम धनावां के संस्थापक ब्रह्मलीन पूज्यपाद स्वामी नित्यानंद जी महाराज संतमत के सच्चे तपस्वी ज्ञान -वैराग्य व मानवता के हितैषी थे।उनका अवतरण अविभाजित बिहार के संथाल परगना के गोड्डा वर्तमान झारखंड के सुरनी ग्राम में 8जनवरी 1958ई.को हुआ था। इनके पिता कायस्थ कुल के श्री शिवनंदन प्र लाल और माता श्री मती जानकी देवी होने का सौभाग्य प्राप्त है।ये मात्र 16 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग कर अपने गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज से आत्म दीक्षा प्राप्त कर महर्षि मेंहीं आश्रम कुप्पाघाट भागलपुर में सदा के रह गये। 20 वर्ष की अवस्था में संन्यास ग्रहण कर महर्षि संतसेवी परमहंस जी महाराज से संतमत की सर्वोच्च साधना नादानुसंधान सुरत शब्द योग की दीक्षा प्राप्त की।

उन्होंने महर्षि मेंहीं पदावली की टीका बड़े ही सरल भाषा में की। स्वामी जी का कठिन ध्यान साधना के लिए 2000ई. में नवादा के रोह धनावां के निकट पर्वत के तलहटी में अपनी फकिरी कमाई से ग्रामीणों से जमीन खरीद कर महर्षि संतसेवी ध्यानयोग आश्रम धनावां की स्थापना की। 2010 ई.में संतमत सत्संग प्रचार प्रसार करते हुए 15सितंबर को पंचभौतिक शरीर का परित्याग कर ब्रह्मलीन हो गए।उनका उपदेश सरल मधुर और अनुभवगम्य व लोकोपकारी होता था।वे मानव में व्याप्त असहिष्णुता राग द्वैष, ईर्ष्या कपट, घृणा हिंसा, व्यभिचार आडंबर,कुरीति, अनाचार भ्रष्टाचार के विरुद्ध मानव में मानवता सहजता प्रेम त्याग बलिदान भक्ति वैराग्य से संचित विश्व बंधुत्व की भावना का बीजारोपण करने का था।उनका संपूर्ण जीवन सदाचार समन्वित गुरु भक्ति, ईश्वर की प्राप्ति,मानव सेवा, अहिंसा अपरिग्रह, सत्यता ब्रह्मचर्य ईश्वर चिंतन पर था।वे कर्म संन्यास योग पर बल देकर ध्यान ज्ञान वैराग्य भक्ति की त्रिवेणी में अवगाहन करने के लिए उपदेश देते थे। इसके लिए झूठ चोरी नशा हिंसा व्यभिचार पंच पापों से मानव को बचने के लिए कहा करते थे।वे सच्चे अर्थ में त्याग के प्रतिमूर्ति थे।इस मौके पर विशाल भंडारा आयोजित किया गया। आश्रम संचालक समिति के अध्यक्ष श्री संजय यादव, सुनील कुमार शर्मा, रामानंद कुमार, स्वामी दिव्यानंद, चंद्र किशोर बाबा,मणि पासवान, रंजीत सिंह शिक्षक, सिपाही बाबा, प्रमोद कुमार राम, गरीब दास,रौशन,रासु अभिनव,सोनू आदि सैकड़ों लोग मौजूद थे


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