लोगों को गुलाम बनाकर भारत ने नहीं किया व्यापार : मनमोहन वैद्य

नई दिल्ली, 16 मई (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य डॉ. मनमोहन वैद्य ने गुरुवार को कहा कि हम दुनिया में व्यापार करने गए लेकिन उपनिवेश नहीं बनाए। भारत ने लोगों को गुलाम बनाकर व्यापार नहीं किया।

डीयू के कन्वेंशन हाल में ‘वी एंड द वर्ल्ड अराउंड’ पुस्तक पर चर्चा के दौरान पुस्तक के लेखक डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा कि ईस्वी सन् 01 से लेकर 1500 तक विश्व व्यापार में भारत का हिस्सा 30 प्रतिशत से अधिक था जोकि दुनिया में सर्वाधिक था। उन्होंने कहा कि वर्ष 1945 में दूसरा विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद इंग्लैंड, जर्मनी और जापान जैसे देशों की ढांचागत क्षति बहुत हुई थी। वर्ष 1948 में इज़राइल ने 1800 वर्षों के बाद नई शुरुआत की। वर्ष 1947 में भारत स्वाधीन हुआ। भारत की ढांचागत क्षति इंग्लैंड, जर्मनी और जापान जैसी नहीं हुई थी लेकिन अब तक के वर्षों में इज़राइल, जर्मनी, जापान, इंग्लैंड जैसे देशों ने जितनी प्रगति की है भारत में उतनी नहीं हुई। इसका कारण है कि हमारे पास डायरेक्शन की कमी थी। इन चारों देशों में एकरूपता यह है कि हम कौन हैं, हमारा इतिहास क्या था और हमारे पुरखे कौन थे। इस बारे में सब लोग एकमत हैं। भारत में “हम कौन हैं” के बारे में हम सब एकमत नहीं हैं। भारत अलग-अलग संस्कृतियों का देश नहीं है, भारत की संस्कृति एक है जिसका आधार अध्यात्म है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता डीयू के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने की। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भारत में अपनी चिंता करने वाले बढ़े हैं जबकि देश की चिंता करने वाले कम हुए हैं। उन्होंने कहा कि अच्छी किताबों पर चर्चा लोगों की समझ और ज्ञान को विकसित करती है। उन्होंने उक्त पुस्तक के संदर्भ में चर्चा करते हुए कहा कि ‘आई’ से ‘वी’ तक की यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। “वी एंड द वर्ल्ड अराउंड” पुस्तक में इस पर चर्चा की गई है। प्रो. सिंह ने कहा कि जैसा हमारा मन होगा वैसी हमारी दृष्टि होगी। इसलिए मन को बनाने का काम बहुत जरूरी है।

कार्यक्रम के आरंभ में दक्षिणी परिसर के निदेशक प्रो. प्रकाश सिंह ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में डीन अकादमिक प्रो. के. रत्नाबली ने आभार ज्ञापित किया। इस दौरान पुस्तक पर खुली चर्चा भी हुई। उपस्थित शिक्षाविदों ने खुली चर्चा में लेखक से प्रश्नों के माध्यम से अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया।

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