नई दिल्ली, 17 अक्टूबर (हि.स.)। नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी के नेतृत्व में शुरु हुआ “बाल विवाह मुक्त भारत” अभियान, लड़कियों के बाल विवाह के खिलाफ देश ही नहीं बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा जागरुकता अभियान बन गया। इस अभियान के तहत देशभर के 26 राज्यों में 500 से अधिक जिलों में करीब 10 हजार गावों की 70 हजार से अधिक महिलाओं और बच्चों की अगुआई में जागरुकता कार्यक्रम आयोजित कर दीया जलाया गया और कैंडिल मार्च निकाला गया।
इसमें दो करोड़ से अधिक लोगों ने हिस्सेदारी कर और बाल विवाह को खत्म करने की शपथ लेकर इस अभियान को ऐतिहासिक बना दिया। इस बाल विवाह मुक्त भारत अभियान की खास बात यह थी कि सड़कों पर उतर कर नेतृत्व करने वाली महिलाओं में, ऐसी महिलाओं की संख्या ज्यादा थी जो कभी खुद बाल विवाह के दंश का शिकार हो चुकी थीं।
कई जगह अभियान का नेतृत्व उन बेटियों ने किया, जिन्होंने समाज और परिवार से विद्रोह कर न केवल अपना बाल विवाह रुकवाया, बल्कि अपनी जैसी कई अन्य लड़कियों को भी बाल विवाह का शिकार होने से बचाया। सभी ने एक स्वर में बाल विवाह को रोकने के लिए कानूनों का सख्ती से पालन करने और 18 साल तक सभी बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने की बात कही।
संख्या और व्यापकता की दृष्टि से बाल विवाह के खिलाफ ग्रासरूट लेबल पर एक दिन में इतने बड़े पैमाने पर कार्यक्रम देश-दुनिया में पहली बार आयोजित हुआ है। अभियान की विशालता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यह उत्तर में दुनिया के सबसे ऊंचे स्थानों में से एक लद्दाख के ‘खारदुंग पास’ से लेकर कश्मीर की विश्व प्रसिद्ध डल झील और देश की राजधानी के ऐतिहासिक महत्व वाले स्थानों राजघाट, इंडिया गेट और कुतुबमीनार पर भी पहुंचा।
वहीं, दक्षिण के छोर पर इस अभियान ने कन्याकुमारी के स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल और अंडमान निकोबार में भी दस्तक दी। इसके अलावा पूर्वोत्तर दिशा में मणिपुर, सुंदरबन, भारत-बांग्लादेश सीमा, विक्टोरिया मेमोरियल, पश्चिम में राजस्थान और पंजाब में जलियांवाला बाग व भगत सिंह के गांव में भी इस अभियान के तहत लोगों ने बाल विवाह रोकने की शपथ ली।
देश के कोने-कोने और दूरदराज में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में छात्र, नौजवान, डॉक्टर, प्रोफेशनल्स, महिला नेत्री, वकील, शिक्षक, शिक्षाविद् और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी जम कर हिस्सा लिया
भारत सरकार की साल 2011 की जनगणना के अनुसार देश में 1.2 करोड़ से ज्यादा बच्चों के बाल विवाह हुए हैं। जिसमें करीब 52 लाख नाबालिग लड़कियां थीं। इसकी तस्दीक नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के ताजा आंकड़े भी करते हैं। इनके अनुसार देश में 20 से 24 साल की उम्र की 23.3 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं, जिनका बाल विवाह किया गया है। इसमें 10 प्रतिशत की कमी लाना ही अभियान का उद्देश्य है। अभियान के तीन मुख्य लक्ष्य हैं। पहला कानून का सख्ती से पालन हो, यह सुनिश्चित करना।
दूसरा, महिलाओं और बच्चों का सशक्तीकरण करना और 18 साल तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था करना। जबकि तीसरा उन्हें यौन शोषण से बचाना है। बाल विवाह बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा, तीनों पर ही गंभीर प्रभाव डालता है। कई सतत् विकास लक्ष्य(एसडीजी) में भी बाल विवाह के खात्मे को प्राथमिकता दी गई है। बाल विवाह जैसी वैश्विक बुराई को खत्म करने के लिए कई स्तर पर एकजुट प्रयास करने होंगे।
इस अवसर पर नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित लाइबेरिया की लेमा जेबोई ने भी बाल विवाह पर चिंता जताते हुए कहा, ‘बाल विवाह वैश्विक स्तर पर एक भयावह बुराई है। हमें मानवाधिकार की हत्या करने वाली इस कुप्रथा का अंत करना ही होगा।’