‘मन की बात’ के 23 करोड़ नियमित श्रोता; 96 प्रतिशत जनता इस लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम से परिचित: आईआईएम रोहतक की रिपोर्ट
श्रोताओं ने सशक्त एवं निर्णायक नेतृत्व और लोगों के साथ भावनात्मक जुड़ाव को इस कार्यक्रम की लोकप्रियता का कारण माना
इस रिपोर्ट के अनुसार, ‘मन की बात’ लोगों के व्यवहार को प्रभावित करती है; 60 प्रतिशत लोगों की राष्ट्र निर्माण में दिलचस्पी है; 73 प्रतिशत लोग यह महसूस करते हैं कि देश सही दिशा में अग्रसर है
नई दिल्ली 25 अप्रैल : श्री नरेन्द्र मोदी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ से लगभग छियानवे प्रतिशत जनता परिचित है। यह कार्यक्रम 100 करोड़ लोगों तक पहुंच गया है जो जागरूक हैं और कम से कम एक बार इस कार्यक्रम को सुन चुके हैं। ये आंकड़े प्रसार भारती द्वारा कराए गए और भारतीय प्रबंधन संस्थान, रोहतक द्वारा किए गए एक विस्तृत अध्ययन में सामने आए। इस अध्ययन के निष्कर्षों को प्रसार भारती के सीईओ श्री गौरव द्विवेदी और आईआईएम रोहतक के निदेशक श्री धीरज पी. शर्मा ने एक संवाददाता सम्मेलन में सामने रखा।
इस अध्ययन के निष्कर्षों के बारे में जानकारी देते हुए, श्री शर्मा ने कहा कि 23 करोड़ लोग नियमित रूप से इस कार्यक्रम को सुनते हैं जबकि 41 करोड़ अन्य लोग बीच-बीच में इस कार्यक्रम सुनते रहते हैं जिनके इस कार्यक्रम के नियमित श्रोता बनने की पर्याप्त संभावना है।
यह रिपोर्ट प्रधानमंत्री के इस रेडियो प्रसारण की लोकप्रियता के पीछे के कारणों की पड़ताल करती है और उन सबसे पसंदीदा विशेषताओं को सूचीबद्ध करती है जो लोगों को इस प्रसारण से जोड़ती हैं। एक शक्तिशाली और निर्णायक नेतृत्व द्वारा श्रोताओं के साथ एक भावनात्मक जुड़ाव बनाने के इरादे से बोलने को इस कार्यक्रम से जुड़ने के कारण के रूप में चिन्हित किया गया है। इस देश की जनता ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञानी और सहानुभूतिपूर्ण एवं संवेदनशील दृष्टिकोण रखने वाले नेता होने का श्रेय दिया है। नागरिकों के साथ सीधे जुड़ाव और मार्गदर्शन को भी इस कार्यक्रम द्वारा स्थापित किए गए भरोसे के कारण के रूप में चिन्हित किया गया है।
इस अध्ययन ने ‘मन की बात’ के अब तक के 99 संस्करणों का लोगों पर पड़ने वाले प्रभाव को मापने की कोशिश की है। इस अध्ययन में यह कहा गया है कि अधिकांश श्रोता सरकारों के कामकाज के प्रति जागरूक हो गए हैं और 73 प्रतिशत लोग आशावादी हैं तथा यह महसूस करते हैं कि देश प्रगति कर रहा है। इस अध्ययन में शामिल होने वाले 58 प्रतिशत श्रोताओं ने कहा कि उनका जीवन स्तर बेहतर हुआ है, जबकि इतने ही लोगों (59 प्रतिशत) ने इस सरकार के प्रति भरोसा बढ़ने की सूचना दी है। इस सरकार के प्रति आम जनभावना का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस सर्वेक्षण के अनुसार 63 प्रतिशत लोगों ने माना है कि इस सरकार के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक हुआ है और 60 प्रतिशत लोगों ने राष्ट्र निर्माण के लिए काम करने में रुचि दिखाई है।
अध्ययन ने इस कार्यक्रम के श्रोताओं को तीन श्रेणियों में बांटा है। कुल 44.7 प्रतिशत लोग इस कार्यक्रम को टीवी पर देखते हैं, जबकि 37.6 प्रतिशत लोग इसे मोबाइल पर देखते हैं। इस कार्यक्रम को सुनने की तुलना में देखना अधिक पसंद किया जाता है, क्योंकि इस अध्ययन में शामिल 19 से 34 वर्ष के बीच के आयु वर्ग के 62 प्रतिशत प्रतिभागियों ने इसे टीवी पर देखना पसंद किया।
‘मन की बात’ के श्रोताओं में सबसे बड़ा हिस्सा हिन्दी श्रोताओं का है। कुल 65 प्रतिशत श्रोताओं ने हिन्दी को किसी भी अन्य भाषा की तुलना में अधिक पसंद किया है, जबकि 18 प्रतिशत श्रोताओं के साथ अंग्रेजी दूसरे स्थान पर है।
इस अध्ययन में शामिल होने वाले प्रतिभागियों की पृष्ठभूमि के बारे में बोलते हुए, निदेशक श्री धीरज शर्मा ने बताया कि इस अध्ययन में 10003 लोगों ने भाग लिया था। इनमें से 60 प्रतिशत पुरुष थे, जबकि 40 प्रतिशत महिलाएं थीं। इस अध्ययन में भाग लेने वाले लोग 68 विभिन्न पेशों से जुड़े हुए थे। इनमें से 64 प्रतिशत लोग अनौपचारिक एवं स्व-नियोजित क्षेत्र से जुड़े हुए थे, जबकि छात्रों की हिस्सेदारी 23 प्रतिशत की थी।
श्री शर्मा ने कहा कि इस अध्ययन के लिए ‘स्नोबॉल सैंपलिंग’ का उपयोग करके भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम क्षेत्रों में से प्रति क्षेत्र से लगभग 2500 प्रतिक्रियाओं के साथ साइकोमेट्रिकली शुद्ध सर्वेक्षण पद्धति के माध्यम से डेटा एकत्र किया गया था।
श्री गौरव द्विवेदी ने श्रोताओं को बताया कि 22 भारतीय भाषाओं और 29 बोलियों के अलावा, ‘मन की बात’ अंग्रेजी के साथ ही 11 विदेशी भाषाओं में प्रसारित किया जाता है, जिनमें फ्रेंच, चीनी, इंडोनेशियाई, तिब्बती, बर्मी, बलूची, अरबी, पश्तो, फारसी, दारी और स्वाहिली शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आकाशवाणी के 500 से अधिक प्रसारण केंद्रों द्वारा ‘मन की बात’ का प्रसारण किया जा रहा है।
अध्ययन शुरू करने के पीछे की विचार प्रक्रिया पर, श्री द्विवेदी ने कहा कि ” एक विचार था कि हमें न केवल विशिष्ट भागों पर बल्कि पूरे कार्यक्रम पर बेहतर प्रतिक्रिया प्राप्त करने की आवश्यकता है।” उन्होंने कहा कि मन की बात पर डिजिटल फीडबैक आसानी से उपलब्ध है, लेकिन कुछ सीमाओं के कारण पारंपरिक मीडिया के मामले में ऐसा नहीं है। इसी दृष्टि से 18 अप्रैल 2022 को आईआईएम रोहतक को सर्वे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी।