नई दिल्ली 20 सितम्बर: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आज कहा कि भारतीय संविधान ने अपनी स्थापना के बाद से लैंगिक न्याय, जीवन की सुरक्षा और सम्मान के क्षेत्र में कई मौन क्रांतियों को सक्षम बनाया है। नई दिल्ली में एशिया प्रशांत क्षेत्र के राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने आवास, शौचालय, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं जैसी बुनियादी सुविधाएं सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वाकांक्षी योजनाएं भी शुरू की हैं जिससे गरीबों के सम्मान की रक्षा हुई हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने स्थानीय निकायों के चुनावों में महिलाओं के लिए न्यूनतम 33 प्रतिशत आरक्षण सुनिश्चित किया है। उन्होंने कहा कि राज्य विधानसभाओं और राष्ट्रीय संसद में महिलाओं के लिए समान आरक्षण अब आकार ले रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि लैंगिक न्याय के लिए यह हमारे समय की सबसे परिवर्तनकारी क्रांति होगी।
राष्ट्रपति मुर्मू ने इस बात पर जोर दिया कि महात्मा गांधी के जीवन और विचारों ने मानवाधिकारों के लिए सार्वभौम घोषणा को आकार देने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने कहा कि दक्षिण अफ्रीका में एक रेल यात्रा के दौरान हुई घटना के बाद महात्मा गांधी ने कई लोगों को भेदभाव और सम्मान के खिलाफ लड़ाई के बारे में प्रेरित किया। डॉ. भीम राव अंबेडकर के योगदान पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि डॉ. अंबेडकर मानवाधिकारों के अग्रणी चैंपियन थे, जिन्होंने दलित वर्गों को अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना और सम्मान के साथ जीना सिखाया।
दो दिवसीय सम्मेलन में मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा की 75वीं वर्षगांठ और राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों और पेरिस सिद्धांतों के 30 साल पूरे होने का उत्सव मनाया जाएगा। इसमें पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर एक उप-विषय भी रखा जाएगा। इसके अतिरिक्त भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग व्यवसाय और मानवाधिकार पर एक सेमिनार भी आयोजित करेगा। इस कार्यक्रम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यवसाय अपने संचालन में मानवाधिकारों और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राथमिकता दें।