काठमांडू, 26 अगस्त (हि.स.)। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली की सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए रिट दायर करने जा रही है जिसमें कोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान में वृद्धि करने का फैसला दिया था। सरकार ने देश की आर्थिक स्थिति को देखते हुए कोर्ट के फैसले को लागू करने में असमर्थता जताते हुए इस फैसले को वापस लेने का आग्रह करने वाली है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी महीने फैसला सुनाया था कि सरकार के प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी के सिविल सेवा कर्मचारियों के वेतन को समायोजित करते हुए उसमें वृद्धि करे। सुप्रीम कोर्ट ने 10 अगस्त को आदेश दिया था कि सिविल सेवा राजपत्रांकित प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी के कर्मचारियों का मूल वेतन व सेना और अन्य सुरक्षा निकाय के अधिकारियों के समान समायोजित किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मनोज कुमार शर्मा और सुनील कुमार पोखरेल की संयुक्त पीठ ने कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने का आदेश दिया था। उसी आधार पर सरकार ने कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने को लेकर कई बैठकें कीं। बाद में सरकार इस नतीजे पर पहुंची कि इस समय सरकारी कर्मचारियों के वेतन बढ़ाने में सरकार असक्षम है।
प्रधानमंत्री के प्रमुख सलाहकार विष्णु रिमाल ने बताया कि इस प्रस्ताव पर पिछले हफ्ते हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में भी चर्चा हुई थी। रिमाल के मुताबिक सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद सरकार इस नतीजे पर पहुंची है कि फिलहाल वेतन बढ़ाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि जल्द ही सरकार की तरफ से महान्ययाधिवक्त सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर कर कोर्ट से अपने फैसले को वापस लेने का आग्रह करेंगे।
पिछली प्रचण्ड सरकार में एसोसिएट अटॉर्नी जनरल रहे गोविंद खनाल, डिप्टी अटॉर्नी जनरल रहे संतोष शर्मा सहित पदम बहादुर कार्की, विमला रेग्मी, युवराज महत, चपला पोखरेल और प्रकाश गौमत ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राजपत्रित प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी में कार्यरत सिविल सेवा कर्मचारियों के वेतन में बढ़ोतरी करने की मांग की थी। रिट में दावा किया गया था कि समान रैंकिंग वाले सुरक्षा एजेंसियों के अधिकारियों का वेतन सिविल सेवकों से अधिक है।