पाउडर, क्रीम, सेरी बैंडेज एवं सिजेरियन ड्रेंसिंग बनाये जाएंगे
भोपाल, 17 अगस्त (हि.स.)। नवाचारों में माध्यम से अपनी अलग पहचान बना रहे मध्य प्रदेश के नाम एक और उपलब्धि जुड़ने वाली है। यहां अब रेशम के धागे से दवाइयां और सेरी बैंडेज बनाई जाएंगी। कुटीर एवं ग्रामोद्योग विभाग की ‘रेशम से समृद्धि योजना’ के माध्यम से किए जा रहे नवाचार के तहत नर्मदापुरम जिले के रेशम विकास केन्द्र मालाखेड़ी में रेशम से दवाइयों का उत्पादन करने के लिये कार्यवाही तेज कर दी गयी है।
कुटीर एवं ग्रामोद्योग राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) दिलीप जायसवाल की विशेष पहल पर गत माह फाई ब्रोहित कंपनी तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज, भोपाल के बीच एक अनुबंध हुआ। इस अनुबंध के तहत मालाखेड़ी रेशम विकास केन्द्र में रेशम के धागे से पाउडर, क्रीम, सेरी बैंडेज एवं सिजेरियन बैंडेज आदि का निर्माण (उत्पादन) किया जाएगा। रेशम के धागे से दवाइयों के अलावा अन्य प्रकार के उत्पादन करने के प्रयास भी किये जा रहे हैं। इस दिशा में जरूरी अनुसंधान एवं विकास कार्यों के लिये 50 करोड़ रुपये की आवश्यकता का मांग पत्र राज्य शासन को भेजा गया है।
रेशम आयुक्त मदन नागरगोजे ने शनिवार को बताया कि रेशम के विकास एवं विस्तार से जुड़ी सेवाओं के त्वरित क्रियान्वयन (संपादन) के लिये रेशम से समृद्धि योजना में ‘न्यू सिल्क ईको सिस्टम’ विकसित किया गया है। इसके लिये मध्यप्रदेश सिल्क फेडरेशन को 100 करोड़ रुपये उपलब्ध कराने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। रेशम विकास गतिविधियों के क्रियान्वयन में जरूरत के अनुसार इस राशि का उपयोग किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि रेशम संचालनालय की योजनाओं का क्रियान्वयन अब मध्यप्रदेश सिल्क फेडरेशन के माध्यम से किया जायेगा। इसके लिये मप्र सिल्क फेडरेशन को जरूरी धनराशि (ग्रान्ट के रूप में) उपलब्ध कराने का प्रस्ताव राज्य शासन को दिया गया है।
रेशम गतिविधियों का क्रियान्वयन अब क्लस्टर एप्रोच मोड में
उन्होंने बताया कि रेशम विकास के लिये एक और नवाचारी कदम उठाया जा रहा है। प्रदेश में रेशम विकास गतिविधियों का क्रियान्वयन अब क्लस्टर मोड में करने की शुरुआत कर दी गई है। रेशम गतिविधियों की पुनर्संरचना करते हुये न्यू सिल्क ईको सिस्टम करने के साथ ही पचमढ़ी में सिल्क टेक पार्क भी प्रारंभ किया गया। इसमें चार प्रकार के रेशम ककून का उत्पादन किया जा रहा है। म.प्र. सिल्क फेडरेशन को राज्य की स्टार्ट-अप नीति के तहत इन्क्यूबेटर बनाया गया है।
आयुक्त नागरगोजे ने बताया कि रेशम विकास गतिविधियों के सुचारू क्रियान्वयन के लिये शासकीय महिला पॉलिटेक्निक महाविद्यालय भोपाल के फैशन टेक्नोलॉजी विभाग तथा आई.आई.एम. इन्दौर के मध्य न्यू सिल्क ईको सिस्टम के क्रियान्वयन के लिए एक एम.ओ.यू. किया गया है। रेशम से समृद्धि योजना में किसानों को उनकी आजीविका बढ़ाने के लिए मुफ्त रेशमकीट बीज, सरलता से ऋण उपलब्ध कराकर उनका निर्यात बढ़ाने के लिये सहायता भी दी जा रही है। शासकीय महिला पॉलिटेक्टिनक महाविद्यालय के फैशन टेक्नालॉजी विभाग में ब्राण्डिंग प्रमोशन योजना में सिल्क केटेनेशन, सिल्क स्टूडियो तथा सिल्क टूरिज्म शुरू किया गया है।
उन्होंने बताया कि रेशम संचालनालय द्वारा आई.आई.एम. इंदौर के मॉडल पर रेशम विकास गतिविधियाँ क्रियान्वित की जा रही हैं। प्रदेश के रेशम उत्पादक किसानों द्वारा उत्पादित रेशम ककून का प्रतिस्पर्धा के जरिये समुचित मूल्य दिलाने के लिये नर्मदापुरम जिले में अक्टूबर 2023 से रेशम ककून मण्डी की स्थापना भी की गई है।
गौरतलब है कि प्रदेश के सतपुड़ा एवं नर्मदा के वनों का ककून अत्यंत शुद्ध एवं प्रदूषणरहित माना जाता है। उन्हीं ककून से दवाइयां बनायी जाएंगी। इससे पावडर, क्रीम, सेरी बैंडेज, सिजेरीयन ड्रेसिंग, डायबिटिक घाव की ड्रेसिंग तथा ऑपरेशन के बाद की ड्रेसिंग भी बनायी जा सकेंगी। रेशम घाव को गीला नहीं रखता एवं शरीर के साथ भी नहीं चिपकता तथा रेशम से फायब्रोयिन नामक प्रोटीन निकलता है, जो जख्मों, डायबिटिज से ऊगंलियों में होने वाले घाव एवं गर्भवती महिलाओं के सर्जिकल डिलीवरी के घाव कम समय में ठीक करता है तथा इससे संक्रमण की संभावना भी नगण्य हो जाती है।
रेशम के धागे से बनी दवा बाजार दर से 30 प्रतिशत सस्ती होगी
रेशम से दवाइयां व बैंडेज बनाने की नवाचार प्रक्रिया से प्रदेश के किसानों का ककून अधिक क्रय होगा। साथ ही उन्नत किस्म के रेशम के धागे के अलावा दवा फैक्टरी खोलकर ऐसी दवा का निर्यात भी होगा। रेशम के धागे से निर्मित होने वाली दवा बाजार दर से 30 प्रतिशत सस्ती होगी। इन दवाइयों को ड्रग्स कंट्रोलर, भारत सरकार द्वारा मान्यता दे दी गई है। फिलहाल यह एक शुरुआत है, आगे चलकर नर्मदापुरम जिले में एक फार्मा फैक्टपी भी स्थापित की जा सकती है।