काशी तमिल संगमम में भाग लेने के लिए तमिलनाडु का दूसरा जत्था पहुंचा काशी

वाराणसी, 22 नवम्बर (हि.स.)। पूरे एक माह तक चलने वाले ‘काशी तमिल संगमम’ में भाग लेने के लिए तमिलनाडु से दूसरा जत्था मंगलवार को काशी पहुंचा। कैंट स्टेशन पर तमिलनाडु से आये जत्थे का भव्य स्वागत किया गया। 210 तमिल प्रतिनिधि शहनाई के धुन के बीच डमरू वादन और बैंड वादन के बीच स्वागत से अभिभूत दिखे और काशी नगरी पहुंचने पर उनका रोमांच अलग ही नजर आ रहा था।

स्टेशन से दल को पूरे सम्मान के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के एंफीथिएटर ग्राउंड पर पहुंचाया गया। तमिलनाडु से वाराणसी आए दूसरे जत्थे में शामिल लोग पहले बीएचयू एंफीथिएटर स्थित 75 स्टालों को देखेंगे। इसके बाद संगोष्ठियों और शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। वहीं, दूसरे दिन बुधवार को काशी दर्शन का कार्यक्रम रखा गया है।

इस दल में शामिल लोग श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर, हनुमान घाट स्थित मिनी तमिलनाडु और महाकवि भारतियार के घर जाएंगे। वहीं, दोपहर में सारनाथ, रामनगर का किला, गंगा घाट और आरती देखेंगे। इसके बाद तीसरे दिन प्रयागराज संगम और अयोध्या स्थित रामलला का दर्शन करने जाएंगे। वहां से लौटकर फिर काशी आएंगे और यहीं से ट्रेन द्वारा वापस तमिलनाडु कूच करेंगे।

उल्लेखनीय है कि संगमम में भाग लेने के लिए तमिलनाडु से माह भर में कलाकारों, छात्रों, साहित्यकारों, कामगारों के कई ग्रुप वाराणसी भ्रमण करने आएंगे। इसी तरह से तमिलनाडु के अलग-अलग जगहों से काशी तमिल संगमम में भाग लेने के बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं।

गौरतलब है कि 19 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने काशी तमिल संगमम का उद्घाटन किया था। उसके बाद अलग-अलग समूहों में तमिलनाडु से लोग वाराणसी भ्रमण पर आ रहे हैं। इस आयोजन में तमिलनाडु के अलावा काशी के लोग भी बड़े उत्साह से शिरकत कर रहे हैं। तमिलनाडु से काशी आ रहे विविध क्षेत्रों से आ रहे लोगों, कलाकारों और छात्रों का अनुभव काफी शानदार है। हनुमान घाट स्थित दो मंदिर चक्रलिंगेश्वर और काम कोटिश्वर मंदिर और शहर का मिनी तमिलनाडु कहे जाने वाली गली केदारेश्वर से हनुमान घाट तक इन दिनों खूब रौनक है।

तमिल अतिथि आयोजन में शिरकत करने के साथ ही आध्यात्मिक नगरी में भ्रमण कर यहां की सभ्यता, संस्कृतिक, परिवेश आदि से परिचित हो रहे हैं। साथ ही यहां से जाकर दक्षिण भारत में काशी की पुरातन संस्कृति के बारे में बात करेंगे। इससे उत्तर और दक्षिण भारत के बीच प्राचीन संबंधों की डोर और मजबूत होगी। वहीं दोनों क्षेत्रों के बीच कला, संगीत, ज्ञान के आदान-प्रदान के साथ ही व्यापारिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *