नई दिल्ली २९ जनवरी : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत लोकतंत्र की जननी है और लोकतंत्र भारत की जनमानस की रगो और संस्कृति में रचा-बसा है। आज आकाशवाणी से मन की बात कार्यक्रम की 97वीं कड़ी में उन्होंने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और भारतीय समाज की प्रकृति भी लोकतांत्रिक है। उन्होंने कहा कि डॉक्टर भीमराव आम्बेडकर ने बौद्ध भिझुओं के संघ की तुलना संसद से की थी। श्री मोदी ने कहा कि इन संघों में प्रस्ताव और संकल्प प्रस्तुत करने, गणपूर्ति यानी कोरम, मतदान और मतगणना के लिए स्पष्ट नियम थे। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब का विश्वास था कि भगवान बुद्ध ने भी अपने समय की समस्त राजनीतिक प्रणालियों से प्रेरणा ली होगी। श्री मोदी ने द मदर ऑफ डेमोक्रेसी नामक पुस्तक की चर्चा की जिसमें लोकतंत्र की भारतीय संस्कृति का कई विचारोत्तेजक निबंध हैं। उन्होंने तमिलनाडु के एक लोकप्रिय गांव उतिरमेरुर की चर्चा की जहां लगभग 12 सौ वर्ष पूर्व के शिलालेख मौजूद हैं। श्री मोदी ने कहा कि यह शिलालेख स्वयं में एक लघु संविधान है। इन शिलालेखों पर इस बात के विस्तृत विवरण हैं कि ग्राम सभा के आयोजन और इसके सदस्यों के चयन की प्रक्रिया क्या हो।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 12वीं सदी के भगवान बासवेश्वर का अनुभव मंडपम भारतीय इतिहास में लोकतंत्र मूल्यों का एक और उदाहरण है। अनुभव मंडपम में मुक्त विमर्श और चर्चा को प्रोत्साहित किया जाता था। श्री मोदी ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि इंग्लैंड में मैग्ना कार्टा जारी होने से काफी पहले भारत में अनुभव मंडपम मौजूद था। प्रधानमंत्री ने कहा कि वारंगल के काकतेय राजवंश की जनतांत्रिक परंपराएं भी अत्यंत प्रसिद्ध थीं। उन्होंने कहा कि भक्ति आंदोलन के कारण पश्चिम भारत में लोकतंत्र की संस्कृति को बढ़ावा मिला। श्री मोदी ने सिख पंथ की लोकतांत्रिक शैली की भी चर्चा की जिसमें गुरुनानक देव ने सहमति के आधार पर निर्णय लेने की परंपरा शुरू की थी। उन्होंने कहा कि मध्य भारत में उरांव और मुंडा जनजातियों में भी सामुदायिक स्तर पर और सहमति से निर्णय लिए जाते हैं। श्री मोदी ने कहा कि सदियों से लोकतंत्र की भावना देश के हर कोने में विद्यमान रही है। उन्होंने कहा कि भारतीय जनमानस को इस विषय पर गहन चिंतन और विचार विमर्श की आवश्यकता है ताकि विश्व समुदाय को इससे अवगत कराया जा सके। उन्होंने कहा कि इससे देश में लोकतंत्र की भावना मजबूत होगी।
प्रधानमंत्री ने इस बात पर गर्व व्यक्त किया कि संयुक्त राष्ट्र ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस और अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष मनाने के भारत के प्रस्ताव पर सकारात्मक निर्णय लिया। उन्होंने कहा कि योग और मोटा अनाज — दोनों स्वास्थ्य से जुड़े हैं। श्री मोदी ने कहा कि दोनों अभियानों से बड़ी संख्या में लोग जुड़े हैं। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि अब लोग बड़े पैमाने पर मोटे अनाज को अपने भोजन में शामिल कर रहे हैं। श्री मोदी ने कहा कि इससे पारंपरिक रूप से मोटे अनाज उपजाने वाले छोटे किसानों पर बहुत प्रभाव पड़ा है। उन्होंने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि किसान उत्पादक संघों और उद्यमियों ने मोटे अनाज को बाजार में उपलब्ध कराने के प्रयास शुरू किए हैं। प्रधानमंत्री ने आंध्र प्रदेश के नांदयाल जिले के के0 बी0 रामासुब्बा रेड्डी की चर्चा की जिन्होंने अपनी अच्छी खासी नौकरी छोड़कर अपने गांव में मोटे अनाजों को प्रसंस्कृत करने की इकाई स्थापित की। उन्होंने महाराष्ट्र के अलीबाग के केनाड गांव की शर्मिला ओसवाल का जिक्र भी किया जो पिछले 20 वर्षों से अनोखे तरीके से मोटे अनाज का उत्पादन कर रही हैं। सुश्री शर्मिला किसानों को स्मार्ट खेती के लिए प्रशिक्षण देती हैं जिससे मोटे अनाज का उत्पादन और किसानों की आय– दोनों बढ़ी है।
प्रधानमंत्री ने श्रोताओं से छत्तीसगढ़ में रायगढ़ के मिलेट्स कैफे के चिल्ला, डोसा, मोमोज, पिज्जा और मंचूरियन का स्वाद लेने की अपील की। श्री मोदी ने ओडिशा में मोटे अनाज के उद्यम से जुड़े लोगों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि राज्य के जनजातीय जिले सुंदरगढ़ में लगभग 15 सौ महिलाओं का एक स्व-सहायता समूह मोटे अनाज के मिशन से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कर्नाटक के कलबुर्गी में भारतीय मोटा अनाज अनुसंधान संस्थान की देखरेख में पिछले वर्ष काम शुरू करने वाली अलंद भूताई मोटा अनाज किसान उत्पादक कंपनी की चर्चा की। प्रधानमंत्री ने कनार्टक के बीदर जिले की महिलाओं की भी प्रशंसा की जो हुलसूर मोटा अनाज उत्पादन कंपनी से जुड़ी हैं। ये महिलाएं मोटे अनाज की खेती कर रही हैं और इन अनाजों से आटा तैयार कर रही हैं। प्रधानमंत्री ने 12 राज्यों के किसानों के कामकाज की भी तारीफ की जो छत्तीसगढ़ के बिलासपुर के संदीप शर्मा के एफपीओ से जुड़े हैं। इस एफपीओ में मोटे अनाज से आठ तरह के आटे और व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता व्यक्त की कि जी-20 से जुड़े आयोजनों में मोटे अनाज से तैयार स्वादिष्ट भोजन परोसे जा रहे हैं। इनमें बाजारा-खिचड़ी, पोहा, खीर और रोटी, रागी से बने पायसम, पूरी और डोसा शामिल हैं। श्री मोदी ने कहा कि इन आयोजनों में मोटे अनाज से तैयार स्वास्थ्यकर पेय और नूडल्स को प्रदर्शित किया जा रहा है। दुनिया भर में स्थित भारतीय दूतावास भी मोटे अनाज की लोकप्रियता बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्व में मोटे अनाजों की बढ़ती मांग से छोटे किसानों की स्थिति मजबूत होगी। श्री मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष की शानदार शुरुआत के लिए मन की बात के श्रोताओं को धन्यवाद दिया।
हाल ही में घोषित पद्म पुरस्कारों के बारे में श्री मोदी ने कहा कि इस बार जनजातीय समुदाय और उनसे जुड़े लोगों को भी अच्छी संख्या में पद्म पुरस्कार दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि टोटो, हू, कुई, कुवी और मंडा जनजातीय भाषाओं पर काम करने वालों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि आज धनीराम टोटो, जानम सिंह सॉय और बी0 रामाकृष्णन रेड्डी की देश भर में पहचान है। उन्होंने यह भी कहा कि सिद्धि, जारवा और ओंगे जनजातियों के लिए काम करने वालों को भी इस वर्ष सम्मानित किया गया है। इनमें हीराबाई लोबी, रतन चंद्र कार और ईश्वरचंद्र वर्मा प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि जनजातीय समुदाय भारतीय भूमि और धरोहर का अभिन्न अंग हैं। श्री मोदी ने कहा कि इस वर्ष नक्सल पीडित इलाकों में भी भटके युवाओं को सही राह दिखाने वालों को पद्म पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। इस वर्ष काष्ठ कला से जुड़े कांकेर के अजय कुमार माण्डवी और मशहूर जरीपत्ती रंगभूमि से जुड़े गढ़चिरौली के परशुराम कोमा जी खुने को भी सम्मानित किया गया है। इसी प्रकार, पूर्वोत्तर के संस्कृति के संरक्षण से जुड़े रामकुई वांग्बे नुइमे, बिक्रम बहादुर जमातिया और कर्मा वांग्चू को भी पुरस्कार प्रदान किया गया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि संतूर, बामहूम और द्वितारा जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रसार करने वालों को भी इस वर्ष सम्मानित किया गया। इनमें गुलाम मोहम्मद जाज, मोआ सू पोंग, री सिंगबोर कुर्का लोंग, मुनि वेंकटप्पा और मंगलकांति राय प्रमुख हैं।श्री मोदी ने लोगों से अपील की कि वे इन पद्म पुरस्कार विजेताओं के प्रेरणास्पद जीवन से सीख लें। श्री मोदी ने कहा कि इस महीने की छह से आठ तारीख तक गोवा में आयोजित पर्पल फेस्ट को दिव्यांगों के लिए एक अनूठा प्रयास बताया। उन्होंने कहा कि इस आयोजन के दौरान गोवा के मिरामार बीच पर क्रिकेट, टेबल टेनिस, मैराथन और वधिर-नेत्रहीन सम्मेलन आयोजित किए गए। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस उत्सव में निजी क्षेत्र की भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण है और इससे ऐसे अभियानों को अधिक प्रभावी बनाने में मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री ने बंगलुरू के भारतीय विज्ञान संस्थान में अपने संबोधन की चर्चा करते हुए कहा कि यह देश के सबसे पुराने विज्ञान संस्थानों में से है जिसकी स्थापना के पीछे जमशेदजी टाटा और स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा रही है। उन्होंने इसे प्रसन्नता का विषय बताया कि पिछले वर्ष इस संस्थान को एक सौ 45 पेटेंट प्राप्त हुए। श्री मोदी ने कहा कि अब भारत पेटेंट दायर करने के मामले में सातवें स्थान पर और ट्रेडमार्क के मामले में पांचवें स्थान पर है। उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षों में इसमें लगभग 50 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उन्होंने बताया कि वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत 2015 में 80वें स्थान से नीचे था लेकिन अब 40वें स्थान पर पहुंच गया है। श्री मोदी ने इस बात पर संतोष व्यक्त किया कि पिछले 11 वर्षों में स्वदेश में पेटेंट दायर करने की संख्या विदेश में दायर संख्या की तुलना में अधिक रही है। उन्होंने कहा कि इससे भारत की बढ़ती वैज्ञानिक क्षमता का पता चलता है। प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि 21वीं सदी की वैश्विक अर्थव्यवस्था में ज्ञान ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि देश के नवाचारियों और उनके पेटेंट की शक्ति की बदौलत भारत तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति बनने के स्वप्न को मूर्त रूप देने में सक्षम होगा।
प्रधानमंत्री ने ई-अपशिष्ट पर भी अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि आज हम जिन उपकरणों को नवीनतम मान रहे हैं, कल वही ई-अपशिष्ट बन जाएंगे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ई-अपशिष्ट का ठीक से निपटान न किए जाने पर पर्यावरण को नुकसान होगा। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे को दोबारा उपयोग के लायक बनाने के काम को बहुत बल मिल सकता है। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार प्रति वर्ष पांच करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट फेंके जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस कचरे से 17 प्रकार की बेशकीमती धातु प्राप्त की जा सकती है, जिनमें सोना, चांदी, तांबा और निकेल प्रमुख हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि ई-अपशिष्ट का उपयोग कचरे को कंचन बनाने जैसा है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में कई स्टार्टअप काम कर रहे हैं। श्री मोदी ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक कचरे को दोबारा उपयोग के लायक बनाने के काम में लगभग पांच सौ इकाइयां लगी हैं और कई नए उद्यमी इससे जुड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस क्षेत्र में हजारों लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार मिला है। उन्होंने इस क्षेत्र कार्यरत बेंगलुरू की ई-परिसारा का उदाहरण दिया जिसने प्रिंटेड सर्किट बोर्ड से बेशकीमती धातुओं को निकालने की स्वदेशी तकनीक विकसित की है।
प्रधानमंत्री ने मुंबई के ईकोरेको की चर्चा की जिसने ई-अपशिष्ट को इकट्ठा करने के लिए मोबाइल ऐप विकसित किया है। इस क्षेत्र में उत्तराखंड के अटेरो रीसाइक्लिंग ऑफ रूड़की कई पेटेंट प्राप्त हुए हैं। इस संस्था को इलेक्ट्रॉनिक कचरे को दोबारा उपयोग करने की तकनीक विकसित करने के लिए कई पुरस्कार मिले हैं। भोपाल में भी मोबाइल ऐप और कबाड़ीवाला वेबसाइट के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक कचरे इकट्ठा किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इन प्रयासों के कारण भारत अब दोबारा उपयोग के लायक वस्तु तैयार करने का वैश्विक केंद्र बन रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों को इलेक्ट्रॉनिक कचरे का सही तरीके से निपटान कर सुरक्षित रहने के प्रति जागरूक बनाने की आवश्यकता है। फिलहाल देश में प्रति वर्ष केवल 15 से 17 प्रतिशत इलेक्ट्रॉनिक कचरे को दोबारा उपयोग के लायक बनाया जा रहा है।
श्री मोदी ने दलदली भूमि के लिए भारत में हुए कामकाज की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दो फरवरी को विश्व दलदली भूमि दिवस मनाया जाएगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि पृथ्वी के अस्तित्व के लिए दलदली भूमि बेहद महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यहां कई पक्षियों और पशुओं का बसेरा होता है। इनसे जैवविविधता समृद्ध होती है और बाढ़ नियंत्रण तथा भूजल पुनर्भरण भी सुनिश्चित होता है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय महत्व का रामसर स्थल दलदली भूमि ही है। रामसर का दर्जा ऐसी परती भूमि को दिया जाता है जहां 20 हजार से अधिक जल पक्षी रहते हैं। मछलियों की स्थानीय प्रजातियों की बड़ी संख्या में मौजूदगी महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री ने बताया कि अब भारत में रामसर स्थलों की संख्या बढ़कर 75 हो गई है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2014 से पहले देश में केवल 26 रामसर स्थल थे। श्री मोदी ने कहा कि ओडिशा की चिल्का झील में जलीय पक्षियों की 40 से अधिक प्रजातियां हैं। मणिपुर में कैबुल-लमजा और लोकटुक झील दलम हिरण का एकमात्र प्राकृतिक निवास स्थान है। इसी प्रकार तमिलनाडु के वेदनथंगल को वर्ष 2022 में रामसर स्थल घोषित किया गया था। प्रधानमंत्री ने वेदनथंगल में पक्षियों के संरक्षण का पूरा श्रेय स्थानीय किसानों को दिया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में पंजठ नाग समुदाय वार्षिक फल उत्सव के दौरान एक पूरा दिन गांव के जलस्रोत की सफाई में व्यतीत करता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि अधिकतर रामसर स्थलों की अपनी मौलिक सांस्कृतिक विशेषता है। उन्होंने कहा कि लोकटुक और रेणुका झीलों के साथ मणिपुर की संस्कृति का गहरा संबंध है। इसी प्रकार, सांभर देवी दुर्गा की अवतार शाकंभरी देवी से संबंधित है।
श्री मोदी ने इस वर्ष विशेषकर उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड की चर्चा की। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से आ रही सर्दियों की तस्वीरें पूरे देश का दिल जीत लेती हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि लोगों ने बनिहाल से बड़गाम जाने वाली रेलगाड़ी के वीडियो भी बहुत पसंद किए हैं। उन्होंने श्रोताओं से हिमाच्छादित पर्वतों को देखने के लिए कश्मीर की यात्रा करने की अपील की। उन्होंने कहा कि कश्मीर में सईदाबाद में शीतकालीन खेल आयोजित किए गए थे। इन खेलों का मुख्य विषय था- बर्फीला क्रिकेट। अंत में, प्रधानमंत्री ने जन सहभागिता से भारतीय लोकतंत्र को मजबूत की अपील की।