उत्तराखंड : गंगा बेसिन में प्राकृतिक खेती को लेकर पतंजलि और नमामि गंगे के बीच करार

हरिद्वार, 31 अक्टूबर (हि.स.)। गंगा बेसिन क्षेत्र में प्राकृतिक खेती के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने हेतु ‘नमामि गंगे’ एवं पतंजलि के बीच सोमवार को अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए।

इस अवसर पर पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इन्स्टीट्यूट एवं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम का केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, स्वामी रामदेव व आचार्य बालकृष्ण ने दीप जलाकर शुभारम्भ किया।

केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि पतंजलि अनुसन्धान केन्द्र और नेशनल मिशन ऑफ क्लीन गंगा के बीच जो एमओयू का करार हुआ है, यह ऐतिहासिक अवसर है। पतंजलि संस्थान की ओर से नूतन और वैज्ञानिक प्रयोगों तथा आत्मनिर्भर भारत के प्रयास को बल देने के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित कृषि को मजबूत बनाने की पहल सराहनीय है। पतंजलि संस्थान प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए गंगा के ही एसईपी प्लांट्स के स्लज से निर्मित जैविक खाद गंगा के क्षेत्र में उपलब्ध करवाएगा। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक और पर्यटन, आजीविका सृजन के अवसर, वनरोपण अभियान, प्रशिक्षण और कौशल विकास के लिए पतंजलि तथा राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन एमओयू साइन कर रहे हैं।

नमामि गंगे के डीजी अशोक कुमार ने कहा कि आजादी के बाद गंगा की सुध प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ली है, जिन्होंने देवप्रयाग से गंगा सागर तक गंगा को स्वच्छ करने का संकल्प लिया है और उसका क्रियान्वयन भी किया जा रहा है। आज गंगा निर्मल व स्वच्छ है, जिसके जल का आचमन बगैर भय के किया जा सकता है। गंगा को स्वच्छ व निर्मल रखने का संकल्प आज प्रत्येक भारतवासी को लेने की आवश्यकता है, तभी गंगा स्वच्छ व निर्मल रह पायेंगी।

स्वामी रामदेव ने कहा कि गंगा एक शब्द नहीं है, गंगा पर आधारित पूरी एक जीवन व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और पूरा एक दर्शन है। पूरी दुनिया में सनातन का गौरव पुनः लौट रहा है। अब गुलामी की निशानियों को तोड़ते हुए अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोते हुए, हमें विकास के नये कीर्तिमान गढ़ने की आवश्यकता है।उन्होंने कहा गंगा की स्वच्छता का जो सपना प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी देखा है, उसकी पूर्ति में पतंजलि अपना हर योगदान देने के लिए तत्पर है।

आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि गंगा के किनारों पर हजारों प्रजातियां पायी जाती हैं। आज हमें प्राकृतिक खेती करने से पहले यह सोचने की आवश्यकता है कि किस चीज की खेती करें और किस खेती को कहां करने से किसानों को ज्यादा लाभ प्राप्त हो सकता है। आज के युग में अधिक उत्पादन के लालच में हमने खेतों में दवाई के नाम पर जहर छिड़कना शुरू कर दिया है। इससे उत्पादन तो बढ़ा है मगर बीमारियां भी बढ़ी है। भारत सरकार ने गंगा के दोनों किनारों पर प्राकृतिक खेती करने का जो संकल्प लिया है, उसमें पतंजलि भारत सरकार के साथ सहयोग को लेकर संकल्पित हैं।

इस अवसर पर ‘गंगा रन’ में प्रतिभागी प्रथम 20 विद्यार्थियों को प्रमाण-पत्र व पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

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