नई दिल्ली, 11 सितंबर (हि.स.)। प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना (पीएमएमएसवाई) भारत के मत्स्य पालन क्षेत्र में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है। मत्स्य पालन क्षेत्र में प्राप्त परिणाम पहले के बुनियादी ढांचे के विकास का परिणाम हैं, इसलिए हमें विकसित भारत @2047 के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ना होगा। केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन एवं डेयरी तथा पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने आज नई दिल्ली में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की चौथी वर्षगांठ पर भारत की नीली अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से कई पहलों और परियोजनाओं का शुभारंभ के दाैरान ये बातें कहीं।
केंद्रीय मंत्री ने इस अवसर पर एनएफडीपी (राष्ट्रीय मत्स्य विकास कार्यक्रम) पोर्टल लॉन्च किया, जो मत्स्य पालन के हितधारकों की रजिस्ट्री, सूचना, सेवाओं और मत्स्य पालन से संबंधित सहायता के लिए एक केंद्र के रूप में काम करेगा। उन्होंने पीएम-एमकेएसएसवाई परिचालन दिशा निर्देश भी जारी किए। एनएफडीपी को प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सह-योजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के तहत बनाया गया है, जो पीएमएमएसवाई के तहत एक उप-योजना है। इस योजना से देश भर में मत्स्य पालन में लगे मछली श्रमिकों और उद्यमों की एक रजिस्ट्री बनाकर विभिन्न हितधारकों को डिजिटल पहचान मिलेगी। एनएफडीपी के माध्यम से संस्थागत ऋण, प्रदर्शन अनुदान, जलीय कृषि बीमा आदि जैसे विभिन्न लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
केंद्रीय मंत्री ने मत्स्य पालन क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी जारी की। उन्होंने मोती की खेती, सजावटी मत्स्य पालन और समुद्री शैवाल की खेती के लिए समर्पित तीन विशेष मत्स्य उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों की स्थापना की घोषणा की। इन क्लस्टरों का उद्देश्य इन विशिष्ट क्षेत्रों में सामूहिकता, सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देना है, जिससे उत्पादन और बाजार पहुंच दोनों में वृद्धि होगी। इस अवसर पर केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी तथा अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जॉर्ज कुरियन भी उपस्थित थे। मत्स्य पालन क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत उत्पादन और प्रसंस्करण क्लस्टरों पर मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी जारी की गई। एनएफडीपी पर पंजीकृत लाभार्थियों को पंजीकरण प्रमाण पत्र वितरित किए गए।
केंद्रीय मंत्री सिंह ने तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 100 तटीय गांवों को जलवायु अनुकूल तटीय मछुआरा गांवों (सीआरसीएफवी) में विकसित करने के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए। इसके लिए 200 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। यह पहल बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के बीच मछली पकड़ने वाले समुदायों के लिए खाद्य सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के साथ-साथ बुनियादी ढांचे में सुधार और जलवायु-स्मार्ट आजीविका पर ध्यान केंद्रित करेगी।
केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीआईएफआरआई) द्वारा मछली परिवहन के लिए ड्रोन प्रौद्योगिकी के उपयोग पर एक पायलट परियोजना का भी अनावरण किया गया। यह मत्स्य पालन में प्रौद्योगिकी को शामिल करने की दिशा में एक कदम है। इस अध्ययन का उद्देश्य अंतर्देशीय मत्स्य पालन की निगरानी और प्रबंधन में ड्रोन की क्षमता का पता लगाना, दक्षता और स्थिरता में सुधार करना है।
केंद्रीय मंत्री सिंह ने समुद्री शैवाल की खेती और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए उत्कृष्टता केंद्र के रूप में केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर-सीएमएफआरआई) के मंडपम क्षेत्रीय केंद्र की स्थापना के लिए अधिसूचनाओं का अनावरण किया। उत्कृष्टता केंद्र समुद्री शैवाल की खेती में नवाचार और विकास के लिए एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में काम करेगा, जो खेती की तकनीकों को परिष्कृत करने, बीज बैंक की स्थापना और नई प्रणालियों को सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
इसके अलावा आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजातियों के आनुवंशिक संवर्द्धन के माध्यम से बीज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए समुद्री और अंतर्देशीय दोनों प्रजातियों के लिए न्यूक्लियस ब्रीडिंग सेंटर की स्थापना का भी अनावरण किया गया। लगभग 100 मत्स्य पालन स्टार्ट-अप, सहकारी समितियों, एफपीओ और एसएचजी को बढ़ावा देने के लिए 3 इनक्यूबेशन केंद्रों की स्थापना को भी अधिसूचित किया गया।
केंद्रीय मंत्री ने ‘स्वदेशी प्रजातियों को बढ़ावा देने’ और ‘राज्य मछली के संरक्षण’ पर पुस्तिका का विमोचन किया। 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में से 22 ने या तो राज्य मछली को अपनाया है या घोषित किया है, 3 ने राज्य जलीय पशु घोषित किया है और केंद्र शासित प्रदेशों लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह ने अपने राज्य पशु घोषित किए हैं, जो समुद्री प्रजातियां हैं।