भारतीय ज्ञान परंपरा में है विश्व का नेतृत्व करने की क्षमताः प्रो. अशोक कुमार चक्रवाल

-अनुसंधान, नवाचार एवं भारतीय ज्ञान परंपरा पर राष्ट्रीय कार्यशाला प्रारंभ

-भारतीय भाषाओं एवं भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए किए जाएंगे शोध

झांसी, 17 जुलाई (हि.स.)। विश्व की पुरातन सभ्यताओं में भारत का स्थान अग्रणी रहा है। इसका एक कारण है कि हमारे पूर्वज सभ्यता संस्कृति वास्तु कला विज्ञान ज्योतिष गणित आदि अनेक क्षेत्र में जो कार्य कर गए हैं, उन्हें आज भी कोई नकार नहीं पाया है। उपरोक्त विचार गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आलोक कुमार चक्रवाल ने व्यक्त किये। वे मुख्य अतिथि के रूप में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी एवं शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास, नई दिल्ली द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों के आधार पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला अनुसंधान नवाचार एवं भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर आयोजित कार्यशाला में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे।

प्रो. चक्रवाल ने कहा कि नये शोधकर्ताओं की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह हमारी मूल ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ाएं। शोध का उद्देश्य केवल एकेडमिक उपलब्धि प्राप्त करना नहीं होना चाहिए बल्कि उससे समाज राष्ट्र और विश्व तीनों की समस्या का समाधान हो ऐसा प्रयास करना चाहिए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रभारी कुलपति प्रो. अपर्णा राज ने कहा कि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय ऐसे कार्यक्रम का आयोजन कर अभिभूत है। इस राष्ट्रीय कार्यशाला से निश्चित ही भारतीय भाषा एवं ज्ञान आधारित शोधों को बढ़ावा मिलेगा। विशिष्ट अतिथि मध्य प्रदेश खाद्य आयोग के अध्यक्ष प्रो. वीके मल्होत्रा ने कहा कि नई शिक्षा नीति का उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा को ध्यान में रखकर अनुसंधान और नवाचार का है। शिक्षा एवं ज्ञान केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। शिक्षा नीति में इसीलिए कौशल विकास प्रायोगिक प्रशिक्षण एवं सामाजिक उपयोगी शोध को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।

कार्यशाला के राष्ट्रीय संयोजक शोध प्रकल्प प्रोफेसर तिमिर त्रिपाठी ने कहा कि इस प्रकल्प की शुरुआत 2017 में हुई थी। वर्तमान में देश के 20 से अधिक प्रति में शोध प्रकल्प भारतीय ज्ञान परंपरा आधारित शोधों को प्रोत्साहित कर रहा है। इस कार्यशाला का उद्देश्य देश से आए विभिन्न प्रतिभागियों को भारतीय ज्ञान परंपरा की मूल भावना से अवगत कराना है।

राष्ट्रीय संयोजक भारतीय भाषा मंच डॉ राजेश्वर कुमार ने कहा कि वर्तमान में अनेक ऑन शोध प्रबंध पीएचडी उपाधि हेतु विश्वविद्यालय में प्रस्तुत किए जा रहे हैं परंतु उसे सापेक्ष में सामाजिक समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है। पूर्व शिक्षा पद्धति ने मूल्य विहीन प्रोफेशनल्स का उत्पादन किया है। जिनका प्रमुख लक्ष्य मानव सेवा न होकर धनार्जन है। हमारा समाज भी सेवा करने वाले की अपेक्षा धनाढ्य व्यक्ति का उपासक है। नई शिक्षा नीति पुनः मानवीय मूल्यों के साथ राष्ट्र प्रथम की अवधारणा वाले चित्रों का निर्माण करेगी।

इसके पूर्व कार्यालय संयोजक प्रोफेसर अवनीश त्रिपाठी ने दो दिवस की कार्यशाला प्रस्तुत करते हुए कहा कि इन दो दिनों में विभिन्न विशेषज्ञ द्वारा शोध मे भारतीय दृष्टिकोण, आत्मनिर्भर भारतीय परिपेक्ष्य, कोशलविकास मे नवाचार आवश्यकतानुसार स्थानीय विषयों मे शोध तथा नवाचार पर विचार विमर्श किया जाएगा।

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