नई दिल्ली १० दिसंबर : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सभी के बीच न्याय की धारणा के विस्तार की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने कहा कि संवेदनशीलता और करूणा मानवाधिकारों को बढ़ावा देने की कुंजी है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि अगर हम उन लोगों के स्थान पर स्वंय की कल्पना करें, जिन्हें मानव से भी कम आंका जाता है, तो यह हमारी आंखें खोल देगा और हमें सही कार्य करने के लिए विवश करेगा।
आज नई दिल्ली में 74वें मानवाधिकार दिवस समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि यह स्वर्णिम नियम है कि “दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप स्वंय के लिए चाहते हैं।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा पिछले वर्ष की गई पहलों के बारे में राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मानवाधिकारों के बारे में जागरूकता के प्रसार के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि 30वें वर्ष में आयोग ने मानवाधिकारों की रक्षा के साथ-साथ उन्हें बढ़ावा देने का सराहनीय कार्य किया है और विभिन्न वैश्विक मंचों में भी भाग लिया है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि भारत को इस बात पर गर्व है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोग के कार्यों को सराहा गया है।
सम्पूर्ण विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर राष्ट्रपति ने कहा कि चुनौतियां बहुत हैं और लोगों को मानवाधिकारों की अवधारणा को फिर से परिभाषित करने के लिए मजबूर कर रही हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को फिर से प्रकृति के साथ सम्मान का व्यवहार करना सीखना चाहिए। यह न केवल एक नैतिक कर्तव्य है, बल्कि मानव के अस्तित्व के लिए भी आवश्यक है।
हमारे संवाददाता ने खबर दी है कि मानवाधिकार दिवस हर वर्ष 10 दिसंबर को मनाया जाता है। 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों की रक्षा के लिए इसी दिन साझा मानक मानदंड के रूप में अपनाया और घोषित किया था। इस वर्ष इसका विषय है- ‘सभी के लिए गरिमा, स्वतंत्रता और न्याय’।