चंद्रग्रहण के चलते एक दिन पहले मनेगी देव दीपावली
वाराणसी, 04 नवम्बर (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में वैश्विक पहचान बना चुकी देव दीपावली की प्रेरणा दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों से मिली थी। काशी में नियमित ओम नम:शिवाय की प्रभातफेरी निकालने वाले शिवाराधना समिति के संस्थापक डॉ मृदुल मिश्र ने बताया कि पंचगंगा, दुर्गाघाट, बिन्दु माधव मंदिर की सीढ़ियों पर वर्षो से दक्षिण भारतीय ब्राह्मणों को दीया जलाते देख नारायण गुरू (मां मंगला गौरी मंदिर के महंत) ने वर्ष 1984 में देव दीपावली की शुरूआत इन घाटों पर की थी। सही मायने में पंचगंगा घाट से अस्तित्व में काशी की देव दीपावली आई। काशी में पंचगंगा घाट पर इसकी शुरूआत हुई थी।
डॉ मृदुल बताते हैं कि क्षेत्रीय लोगों के सहयोग से तब दीपोत्सव होता था। इसके बाद वर्ष 1985 में मंगला गौरी मंदिर के महंत नारायण गुरु ने देव दीपावली को वृहद् और विहंगम रूप देने के लिए प्रयास किया। इसमें दशाश्वमेघ घाट पर गंगा सेवा निधि के संस्थापक स्मृतिशेष सत्येन्द्र मिश्र, प्राचीन शीतलाघाट पर गंगोत्री सेवा समिति के अध्यक्ष पं. किशोरी रमण दुबे उर्फ बाबू महाराज ने भी बड़ी भूमिका निभाई। पंचगंगाघाट के बाद पांच अन्य घाटों पर शुरू हुई देव दीपावली पर्व को व्यापक रूप देने के लिए केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष पं. वागीश दत्त मिश्र ने भी अपना योगदान दिया। महासमिति के पदाधिकारियों के प्रयास से काशी के कुंडों और तालाबों पर भी देव दीपावली मनने लगी। बाद में शहर के अन्य समाजसेवी भी इसमें योगदान देने के लिए आगे आये। तो देखते ही देखते उत्सव वैश्विक फलक पर आ गया। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर देव दीपावली के इतिहास के बारे में जानने के लिए लोगों में लगातार उत्सुकता बनी हुई है।
काशी सुमेरूपीठाधीश्वर जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती बताते हैं कि काशी के देव दीपावली उत्सव में किसी न किसी रूप में देवता भी शामिल होते हैं। देव दीपावली कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। एक कथा का उल्लेख कर बताया कि एक समय त्रिपुर नाम के बलशाली राक्षस के अत्याचारों से देवता, ऋषि बेहाल और दुखी थे। अपनी रक्षा के लिए सभी महादेव की शरण में गए। तब भगवान शिव ने कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को त्रिपुरासुर का वध कर दिया और तीनों लोकों को उसके भय से मुक्त किया। उस दिन से ही देवता हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा को भगवान शिव के विजय पर्व के रूप में मनाने लगे। तब से देव दीपावली की शुरूआत हुई है। एक अन्य कथा के अनुसार महर्षि विश्वामित्र ने देवताओं की सत्ता को चुनौती देकर अपने तप बल से त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था। यह देखकर नाराज देवताओं ने त्रिशंकु को वापस पृथ्वी पर भेजना चाहा। लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से उन्हें हवा में ही रोक दिया और नई स्वर्ग तथा सृष्टि की रचना प्रारंभ कर दी। यह देख देवताओं ने महर्षि से प्रार्थना की। तब उन्होंने दूसरे स्वर्ग और सृष्टि की रचना बंद कर दी। इससे प्रसन्न देवताओं ने दिवाली मनाई थी।
स्वामी नरेन्द्रानंद ने बताया कि काशी में देव दीपावली को स्थापित करने में रानी अहिल्याबाई होलकर ने भी बड़ा योगदान दिया था। उन्होंने पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत ‘हजारा दीपस्तंभ’ स्थापित किया था। जिस पर 1001 से अधिक दीप एक साथ जलता है। यहां दीपों का अद्भुत जगमग प्रकाश ‘देवलोक’ जैसे वातावरण का अनुभव कराता है। हजारे को देख लगता है कि गंगा के गले में स्वर्णिम आभा बिखर रही है। इसे देखने के लिए भी पर्यटक हजारों की संख्या में जुटते हैं। वर्ष 1986 में पूर्व काशी नरेश स्व. डॉ. विभूति नारायण सिंह ने घाट पर हजारा दीप जलाकर देव दीपावली की विधिवत शुरुआत कराई थी ।
– चंद्रग्रहण के चलते एक दिन पहले मनेगी देव दीपावली
चंद्रग्रहण के चलते इस बार देव दीपावली एक दिन पहले सात नवम्बर को मनाई जायेगी। दुनिया के सबसे बड़े जलपर्व पर उत्तरवाहिनी गंगा के आदिकेशव से अस्सी सामनेघाट तक अर्धचंद्राकार घाट 10 लाख से ज्यादा दीयों की रोशनी से जगमगाएंगे। जिला प्रशासन के अफसरों के अनुसार वाराणसी के चेत सिंह घाट पर थ्रीडी प्रोजेक्शन मैपिंग व लेज़र शो का आयोजन होगा। प्रोजेक्शन मैपिंग के द्वारा माँ गंगा के अवतरण की यात्रा को दिखाया जाएगा। इतिहास के पात्रों को फिर से दिखाया जायेगा। विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए संगीत और ध्वनि के साथ ऐसा वातावरण बनेगा। जहां दर्शक को लगेगा कि वह कहानी का हिस्सा है और ये शो दर्शकों के मानस पटल पर अमिट स्मृति छोड़ेगा। तकनीकी का यह मेल कथा और चरित्रों को जीवंत करेगा। इसके साथ ही लेजर और लाईट मल्टीमिडिया शो भी है जो टाइम कोड द्वारा प्रसारित किया जाएगा। इसमें संगीत की ध्वनि के साथ लेज़र और लाइट्स का एक अनूठा तालमेल देखने को मिलेगा, जो वह उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर देगा। इसी क्रम में काशी विश्वनाथ मंदिर के सामने रेत पर ग्रीन आतिशबाजी भी की जाएगी।