नई दिल्ली, 21 नवंबर (हि.स.)। शीशम ( डालबर्गिया सिस्सू)से बनी वस्तुओं के हस्तशिल्प निर्यात्कों को बड़ी राहत मिली है। भारत के प्रयासों से वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (सीआईटीईएस) नियम आसान होने के चलते डालबर्गिया सिस्सू आधारित उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। दरअसल, शीशम (डालबर्गिया सिस्सू) सम्मेलन के परिशिष्ट दो में शामिल है, इसके तहत इससे बनी वस्तुओं के व्यापार के लिए सीआईटीईएस नियमों का पालन करने की आवश्यकता होती है। अभी तक 10 किलो से अधिक वजन की हर खेप के लिए सीआईटीईएस परमिट की आवश्यकता होती है। इस प्रतिबंध के कारण भारत से डालबर्गिया सिस्सू यानि शीशम से बने फर्नीचर और हस्तशिल्प का निर्यात लिस्टिंग से पहले अनुमानित 1000 करोड़ रुपये प्रति वर्ष से लगातार गिरकर 500-600 करोड़ भारतीय रुपये हो गया है। शीशम उत्पादों के निर्यात में कमी के कारण इस क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 50,000 कारीगरों की आजीविका प्रभावित हुई है।
वन्य जीवों और वनस्पतियों (सीआईटीईएस) की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर पनामा में 14 से 25 नवंबर के बीच आयोजित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज(कोप) की 19 वीं बैठक में इस पर चर्चा की गई।
भारत की पहल पर वर्तमान बैठक में शीशम (डालबर्गिया सिस्सू) वस्तुओं जैसे फर्नीचर और कलाकृतियों की मात्रा को स्पष्ट करने के प्रस्ताव पर विचार किया गया। बैठक में इस बात पर सहमति बनी कि दस किलो के नीचे किसी भी संख्या में शीशम लकड़ी-आधारित वस्तुओं को बिना सीआईटीईएस परमिट के शिपमेंट में एकल खेप के रूप में निर्यात किया जा सकता है। इसके अलावा, यह सहमति हुई कि प्रत्येक वस्तु के शुद्ध वजन के लिए केवल लकड़ी पर विचार किया जाएगा और उत्पाद में प्रयुक्त किसी अन्य वस्तु जैसे धातु आदि को नजरअंदाज कर दिया जाएगा। यह भारतीय कारीगरों और फर्नीचर उद्योग के लिए बड़ी राहत की बात है।
उल्लेखनीय है कि साल 2016 में जोहान्सबर्ग दक्षिण अफ्रीका में पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी) की 17 वीं बैठक में सम्मेलन के परिशिष्ट दो में जीनस डालबर्गिया की सभी प्रजातियों को शामिल किया गया था, जिससे प्रजातियों के व्यापार के लिए सीआईटीईएस नियमों का पालन करने की आवश्यकता थी। भारत में, भारतीय रोज़वुड या शीशम प्रजाति बहुतायत में पाई जाती है और इसे लुप्तप्राय प्रजातियों के रूप में नहीं माना जाता है। चर्चा के दौरान पार्टियों द्वारा यह विधिवत रूप से स्वीकार किया गया था कि डालबर्गिया सिस्सू एक खतरे वाली प्रजाति नहीं थी। हालांकि, डालबर्गिया की विभिन्न प्रजातियों को उनके तैयार रूपों में अलग करने में चुनौतियों के बारे में चिंता व्यक्त की गई थी। देशों ने व्यक्त किया कि विशेष रूप से सीमा शुल्क बिंदु पर डालबर्गिया की तैयार लकड़ी को अलग करने के लिए उन्नत तकनीकी उपकरण विकसित करने की तत्काल आवश्यकता थी।