ओरछा (निवाड़ी), 28 नवंबर (हि.स.)। बुंदेलखंड की ‘अयोध्या’ के रूप में विख्यात ओरछा के वासी सोमवार शाम भगवान राजा राम की बारात देखकर गदगद हो गए। सजी-धजी ‘अयोध्या’ में दूल्हा बने भगवान राजा राम की झलक पाने के लिए स्त्री-पुरुष, बड़े-बूढ़े और बच्चे बारात पथ के दोनों ओर उमड़ पड़े। लोगों ने गेंदे और गुलाब के फूल बरसाए। राजसी ठाठ बाट के साथ निकली बारात का हर तोरण द्वार पर स्वागत किया गया। मंगल कलश सजाए गए।
वरयात्रा के मंदिर से निकलते ही सशस्त्र पुलिस बल ने दूल्हा बने राजा राम को गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया। इसके बाद राजा राम पालकी में विराजमान होकर नगर के प्रमुख प्राचीन मार्गों से गाजे-बाजे, ढोल-नगाड़े और हाथी-घोड़ों के साथ ओरछा के मुख्य चौराहे पर स्थापित जनक भवन (मंदिर) के लिए निकले। बारात पथ पर रामधुन गूंजती रही। बारात के स्वागत के लिए पथ पर पड़ने वाले नझाई मुहल्ला, पावर हाउस, शास्त्री नगर, गणेश दरवाजा के हर घर को सजाया गया। जनक भवन पहुंचने पर मंदिर के पुजारी राजा जनक के रूप में दूल्हा राजा राम का टीका कर बारात की अगवानी करेंगे।
श्रीराम राजा सरकार विवाह महोत्सव के दौरान बारात में इससे पहले करीब 10 डीजे शामिल होते रहे हैं। इस बार इनके स्थान पर बुंदेली वाद्य यंत्रों को शामिल किया गया। भजन मंडलियों ने बुंदेली वाद्य यंत्र की धुन पर भजनों की प्रस्तुति दी। रमतूला, तमूरा, खजरी, खड़ताल, मजीरा, ढोलक, घड़ा, सूपा, लोटा, हारमोनियम की धुनों पर पारंपरिक बुंदेली विवाह गीतों से बारात का स्वागत किया गया।
इससे पहले रविवार को श्री राम-जानकी विवाह महोत्सव के दौरान महल में स्थापित राजा राम मंदिर के आंगन में भगवान की हल्दी रस्म हुई। कलेक्टर तरुण भटनागर सपत्नीक मंडप स्थापना की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया। इसके बाद श्री रामराजा मंदिर धर्मशाला में आयोजित मंडप पंगत में करीब 72 हजार लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया।
सोमवार शाम को राम राजा मंदिर से बारात की शुरुआत हुई, जिसमें दूल्हे के रूप में रामराजा सरकार की प्रतिमा को पालकी में विराजित किया गया है। भगवान के सिर पर सोने का मुकुट नहीं, बल्कि आम बुंदेली दूल्हों की तरह खजूर की पत्तियों से बना मुकुट पहनाया गया। पालकी के एक ओर छत्र और दूसरी ओर चंवर लगाया गया। इसे देखकर बुंदेली वैभव की याद ताजा हो गई। बारा नगर के विभिन्न मार्गों से होते हुए देर रात भगवान जानकी मंदिर पहुंचकर सीता माता से विवाह करेंगे।
जिलाधिकारी तरुण भगटनागर के मुताबिक ओरछा में राजा राम बारात की परंपरा करीब 300 साल पुरानी है। इस बार के आयोजन में पहली बार संगीत के लिए पारंपरिक वाद्य यंत्रों का प्रयोग किया गया। बारात पथ पर बनाए गए तोरण द्वारों पर राजा राम और बारातियों पर फूल बरसाए गए। महोत्सव के दौरान बेतवा नदी के दोनों तटों पर सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर गोताखोर निगहबान रहे। अतिरिक्त कंट्रोल रूम बनाकर सीसीटीवी से नजर रखी गई।
राम राजा मंदिर के बार में जनश्रुति है कि ओरछा के राजा मधुकर राधा-कृष्ण और उनकी पत्नी महारानी कमलापति गणेश कुंवरी भगवान राम की भक्त थीं। एक दिन महारानी भगवान राम की भक्ति में लीन थीं और महाराज उनका इंतजार कर रहे थे। काफी देर बाद भी उनका ध्यान उनपर पर नहीं गया। इस पर महाराजा ने रानी से मजाक में कहा- ‘यदि तुम्हारे राम हमारे श्रीकृष्ण से ज्यादा महान हैं तो उन्हें ओरछा क्यों नहीं ले आती हो।’ कहते हैं यह बात महारानी के दिल पर लग गई और उन्होंने भगवान राम को ओरछा लाने की ठान ली। इसके बाद महारानी कमलापति ने सबसे पहले ओरछा के राज कारीगरों से चतुर्भुज मंदिर का निर्माण करवाया। इसके बाद वो भगवान राम को लाने के लिए सैकड़ों कोस दूर अयोध्या पैदल पहुंचीं। वहां सरयू नदी के लक्ष्मण घाट पर तपस्या शुरू कर दी। जब तपस्या करते हुए काफी समय बीत गया तो उन्होंने सरयू में ही प्राण त्यागने का फैसला किया।
पौराणिक आख्यान है कि इसके बाद भगवान राम बालरूप धारण कर महारानी की गोद में आकर बैठ गए। तब उन्होंने राम से अपने साथ ओरछा चलने का आग्रह किया, लेकिन राम ने उनके सामने तीन शर्तें रख दीं। उन्होंने कहा कि ‘मैं जहां बैठ जाऊंगा, वहां विराजमान हो जाऊंगा।’ उनकी दूसरी शर्त थी- ‘मुझे वहां का राजा माना जाएगा यानी, तुम्हारे पति ओरछा के राजा नहीं, बल्कि मैं होऊंगा।’ तीसरी शर्त थी- ‘ओरछा में पुण्य नक्षत्र पर ही आएंगे।’ रानी ने उनकी तीनों शर्तें मान लीं और राम को बालरूप में यहां ले आईं। तब से ओरछा की धड़कन में राम विराजमान हैं।
कलेक्टर तरुण भटनागर कहते हैं कि भगवान राम यहां धर्म से परे हैं। हिंदू हों या मुस्लिम, दोनों के ही वे आराध्य हैं। इतना ही नही राजा राम के सम्मान में किसी भी व्यक्ति को कमर बंद या बेल्ट लगाकर मंदिर परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है।
बेतवा नदी के किनारे बसा ओरछा ऐतिहासिक नगर है। इसकी स्थापना महाराज रुद्र प्रताप सिंह बुंदेला ने 1501 के आसपास की थी। यह टीकमगढ़ से 80 किलोमीटर और उत्तर प्रदेश के झांसी से 15 किलोमीटर दूर है। यहां महल में स्थापित राम राजा मंदिर दर्शनीय है। इसी महल के चारों ओर ओरछावासियों की बसावट है। भगवान राजा राम का ओरछा में करीब 400 वर्ष पूर्व राज्याभिषेक हुआ था। तब से आज तक यहां भगवान श्रीराम को राजा के रूप में पूजा जाता है।
यह संयोग है कि जिस संवत 1631 को रामराजा का ओरछा में आगमन हुआ, उसी दिन रामचरित मानस का लेखन भी पूर्ण हुआ। यह विश्व का अकेला मंदिर है जहां भगवान राम की पूजा राजा के रूप में होती है और उन्हें सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के पश्चात सलामी दी जाती है। यहां राम ओरछाधीश के रूप में मान्य हैं। राम राजा मंदिर के चारों तरफ हनुमान जी के मंदिर हैं। इसके चारों ओर छडदारी हनुमान, बजरिया के हनुमान, लंका हनुमान के मंदिर सुरक्षा चक्र के रूप में विद्यमान हैं।