बर्थ एनिवर्सरी 4 अक्टूबर: बांग्ला के अलावा हिन्दी गीतों में भी संध्या मुखर्जी ने बिखेरी मधुर आवाज का सुंगध

बंगाली फिल्मों की सर्वश्रेष्ठ गायिकाओं में से एक संध्या मुखर्जी बेशक आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन गायिकी के क्षेत्र में आज भी उनका नाम बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है। संध्या मुखर्जी का जन्म 4 अक्टूबर 1931 को ढकुरिया, कोलकाता में नरेंद्रनाथ मुखोपध्याय और हेमपूर्वा देवी के घर हुआ था। संध्या मुखर्जी के पिता रेलवे में अफसर थे। संध्या मुखर्जी को बचपन से ही संगीत में गहरी रुचि थी। उन्होंने अपने गायन की प्रारंभिक शिक्षा प्रोफेसर ए.टी. कनन, पंडित सन्तोष कुमार बसु एवं प्रोफेसर चिन्मोय लहरी से ग्रहण की थी। इसके अतिरिक्त भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दीक्षा उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ाँ से ली।

संध्या मुखर्जी ने अपनी खूबसूरत आवाज की बदौलत बंगाली के साथ-साथ हिंदी फिल्मों में भी कई गीत गाये। हालांकि उन्होंने ज्यादातर बांग्ला भाषा में ही गीत गाये हैं। उनके द्वारा गाये हिंदी गानों में ये बात कोई समझाए रे (सजा), बोल पपीहे बोल (तराना), मैंने जो ली अंगड़ाई( जागते रहो), तोसे नैना लागे रे सावरिया (ममता) आदि शामिल हैं। वहीं बंगाली फिल्मों में उन्होंने ‘ई गाने प्रजापति’, ‘ओई डुस्तो चोखेर मिस्टी हसी’, ‘ई सुधू गानेर दिन’ जैसे कई सदाबहार गीत गाये। इन सबके अलावा संध्या मुखर्जी ने बांग्लादेश लिबरेशन वॉर’ के दौरान जन आन्दोलन में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद 1971 में संध्या मुखर्जी ने वहां जाकर अपनी प्रस्तुति भी दी थी।

संध्या मुखर्जी को बंगाल के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘बंगा विभूषण’ से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें 1970 में आई फिल्म ‘जय जयंती’ एवं ‘निशी पद्मा’ में गाये गीतों के लिए ‘बेस्ट फीमेल सिंगर’ का नेशनल फिल्म अवार्ड भी मिल चुका है। 15 फरवरी, 2022 को संध्या मुखर्जी 90 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। संध्या मुखर्जी अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उनके गाये गीत फैंस के बीच काफी पसंद किये जाते हैं।

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