नई दिल्ली, 10 सितंबर (हि.स.)। भारत में 24 हजार गीगावॉट से ज्यादा अक्षय ऊर्जा (आरई) की क्षमता है, लेकिन वर्ष 2070 तक नेट जीरो लक्ष्य का पाने के लिए आवश्यक 7 हजार गीगावॉट क्षमता हासिल करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण की जरूरत होगी, ताकि इसके सामने आने वाली भूमि की सुलभता, जलवायु जोखिम, भूमि संघर्ष और जनसंख्या घनत्व जैसी चुनौतियां दूर की जा सकें। यह जानकारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (सीईईडब्ल्यू) के एक नए स्वतंत्र अध्ययन से सामने आई है।
सीईईडब्ल्यू ने मंगलवार को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत की फिलहाल अक्षय ऊर्जा स्थापित करने की क्षमता 150 गीगावॉट है और 1,500 गीगावॉट तक आने वाली बाधाओं का प्रबंधन अपेक्षाकृत रूप से आसान है। लेकिन, सीईईडब्ल्यू के इस अध्ययन, ‘अनलॉकिंग इंडियाज आरई एंड ग्रीन हाइड्रोजन पोटेंशियल: ऐन असेसमेंट ऑफ लैंड्स, वॉटर एंड क्लाइमेट नेक्सेस’, रेखांकित करता है कि 1,500 गीगावॉट से आगे बढ़ने पर अक्षय ऊर्जा के सामने कई प्रमुख चुनौतियां आ सकती हैं, क्योंकि कई बाधाएं सघन हो जाती हैं और नेट-जीरो तक पहुंचने के रास्ते को संकरा बना देती हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक भारत के जलवायु लक्ष्यों को साकार करने के लिए सौर, पवन और ग्रीन हाइड्रोजन सहित अक्षय ऊर्जा अत्यधिक जरूरी है। लेकिन इन तकनीकों को आगे बढ़ाने के लिए रणनीति आधारित भू-उपयोग, बेहतर जल प्रबंधन और ग्रिड के लचीले ढांचे की जरूरत होगी। सीईईडब्ल्यू अध्ययन अपनी तरह का पहला आकलन है, जो देश की संपूर्ण भूमि का विश्लेषण और वास्तविक दुनिया की बाधाओं को लागू करते हुए भारत की अक्षय ऊर्जा और ग्रीन हाइड्रोजन की संभावित क्षमता की जानकारी देता है। इसमें भूमि को पांच गुना पांच किलोमीटर के छोटे टुकड़ों में बांटकर अध्ययन किया गया है, जो कहां पर और कैसी अक्षय ऊर्जा विकसित करनी है, इसकी व्यावहारिक जानकारी उपलब्ध कराता है।
सीईईडब्ल्यू अध्ययन ने पाया है कि भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता को साकार करने में जनसंख्या घनत्व प्रमुख बाधा है, सिर्फ 29 प्रतिशत संभावित तटवर्ती पवन ऊर्जा और 27 प्रतिशत संभावित सोलर क्षमता 250 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी से कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में स्थित है। भूमि संघर्ष भी परियोजना लगाने में बाधा बनते हैं। सिर्फ लगभग 35 फीसदी तटवर्ती संभावित पवन ऊर्जा क्षमता और 41 फीसदी संभावित सौर क्षमता उन क्षेत्रों में है, जहां पर कोई ऐतिहासिक भूमि संघर्ष मौजूद नहीं हैं। हालांकि, भूकंप कम चिंता का विषय है, क्योंकि 83 फीसदी तटवर्ती संभावित पवन क्षमता और 77 फीसदी संभावित सौर क्षमता कम से मध्यम भूकंपीय क्षेत्रों (सीसमिक जोन) में स्थित है।
सीईईडब्ल्यू के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डॉ. अरुणाभा घोष ने कहा कि भारत अपनी ऊर्जा परिवर्तन यात्रा के एक महत्वपूर्ण मुहाने पर खड़ा है। इसने लगभग असंभव से लक्ष्य तय किए हैं। उन्होंने कहा कि लाखों लोगों को ऊर्जा उपलब्ध करना, विश्व की सबसे बड़ी ऊर्जा प्रणालियों में से एक को स्वच्छ बनाना और एक हरित औद्योगिक शक्ति बनना है। सीईईडब्ल्यू अध्ययन ने उन राज्यों की पहचान की है, जहां बिना बाधा वाली अक्षय ऊर्जा की उच्च क्षमता मौजूद है, जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और लद्दाख। राजस्थान (6,464 गीगावॉट), मध्य प्रदेश (2,978 गीगावॉट), महाराष्ट्र (2,409 गीगावॉट) और लद्दाख (625 गीगावॉट) में कम लागत वाली अति-महत्वपूर्ण सौर ऊर्जा क्षमता मौजूद है, जबकि कर्नाटक (293 गीगावॉट), गुजरात (212 गीगावॉट) और महाराष्ट्र (184 गीगावॉट) पर्याप्त पवन ऊर्जा क्षमता उपलब्ध कराते हैं।