नई दिल्ली, 28 अगस्त (हि.स.)। दिल्ली हाई कोर्ट के कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के मामले से निपटने के लिए नए आपराधिक कानून में कोई प्रावधान न होने को लेकर प्रतिवेदन पर छह महीने में फैसला करे। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर केंद्र सरकार ने तय समय सीमा में इस मामले पर फैसला नहीं किया तो याचिकाकर्ता दोबारा कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा कि इस मामले पर संबंधित मंत्रालय विचार कर रहा है। तब याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट से इस मामले में फैसला होने तक सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस का पालन करने का निर्देश देने की मांग की। केंद्र सरकार से जब पूछा गया कि इस पर कब तक फैसला हो जाएगा तो उन्होंने कोई समय बताने से इनकार करते हुए कहा कि इसमें कई पक्ष हैं। इसमें सांसदों को भी विचार करना है। तब कोर्ट ने छह महीने में फैसला करने का निर्देश दिया।
हाई कोर्ट ने 13 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। इस मामले मे याचिकाकर्त्ता गंतव्य गुलाटी का कहना था कि पहले भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन सबंध बनाने पर सजा का प्रावधान था लेकिन नए आपराधिक कानून में इस धारा को खत्म कर दिया गया और कोई नई धारा भी नहीं जोड़ी गई है। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि इसके चलते अभी अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न के शिकार पुरुषों और शादीशुदा संबंध में इस तरह के सम्बन्धों को झेलने वाली महिलाओं लिए कोई कानूनी राहत का प्रावधान नए कानून में नहीं है। उन्होंने कहा था कि अगर कोई पुरुष दूसरे पुरुष का यौन उत्पीड़न करता है तो उसकी शिकायत होने पर एफआईआर भी दर्ज नहीं होगी। जब तक नये आपराधिक कानून में अप्राकृतिक यौन शोषण के खिलाफ प्रावधान नहीं किया जाएगा एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती है।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा था कि ये मामला संबंधित मंत्रालय के समक्ष विचाराधीन है। उन्होंने कहा कि इस याचिका का निस्तारण कर दिया जाए और याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन पर केंद्र सरकार को विचार करने का आदेश जारी किया जाए लेकिन हाई कोर्ट ने केंद्र की इस दलील को अस्वीकार कर दिया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि ये मामला एलजीबीटी समुदाय के खिलाफ हिंसा से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए आप केंद्र सरकार से निर्देश लेकर आएं।