ललित मोहन बंसल
व्हाइट हाउस के लिये डोनाल्ड ट्रम्प-कमला हैरिस के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई की तारीख (5 नवंबर) जैसे-जैसे समीप आ रही है, दुनिया भर की ताकतें सक्रिय हो गई हैं। हों भी क्यों नहीं, जब सवाल हो कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति कौन हो। विश्व में तेज़ी से बदलते घटनाक्रम में एक ओर यूक्रेन-रूस युद्ध से यूरोप में खलबली है तो दूसरी ओर इज़राइल-फ़िलिस्तीन के बीच युद्ध से मिडल ईस्ट में अशांति से इस्लामिक वर्ल्ड, ख़ासतौर से ईरान, सीरिया और लेबनान सहित अनेक देश विचलित हैं। अमेरिका के नंबर एक शत्रु चीन ने रूस और उत्तरी कोरिया से हाथ मिला कर ताइवान स्ट्रेट में आक्रामक रवैया अपनाते हुए रेड सी के इर्द-गिर्द देशों के साथ दो-दो हाथ आजमाने की ठान ली है, उससे पूर्वी एशियाई देशों को भी अमेरिकी संरक्षण की दरकार समझ आती है। इनमें भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो भू राजनीतिक कारणों से सुखद स्थिति में है। ऐसे में अमेरिका का राष्ट्रपति कौन हो, यह सवाल उठना स्वाभाविक है। ट्रम्प और कमला उस विशाल नदी के दो छोर पर हैं, जहां उनकी नीतियों, आचार-विचार और व्यापार में कोई मेल नहीं है।
विश्व आर्डर और क्षेत्रीय सुरक्षा के पहलुओं पर बात करें तो यहाँ भी बड़ा टकराव है। ऐसे में अमेरिका का राष्ट्रपति कौन हो, अमेरिका के अंदर ही नहीं, विश्व के राजनैतिक मंचों पर तेज़ी से मंथन होने लगा है। दक्षिण एशिया में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जो मज़बूती से अपने पाँव पर खड़ा है। भारत के संबंध रूस से भी उतने ही प्रगाढ़ हैं, जितने अमेरिका से। यह भारत की मौजूदा भू राजनैतिक स्थिति के कारण भी है। चीन, रूस, यूरोपीय देशों के साथ मिडल ईस्ट में इज़राइल सहित इस्लामिक वर्ल्ड, ख़ासकर ईरान ने ‘टेक इंडस्ट्री’ के घोड़े दौड़ाना शुरू कर दिये हैं। इन सबके बावजूद अमेरिका के घरेलू स्तर पर ख़ास कर बहुसंख्यक श्वेत समुदाय के बड़े-बूढ़े ‘ग्लास सीलिंग’ की लीक से हट कर अपने-अपने दायरे से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। यह डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस के लिए अंतिम क्षणों में कड़ी टक्कर के बावजूद ख़तरे की घंटी हो सकता है।
बेशक, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ज्यादा शिक्षित, उदारवादी और विश्व के बदलते मिज़ाज के अनुकूल हैं। अमेरिका के ब्यू (डेमोक्रेट) और रेड (रिपब्लिकन) बहुल राज्यों में इस बार काँटे की टक्कर (स्विंग स्टेट) वाले सात राज्यों- पेनसेलवेनिया, मिशिगन, अरिजोना, नवाडा, आर्किंसन, नार्थ कैरोलाइना और जार्जिया के दूरदराज की ग्रामीण महिलाओं और बुजुर्गों में कमला हैरिस अपेक्षाकृत ‘ज्यादा’ अपरिचित हैं। मीडिया रिपोर्ट को मानें तो कमला को कहीं-कहीं, श्वेत महिलाएँ बड़ी तादाद में देखने-सुनने के लिए आ भी रही हैं। यक्ष प्रश्न यह कि ‘क्या मतदान के लिए बचे शेष समय में डेमोक्रेट उन श्वेत महिला-पुरुषों की कमला हैरिस के प्रति बढ़ती रुचि के बावजूद व्हाइट हाउस जैसे उच्च पद के लिए एक महिला उम्मीदवार के पक्ष में रुचि को वोट बैंक में तब्दील कर पाएँगे। प्रथम महिला और पूर्व में विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन श्वेत समुदाय में ख़ासी परिचित होने के बावजूद आठ साल इसी ‘ग्लास सीलिंग’ वाली हताशपूर्ण मनोवृत्ति की मार झेल चुकी हैं। अमेरिका भले ही विश्व के विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में सबसे आगे है। भारत के ठेठ परंपरावादी ग्रामीण समुदाय की महिलाओं की तरह विशेषकर परंपरावादी कट्टर इवेंजिलिस्ट श्वेत समुदाय महिलाओं के प्रति अपनी मनोवृत्ति में अपेक्षित बदलाव नहीं ला पाए हैं। अश्वेत बराक हुसैन ओबामा एकमात्र ऐसे राष्ट्रपति हुए हैं, जिन्हें अपनी उदार नीतियों और साफ़गोई से स्विंग स्टेट में भरपूर समर्थन मिला है।
इस परंपरावादी श्वेत समुदाय की एक ख़ासियत है कि वे मन के सच्चे हैं। उन्हें अपने डोनाल्ड ट्रम्प की कमला हैरिस के प्रति नस्ल विरोधी टिप्पणी रास नहीं आई। उन्होंने अगले ही दिन ट्रम्प की नस्ल विरोधी टिप्पणी पर नसीहत दे डाली कि वह अपनी नीतियों पर सीमित रहें। भारतीय मूल की कमला हैरिस यह बाखूबी जानती हैं कि उनके वोट बैंक में अधिकाधिक अश्वेत, लैटिन अमेरिकी, एशियन और इस्लामिक वर्ल्ड के तीन चौथाई मतों की एकजुटता के बावजूद उनकी हार-जीत में ग्रामीण श्वेत वोटबैंक की महत्वपूर्ण भूमिका है।
कमला हैरिस की माँ श्यामला भारतीय मूल की थीं और उन्होंने अमेरिका में शिक्षा-दीक्षा के दौरान जमैका के अश्वेत अफ़्रीकी अमेरिकी से विवाह रचा लिया था। देखा जाये, अमेरिका में परंपरावादी श्वेत अमेरिकी समुदाय ( रिपब्लिकन) के बाद मूल अश्वेत समुदाय, बाहर से आये अमेरिका में आ कर बसे लैटिन अमेरिकी, कैरबियन एशियन, यूरोपियन और अफ्रीकी मतदाता हैं। रिपब्लिकन पार्टी अपने श्वेत मतदाताओं के बल पर कोई चुनाव नहीं जीत सकती। इसके लिए उसे, ख़ासतौर पर काँटे की टक्कर वाले राज्यों में अश्वेत सहित अन्यान्य वॉटबैंक पर निर्भर रहना मजबूरी है। कमला को भारतीय मूल के वोटबैंक के साथ एकमुश्त अश्वेत वोटबैंक मिल रहा है, उससे ट्रम्प भी चिंतित हैं। भारतीय मतदाताओं को लुभाने के लिए राष्ट्रपति पद के पूर्व उम्मीदवार विवेक रामास्वामी और पूर्व में डेमोक्रेट तुलसी गाबार्ड (हवाई) ने ट्रम्प का समर्थन किया है, तो राष्ट्रपति पद के मौजूदा निर्दलीय उम्मीदवार राबर्ट एफ़ कनेडी (जूनियर) ने चुनाव मैदान से हट कर ट्रम्प का समर्थन किया है। जहां तक भारतीय मतदाताओं की बात है, पिछले कई दशकों से दो तिहाई भारतीय मतदाता डेमोक्रेट उम्मीदवार के साथ रहते हैं, जबकि ट्रम्प को एक तिहाई से ज्यादा समर्थन नहीं मिल पाता।
अभी पिछले एक सप्ताह में हुए पोल सर्वे में लगातार यह दिखाया जा रहा है कि कमला हैरिस जो आयु में ट्रम्प से बीस वर्ष छोटी हैं, ज्यादा पढ़ी-लिखी हैं और उन्हें पिछले साढ़े तीन साल में व्हाइट हाउस में काम करने और सलीक़े से बोलने का अनुभव हुआ है। इससे वह काँटे की टक्कर वाले छह-सात राज्यों में से तीन में बढ़त ले चुकी हैं। इस कार्य में उन्हें 81 फीसदी अश्वेत मतदाताओं का समर्थन हासिल है, जो डोनाल्ड ट्रम्प की आशाओं के विपरीत है। यही नहीं, रिपब्लिकन पार्टी के परंपरावादी मतदाताओं में इस बार 84 फीसदी श्वेत रिपब्लिकन में कम से कम पाँच प्रतिशत कॉलेज जाने वाली युवतियों ने डोनाल्ड ट्रम्प का साथ छोड़ दिया है। इसके विपरीत कमला हैरिस ने पिछले दो सप्ताह में काँटे की टक्कर वाले जिन सात राज्यों-पेंसलवेनिया, मिशिगन, विस्कॉन्सिन, अरिजोना, नेवाडा, नार्थ कैरोलाइना, जार्जिया आदि जनसभाएँ की हैं, उन्हें देखने-सुनने के लिए दूरदराज के गाँवों और छोटे क़स्बों में बड़ी संख्या में श्वेत लोग पहुँच रहे हैं। इनमें महिलाओं की संख्या ज्यादा है।
एनपीआर/पीबीएस न्यूज़/मैरिस्ट पोल सर्वे की मानें तो कमला 51-48 प्रतिशत अंकों से बढ़त ले रही हैं और वह बाइडन के पीछे हटने के बाद दो सप्ताह में तीन अंकों (48-45) की बढ़त बरकरार किए हुए हैं। कमला हैरिस को अश्वेत महिलाओं में 22 अंक की बढ़त है तो कॉलेज युवतियों (55-42 ) में आगे हैं। पुरुष वर्ग में ट्रम्प विशेष कर श्वेत समुदाय में 54-45 की बढ़त बनाए हुए है। शुरू में श्वेत वर्ग में ख़ासकर पुरुषों में व्हाइट हाउस जैसे उच्चपदस्थ पद पर एक महिला को देखने में संकोच की खबरें आ रही थीं, इसमें परिवर्तन हो रहा है। हाँ, गर्भपात जैसे मुद्दे पर रिपब्लिकन समुदाय की बड़ी बुजुर्ग महिलाओं की धारणा नहीं बदली जा सकी है, जबकि कॉलेज युवतियाँ बड़ी तादाद में कमला के साथ आने का मन बना चुकी हैं। इस वर्ग में कमला 15 प्रतिशत अंक आगे है। यह सर्वे गुरुवार से रविवार के बीच संपन्न होने का दावा किया गया है। हाल में एक पोल सर्वे में कैलिफ़ोर्निया में कमला की 25 अंकों से बढ़त दिखाई गई है, जबकि बाइडन को मात्र 18 अंकों की बढ़त मिली थी।
इस बार राष्ट्रपति चुनाव पर 16 अरब डालर व्यय का अनुमान है। यों इस चुनाव के साथ कांग्रेस (संसद) के निचले 435 सदस्यीय सदन और सीनेट की एक तिहाई (34) सीटों के लिए भी एक ही दिन मतदान होगा। यों राबर्ट एफ़ कैनेडी (निर्दलीय), प्रो कार्नल वेस्ट (निर्दलीय), जिल स्टेन (ग्रीन पार्टी) और लिब्रेशन पार्टी से चेज़ ओलिवर चुनाव मैदान में हैं, जो एक से पाँच प्रतिशत मत भी बटोर पाएँगे, मुश्किल है। भारत में संसदीय प्रणाली के विपरीत अमेरिका में हर चार साल बाद अध्यक्षीय प्रणाली में परोक्ष (निर्वाचक मंडल 538, बहुमत 270) रूप से संपन्न होते हैं। डोनाल्ड ट्रम्प पर आरोप है कि उन्होंने पिछले राष्ट्रपति चुनाव 2020 में बाइडन से पराजय के बाद चुनाव में धांधली का आरोप लगाया, बड़े स्तर पर उत्पात को प्रश्रय दिया। इस पर देश की अदालतों में चार आपराधिक मामलों सहित 91 अदालती मामले चले। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रम्प को ‘इम्युनिटी’ देकर बरी कर दिया, यह अमेरिकी डेमोक्रेसी की एक और बड़ी मिसाल है।
ट्रम्प-कमला के बीच 10 सितंबर को एबीसी पर डिबेट: ट्रम्प 27 जून की पहली राष्ट्रपति डिबेट में बाइडन को पछाड़ने, उन्हें चुनावी दंगल से हटाने के बाद उत्साहित हैं। इस बार उनके सम्मुख तेजतर्रार उपराष्ट्रपति, पूर्व में कैलिफ़ोर्निया से सीनेटर, अटॉर्नी जनरल कमला हैरिस मैदान में हैं। एबीसी टीवी भी कमोबेश निष्पक्ष है।
चुनावी मुद्देः मुख्यतया इमिग्रेशन, गर्भपात और पर्यावरण पुराने मुद्दे हैं। इन्हीं मुद्दों पर काँटे की टक्कर वाले राज्यों में जनसभाओं में बयानबाजी भी हो रही है। देखना यह है कि मीडिया के प्रहार के सम्मुख ट्रम्प अथवा कमला कैसे जवाब दे पाते हैं? इवेंजिलिस्ट चर्च से निर्देशित रिपब्लिकन पार्टी में श्वेत परम्परावादियों में 80-84 प्रतिशत ऐसे लोग हैं, जो भ्रूण हत्या को पाप समझते हैं। कहा जा रहा है कि इस बार पहली बार मतदाता बनी (18 वर्ष) युवतियाँ चर्च के सर्मन की अवहेलना कर कमला हैरिस के पक्ष में मत दे सकती हैं। इसके अलावा जो परंपरावादी श्वेत मॉडरेट हो गये हैं और डेमोक्रेटिक पार्टी में चले गये हैं, उनमें एक वर्ग ऐसा भी है जो भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ है। ऐसे मतदाताओं को लुभाने और ज़्यादा से ज़्यादा ग्रामीण मतों को अपने पक्ष में करने के लिए कमला हैरिस ने दो सप्ताह पूर्व मंगलवार को मिनीसोटा गवर्नर टिम वाल्ज को उपराष्ट्रपति पद के लिए नामांकित कर एक जुआ खेला है। टिम वाल्ज ख़ुद श्वेत हैं और मॉडरेट हैं। इसके विपरीत ट्रम्प-जेडी वाँस उन्हें चीनी रंग में रंगे होने का आरोप लगा रहे हैं।
(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)