नई दिल्ली २१ अप्रैल : सर्वोच्च न्यायालय ने कल महाराष्ट्र सरकार द्वारा मराठा समुदाय के लिए आरक्षण के लिए दायर याचिका की समीक्षा से इंकार कर दिया। 2018 में महाराष्ट्र सरकार ने सामाजिक और आर्थिक पिछडे वर्ग के अंतर्गत मराठा समुदाय आरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव पारित किया था। सरकारी नौकारियों और शिक्षा संस्थानों में मराठा समुदाय के उम्मीदवारों के लिए 16 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं थीं। कुछ नागरिकों ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में इस फैसले को यह कहते हुए चुनौती दी कि यह अधिकतम 50 प्रतिशत आरक्षण के मौलिक सिद्धांत का उल्लंघन करता है।
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को सही माना लेकिन आरक्षण का प्रतिशत कम करके बारह प्रतिशत कर दिया। याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी जिसने आरक्षण को गैर-संवैधानिक बताते हुए 2021 में खारिज कर दिया। भारत सरकार ने इस निर्णय को समीक्षा याचिका के माध्यम से चुनौती दी और उच्चतम न्यायालय ने कल समीक्षा याचिका रद्द कर दी।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि सरकार, मराठा समुदाय को आरक्षण देने के प्रति पूरी तरह वचनबद्ध है। हम मराठा समुदाय के लिए जो भी जरूरी होगा वह करेंगे। पूर्व मुख्यमंत्री और मराठा आरक्षण के लिए गठित उप-समिति के प्रमुख अशोक चौहान ने कहा कि केन्द्र सरकार को आरक्षण के लिए 50 प्रतिशत की सीमा में रियायत देनी चाहिए। उन्होंने बताया कि इसी तरह की मांग महाविकास अगाडी के प्रतिनिधियों ने संसद में रखी थी। उन्होंने राज्य सरकार और भारतीय जनता पार्टी से अपील में आरक्षण में 50 प्रतिशत सीमा में छूट देने का समर्थन किया।
याचिकाकर्ताओं में से एक मराठा क्रांति मोर्चा के संयोजक विनोद पाल ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय है। अंतिम विकल्प के रूप में स्थिति में क्यूरेटिव याचिका दायर की जा सकती है।