नई दिल्ली, 18 नवंबर (हि.स.)। केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने तीन दिवसीय ज्ञानोत्सव के दूसरे सत्र को संबोधित करते हुए आज कहा कि आने वाले 25 साल देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हम दुनिया की ज़िम्मेदारी लेने वाले लोग हैं। भारत संपन्न होगा तो विश्व भी संपन्न होगा। विश्व का कल्याण करने वाला मानव बल भारत के पास है।
उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की राष्ट्रीय शिक्षा नीति(एनईपी) को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। एनईपी के कुशल और सफल क्रियान्वयन से हम अपनी वैश्विक जिम्मेदारी पूरा करेंगे। ज्ञानोत्सव का जो स्वरूप आज देखने को मिला है, उससे हम सब का आत्मविश्वास बढ़ा है। न्यास के ज्ञानोत्सव मॉडल और एकल प्रयोगों को राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने और इंस्टिट्यूशनल फ़्रेमवर्क में लाने के लिए मैं प्रतिबद्ध हूँ। शिक्षा के सबसे प्रारंभिक चरण बाल वाटिका के पाठ्यक्रम की रूप रेखा का शुभारंभ हमने कर लिया है।ऐसे समय में हम सब की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है।
प्रधान ने कहा कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि भारत की हर भाषा राष्ट्रीय भाषा है। एनईपी में स्कूली शिक्षा के अंतर्गत प्रारम्भिक 3-8 वर्ष के बच्चों के लिए मातृभाषा में पढ़ने का प्रावधान किया गया है। स्थानीय भाषा में पढ़ाई भारतीय शिक्षा पद्धति का अप्लाइड आसपेक्ट है। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अगर हमें जन-जन तक पहुँचाना है तो हमें ग्लोसरी बनाना पड़ेगा। इससे एनईपी के सभी आयाम सहज रूप में लोगों तक पहुँच सकेगा। न्यास जैसे सामाजिक संगठन और समाज ग्लोसरी बनाने का दायित्व लेगा, ऐसी मेरी अपेक्षा है।
ज्ञानोत्सव के दूसरे दिन भारत सरकार के शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में शिक्षा का लक्ष्य आनंद प्राप्ति और विश्व का संरक्षण है। यह मानव मूल्य आधारित शिक्षा है। इस शिक्षा नीति की आत्मा में मानव की संपूर्ण शिक्षा है। यह क्लासरूम शिक्षा से ऊपर की शिक्षा है। इसमें प्रकृति और संस्कृति के संरक्षण को समाहित किया गया है। इस नीति के क्रियान्वयन में समाज को स्वयं आगे आकर भूमिका निभानी चाहिए। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा शिक्षा नीति के क्रियान्वयन तथा आत्मनिर्भर भारत के लिए यह ज्ञानोत्सव आयोजित किया गया है।
दूसरे दिवस के पहले सत्र को संबोधित करते हुए शिक्षाविद डॉ. भूषण पटवर्धन ने कहा कि शिक्षण संस्थान वर्तमान समय में सभी “तुम से बड़ा मैं” की होड़ में लगे हुए हैं। शिक्षा की इस दौड़ से गुणवत्ता का ह्रास हो रहा है। शिक्षा में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण है। शिक्षक को प्रतिबद्धता के साथ चरित्रवान और मूल्य का संरक्षण होना जरूरी है। शिक्षा में मातृभाषा का प्रभाव उसकी संपूर्ण शिक्षा पर पड़ता है। देवभाषा संस्कृति ज्ञान और नवीनता की भाषा है।
दूसरे सत्र में उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नवाचारों को ज्ञानोत्सव में प्रस्तुत किया गया। चौधरी बंसी लाल वि. वि. के कुलपति डॉ आर के मित्तल ने संबोधित करते हुए बताया कि हमने न्यास के साथ मिलकर भारतीय मूल्य दर्शन पर पंचकोश के सिद्धांत का पाठ्यक्रम निर्माण कर उसे विश्वविद्यालय में लागू किया है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव अतुल कोठारी ने ज्ञानोत्सव के दूसरे दिवस की संकल्पना को प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास समाज के साथ मिलकर राष्ट्रीय शिक्षा नीति के क्रियान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है। ज्ञानोत्सव में न्यास ने शिक्षाविद, विद्यार्थी, अभिभावक, शिक्षक, प्राचार्य, कुलपति तथा शिक्षा के लिए काम करने वाली संस्थाओं को आमंत्रित कर इसे भारत केंद्रित शिक्षा नीति बनाया है। हम शिक्षा और आत्मनिर्भर भारत के लिए इसमें निरंतर चिंतन कर रहे हें।